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Last Updated : सोमवार, 19 जुलाई 2021 (19:40 IST)

जिस बुरे वक्‍त में ‘मानव सेवा’ करना थी, तब अस्‍पतालों ने उद्योग घरानों की तरह ‘धन कमाया’

Supreme Court
नई दिल्ली,कोरोना काल में देशभर के अस्‍पतालों से तरह-तरह की खबरें मीडि‍या में आईं। कहीं अस्‍पतालों की मनमानी से आम लोग परेशान थे, तो कहीं परिजनों द्वारा पैसे जमा नहीं कर पाने की स्‍थि‍ति में अस्‍पताल द्वारा परिजनों को शव नहीं सौंपने की खबर ने दिल दुखाया।

इसी तर‍ह के हालातों पर सुप्रीम कोर्ट ने अस्‍पतालों को लेकर बड़ी और महत्‍वपूर्ण टि‍प्‍पणी की है।

न्‍यायालय ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौर में अस्पतालों को मानवता की सेवा करनी चाहिए थी, लेकिन इसकी बजाए वे बड़े रियल इस्टेट उद्योग में तब्‍दील हो गए और मोटी कमाई पर फोकस किया।

इसके साथ ही न्यायालय ने निर्देश दिया कि आवासीय इलाकों में दो-तीन कमरे के फ्लैट में चलने वाले ‘नर्सिंग होम’ आग और भवन सुरक्षा पर ध्यान नहीं देते हैं, इसलिए उन्हें बंद किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने भवन उपनियमों के उल्लंघन में सुधार लाने के लिए समय सीमा अगले वर्ष जुलाई तक बढ़ाने पर गुजरात सरकार की खिंचाई की और ‘पूर्णाधिकार पत्र’ अधिसूचना शीर्ष अदालत के 18 दिसंबर के आदेश के विपरीत है और ऐसी स्थिति में आग लगने की घटनाओं से लोग मरते रहेंगे।

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा, ‘आप (गुजरात सरकार) समय सीमा बढ़ाते रहे हैं, जिसे पिछले वर्ष 18 दिसंबर के हमारे फैसले के परिप्रेक्ष्य में नहीं किया जा सकता है। अस्पताल कठिनाई के समय में रोगियों को राहत प्रदान करने के लिए होते हैं न कि नोट छापने की मशीन होते हैं।’

आपदा के समय में अस्पताल बड़े उद्योग बन गए हैं और ‘आवासीय कॉलोनी में दो-तीन कमरे के फ्लैट से चलने वाले इस तरह के नर्सिंग होम को संचालन की अनुमति नहीं देनी चाहिए’

पीठ ने कहा, ‘बेहतर है कि इन अस्पतालों को बंद कर दिया जाए और सरकार को आवश्यक सुविधाएं मुहैया करानी चाहिए। हम इन अस्पतालों एवं नर्सिंग होम को काम जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकते। यह मानवीय आपदा है’ अदालत ने महाराष्ट्र के नासिक का जिक्र करते हुए यह टिप्पणी की जहां पिछले वर्ष कुछ रोगी और नर्स मारे गए थे। (भाषा)
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