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  4. Defense Minister Rajnath Singh said, disagreements and disputes can be resolved only through dialogue
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Last Modified: शुक्रवार, 25 नवंबर 2022 (22:49 IST)

असहमति और विवाद को बातचीत से ही हल किया जा सकता है : राजनाथ सिंह

Rajnath Singh
नई दिल्ली। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि मानवता अभी जलवायु परिवर्तन, कोरोनावायरस (Coronavirus) महामारी तथा अन्य चुनौतियों का सामना कर रही है और ऐसे में सभी को युद्धों तथा टकरावों के विनाश से दूर रहते हुए इन चुनौतियों से मिलकर निपटने के लिए काम करना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि विवादों और असहमति का समाधान केवल बातचीत से ही किया जा सकता है।

सिंह ने शुक्रवार को यहां हिन्द-प्रशांत क्षेत्रीय संवाद में अपने संबोधन में कहा, भारत एक स्वतंत्र, खुले और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत का पक्षधर है क्योंकि यह न केवल इस क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए बल्कि व्यापक वैश्विक समुदाय के लिए भी महत्वपूर्ण है।

रक्षामंत्री ने वर्ष 2018 में सिंगापुर में शांगरी-ला संवाद के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बयान का हवाला देते हुए कहा, प्रधानमंत्री ने कहा था कि भारत एक स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत क्षेत्र का पक्षधर है, जो प्रगति और समृद्धि के साझा प्रयास में हम सभी को एकसाथ रखता है।

सिंह ने जोर देकर कहा कि विवादों और असहमतियों को हल करने और क्षेत्रीय या वैश्विक व्यवस्था बनाने के लिए बातचीत ही एकमात्र सभ्य तरीका है। उन्होंने हाल ही में बाली में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री के दृढ़ संदेश का हवाला दिया कि युद्ध का युग खत्म हो गया है।

उन्होंने कहा, ऐसे समय में जब मानवता जलवायु परिवर्तन, कोविड-19 महामारी और व्यापक अभाव जैसी समस्याओं का सामना कर रही है, यह आवश्यक है कि हम सभी युद्धों और संघर्षों के विनाशकारी प्रलोभन से दूर रहकर, इन विशाल चुनौतियों से निपटने के लिए मिलकर काम करें।

रक्षामंत्री ने दोहराया कि भारत का हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में रचनात्मक संबंधों में अपने सहयोगियों के साथ काम करने का हमेशा प्रयास रहा है। उन्होंने नवंबर 2019 में थाईलैंड के बैंकॉक में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान शुरू की गई 'इंडो-पैसिफिक ओशियन इनिशिएटिव' पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय सहयोग और भागीदारी इस पहल के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं।

सिंह ने इसे एक सुरक्षित और न्यायपूर्ण विश्व के निर्माण की दिशा में प्रयास करने को नैतिक जिम्मेदारी बताया। उन्होंने कहा, भारत में हमारे दार्शनिकों और दूरदर्शी लोगों ने हमेशा राजनीतिक सीमाओं को पार करते हुए एक मानव समुदाय का सपना देखा है। हमने हमेशा सुरक्षा और समृद्धि को संपूर्ण मानव जाति के सामूहिक प्रयास के रूप में देखा है, जिसमें द्वीप सुरक्षा या समृद्धि महत्वपूर्ण नहीं है।

रक्षामंत्री ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से कहा कि वे सुरक्षा को वास्तव में सामूहिकता के परिप्रेक्ष्य में देखें ताकि एक वैश्विक व्यवस्था बनाई जा सके जो सभी के लिए लाभदायक हो। उन्होंने कहा, राष्ट्रीय सुरक्षा को ‘जीरो-सम गेम’ नहीं समझा जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, हमें सभी के लिए जीत की स्थिति बनाने का प्रयास करना चाहिए। हमें प्रबुद्ध स्वहित द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए, जो स्थाई है और व्यवधानों के लिए प्रतिरोधक क्षमता से परिपूर्ण है। मजबूत और समृद्ध भारत का निर्माण दूसरों की कीमत पर नहीं होगा, बल्कि हम यहां अन्य देशों को उनकी पूरी क्षमता का एहसास कराने में मदद करने के लिए हैं।

रक्षामंत्री ने कहा कि भारत की सोच और कार्य मानव समानता और गरिमा के भाव से निर्देशित हैं जो इसके प्राचीन लोकाचार और मजबूत नैतिक आधार का एक हिस्सा है। उन्होंने कहा, वास्तविक राजनीति नैतिक या अनैतिक होने के लिए अंजीर का पत्ता नहीं हो सकती है। इसके बजाय, राष्ट्रों के प्रबुद्ध स्वहित को रणनीतिक नैतिकता के ढांचे के भीतर बढ़ावा दिया जा सकता है, जो सभी सभ्य राष्ट्रों की वैध रणनीतिक अनिवार्यता के लिए समझ और सम्मान पर आधारित है।

उन्होंने कहा, यही कारण है कि जब हम किसी राष्ट्र के साथ भागीदारी करते हैं, तो वह संप्रभु समानता और आपसी सम्मान के आधार पर होता है। परस्पर संबंधों को मजबूत बनाना भारत के लिए स्वाभाविक है क्योंकि हम आपसी आर्थिक विकास की दिशा में काम करते हैं।

रक्षामंत्री ने कहा कि इसलिए यह उचित है कि हम सभी आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याएं जो राष्ट्रीय सीमाओं से परे हैं के समाधान की तलाश करें। इस अवसर पर, रक्षामंत्री ने राष्ट्रीय समुद्री फाउंडेशन (एनएमएफ) द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक का भी विमोचन किया, जिसका शीर्षक 'कोस्टल सिक्योरिटी डायमेन्शन्स ऑफ मैरिटाइम सिक्योरिटी' है। (वार्ता)
Edited By : Chetan Gour
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