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Covishield Vaccine पर शक के बाद उठने लगी मुआवजे की मांग, क्‍या भारत में मिलेगा मुआवजा?

मुआवजे की मांग पर क्‍या है वकीलों की वैधानिक सलाह?

Covishield Vaccine पर शक के बाद उठने लगी मुआवजे की मांग, क्‍या भारत में मिलेगा मुआवजा? - Covishield side effects Does India have a provision for compensation
  • बेटियों की मौत के बाद दो परिवार सीरम इंस्टीट्यूट पर करेंगे केस
  • यूके हाई कोर्ट में 51 मामले दर्ज, कोविड वैक्सीन से मौत का दावा
  • भारत में उठने लगी साइड इफेक्‍ट के बदले मुआवजे की मांग
  • क्‍या भारत में है वैक्‍सीन के मुआवजे का प्रावधान?
Covishield side effects: Does India have a provision for compensation: एस्ट्राजेनेका के कोविशील्‍ड वैक्‍सीन को लेकर किए गए ताजे खुलासे के बाद पूरी दुनिया में इसे लेकर डर और हंगामा मचा हुआ है। एस्ट्राजेनेका ने यूके की एक अदालत में यह खुलासा किया था कि इसकी वजह से रक्त के थक्के जम सकते हैं या दूसरी तरह की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं।

भारत में कोविशील्ड वैक्सीन का कोरोना महामारी के दौरान बड़े स्‍तर पर इस्‍तेमाल किया गया था। ऐसे में इस खुलासे के बाद भारत में कई ऐसे लोगों के मन में सवाल है कि अगर उन्‍हें वैक्‍सीन से कोई दुष्‍परिणाम हुए हैं तो क्‍या वे मुआवजे की मांग कर सकते हैं। दरअसल, हाल ही में एक याचिका दायर की गई है, जिसमें कहा गया है कि जो लोग वैक्‍सीन के साइड इफेक्‍ट से प्रभावित हुए हैं, उन्‍हें मुआवजा देने का प्रावधान होना चाहिए।

हालांकि इसे लेकर भारत सरकार का अब तक कोई रुख सामने नहीं आया है। सरकार ने फिलहाल चुप्‍पी साध रखी है। हाल ही में वैक्‍सीनेशन सर्टिफिकेट से पीएम नरेंद्र मोदी की तस्वीर भी हटाई गई है। हालांकि इसके पीछे चुनाव में लागू आचार संहिता भी वजह हो सकती है।

बेटी की मौत, मुकदमा करेगा परिवार: भारत के दो परिवारों ने सीरम इंस्टीट्यूट के खिलाफ केस दायर करने की तैयारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक वेणुगोपाल गोविंदन नाम के शख्‍स ने आरोप लगाया है कि उनकी बेटी करुण्या की जुलाई 2021 में कोवीशील्ड वैक्सीन लेने के एक महीने के बाद मौत हो गई थी। उन्‍होंने बेटी की मौत का आरोप लगाते हुए सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) पर मुकदमा करने का फैसला किया है।
Covishield vaccine
TTS से बेटी की मौत: इसी तरह से देश के एक और परिवार ने कहा है कि RTI में उनकी बेटी रितिका की मौत TTS की वजह से होना सामने आई थी। रितिका 18 साल की थी। उसकी मौत का TTS निकला था। रितिका ने मई में कोवीशील्ड की पहली डोज लगवाई थी। करीब 7 दिनों के भीतर रितिका को तेज बुखार हुआ, उल्‍टी हुई। जब MRI जां की गई तो पता चला कि रितिका को ब्रेन में ब्लड क्लोटिंग हुई और उसे ब्रेन हेमरेज हो गया था। दो हफ्ते बाद ही रितिका की मौत हो गई। रितिका के परिवार के मुताबिक बेटी की मौत की सही वजह जानने के लिए दिसंबर 2021 में उन्‍होंने RTI लगाई थी, जिसमें पता चला कि उसे थ्रोम्बोसिस विथ थ्रोम्बोसाइटोपेनिया सिंड्रोम हुआ था। बता दें कि TTS से शरीर में खून के थक्के जम जाते हैं और प्लेटलेट्स की संख्या गिर जाती है।

क्‍या कहते हैं एडव्‍होकेट?
मुआवजे का दावा ठोक सकता है पीडित: इस पूरे मामले को समझने के लिए वेबदुनिया ने इंदौर के एक सिनियर एडव्‍होकेट प्रमोद द्विवेदी से चर्चा की। प्रमोद द्विवेदी बताया कि यह कोविशील्‍ड वैक्‍सीन एक निजी कंपनी ने बनाई थी, ऐसे में अगर वैक्‍सीन लेने के बाद कोई साइड इफेक्‍ट हुआ है या मरीज की मौत हुई है तो पीडित परिवार उक्‍त कंपनी पर मुआवजे की मांग के साथ दावा ठोक सकता है। उन्‍होंने यह भी बताया कि इसमें सरकार की तरफ से वैक्‍सीन लेने के लिए अलग अलग तरीको से बार-बार जो दबाव बनाया गया वो भी गलत था। आपको याद होगा कि काम पर लौटने वालों और यात्रा करने वालों के लिए वैक्‍सीन सर्टिफिकेट अनिवार्य कर दिया गया था।

इस आधार पर हो सकता है केस: यदि सरकार मुआवजा देने के लिए तैयार नहीं है तो कानूनी रास्ता अपनाया जा सकता है। कानूनी विशेषज्ञों की राय है कि वैक्सीन निर्माता, राज्य सरकार और अनुमति देने वाले प्राधिकारी के खिलाफ केस दायर किया जा सकता है। 1940 के ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक एक्ट के मुताबिक मुआवजे का दावा किसी मान्यता प्राप्त प्राधिकारी के समक्ष किया जा सकता है। यह तब हो सकता है जब वैक्‍सीन लगाने के बाद स्थायी विकलांगता या मृत्यु हो गई हो। इसके अलावा इंडियन पीनल कोड (धारा 336, 337 और 338) और कन्‍ज्‍यूमर कन्‍जर्वेशन एक्‍ट (Consumer Conservation Act) के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने क्‍यों लिया यूटर्न: कहा जा रहा है कि भारत सरकार ने COVID-19 टीकों के लिए मुआवजे के प्रावधान के बगैर ही बिना टीकाकरण नीति का मसौदा तैयार किया था। हेल्‍थ इमरजेंसी को देखते वैक्‍सीन को बहुत जल्‍दबाजी में तैयार किया गया था, इसका मतलब यह है कि वैक्‍सीन के कारण होने वाली किसी भी स्वास्थ्य समस्या के मामले में वैक्‍सीन लेने वालों को मुआवजा देने का कोई प्रावधान नहीं है। दूसरी तरफ स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि टीकाकरण अनिवार्य नहीं था और लोगों ने अपनी पसंद से टीका लगवाया। जबकि ऑफिस जाने वालों से लेकर ट्रेन और फ्लाइट में यात्रा करने वालों तक के लिए टीका अनिवार्य कर दिया था, टिकट बनाने से पहले वैक्‍सीन सर्टिफिकेट दिखाना अनिवार्य कर दिया गया था।

यूरोपियन यूनियन ने लगाई थी रोक: बता दें कि 2021 में ही एस्ट्राज़ेनेका-ऑक्सफ़ोर्ड की वैक्सीन पर यूरोपीय यूनियन के बड़े देशों- जर्मनी, इटली, फ्रांस जैसे कई देशों ने तात्कालिक तौर पर रोक लगा दी थी। 2022 में ही एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में कहा गया था कि फाइजर की तुलना में एस्ट्राजेनेका की कोविड वैक्सीन से जुड़े मामलों में ब्लड क्लॉटिंग का जोखिम ज़्यादा रहा है। इसमें कहा गया कि यह 30 फ़ीसदी तक अधिक था।
Covishield vaccine
क्‍या भारत में मिलेगा मुआवजा: क्या कोविशील्ड वैक्सीन के दुष्प्रभाव को झेलने वालों को किसी तरह का मुआवजा दिया जा सकता है? इस सवाल का जवाब अब सुप्रीम कोर्ट देगा। ऐसा इसलिए कि जांच और मुआवजे की मांग को लेकर एक याचिका दायर की गई है। यह याचिका एक वकील विशाल तिवारी ने दायर की है। उन्होंने याचिका में एस्ट्राजेनेका के उस कबूलनामे का ज़िक्र किया है जिसमें इसने कहा है कि उसकी वैक्सीन का दुर्लभ दुष्प्रभाव कम प्लेटलेट काउंट और ब्लड क्लॉटिंग के रूप में हो सकता है। याचिका में यूनाइटेड किंगडम में वैक्सीन मुआवजा तंत्र का हवाला देते हुए अपील की गई है कि वैक्सीन से गंभीर रूप से विकलांग हुए लोगों को मुआवजा दिया जाए और केंद्र सरकार इस मामले को प्राथमिकता पर ले ताकि भविष्य में लोगों के स्वास्थ्य को खतरा न हो।

कोविड के बाद हार्टअटैक का बढ़ा ग्राफ: वैक्‍सीन के इस फॉर्मूले को तैयार करने के लिए पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को लाइसेंस दिया गया था। जिसके बाद देश में 175 करोड़ से ज्‍यादा कोविशील्ड टीके लगाए गए। याचिका में कहा गया कि कोविड-19 महामारी के बाद से दिल का दौरा पड़ने और लोगों की अचानक मौतों की संख्या में वृद्धि हुई है।

डाटा जमा क्‍यों नहीं किया: कांग्रेस की गुजरात इकाई के अध्यक्ष और राज्यसभा सदस्य शक्तिसिंह गोहिल ने सवाल किया कि WHO की सलाह के बावजूद दुष्प्रभाव को लेकर डेटा एकत्र क्यों नहीं किया गया। उन्होंने कहा, ‘चूंकि उस समय दुनिया के पास टीकों के दुष्प्रभावों का विश्लेषण करने का समय नहीं था, इसलिए WHO ने कहा था कि देशों को दुष्प्रभावों के आंकड़ों का रिकॉर्ड रखना चाहिए।