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Last Updated : मंगलवार, 16 मार्च 2021 (22:14 IST)

आईआईएमसी के राजभाषा सम्मेलन में डॉ. सुमीत जैरथ ने कहा, वैश्विक भाषा के रूप में उभर रही है हिन्दी

आईआईएमसी के राजभाषा सम्मेलन में डॉ. सुमीत जैरथ ने कहा, वैश्विक भाषा के रूप में उभर रही है हिन्दी - conference of iimc dr seminar zarath said hindi is emerging as a global language
नई दिल्ली। 'हिन्दी एक जनभाषा, संपर्क भाषा और राजभाषा के बाद अब वैश्विक भाषा के रूप में उभर रही है। विश्व के कई देशों में हिन्दी का बढ़ता प्रयोग इसका प्रमुख उदाहरण है।' ये विचार गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग के सचिव एवं भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी डॉ. सुमीत जैरथ ने भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) एवं नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, दक्षिणी दिल्ली-03 द्वारा आयोजित राजभाषा सम्मेलन में व्यक्त किए।

अध्यक्षता आईआईएमसी के महानिदेशक एवं नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, दक्षिणी दिल्ली-03 के अध्यक्ष प्रो. संजय द्विवेदी ने की। आयोजन में देश की प्रख्यात कथाकार एवं उपन्यासकार प्रो. अल्पना मिश्र मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुईं। कार्यक्रम में प्रसिद्ध व्यंग्यकार एवं 'व्यंग्य यात्रा' पत्रिका के संपादक डॉ. प्रेम जनमेजय और आईआईएमसी के डीन (अकादमिक) प्रो. गोविंद सिंह ने मुख्य वक्ता के तौर पर विचार व्यक्त किए। इसके अलावा गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग के उपनिदेशक कुमार पाल शर्मा और सहायक निदेशक रघुवीर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के तौर पर सम्मेलन में हिस्सा लिया।

 
डॉ. सुमीत जैरथ ने कहा कि भारत में अगर सभी भाषाएं मणि हैं तो हिन्दी हमारी मुकुट मणि के समान है। हिन्दी वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक भाषा है। आज सरकारी कामकाज में हिन्दी का प्रयोग बढ़ रहा है। इसका प्रमुख कारण है कि सरकारी कार्यालयों में हिन्दी के सरल और सहज शब्दों का प्रयोग बढ़ा है। 
 
इस अवसर पर प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि यह आपदा में अवसर तलाशने का समय है। आज पूरी दुनिया हिन्दुस्तान की ओर देख रही है। ऐसे में हमें भी अपनी हिचक तोड़कर दमदारी से हिन्दी भाषा का प्रचार और प्रसार करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भाषा सिर्फ अभिव्यक्ति का माध्यम है। एक वक्त था, जब भारत में राज और समाज अलग-अलग भाषाओं में काम करते थे, लेकिन आज स्थितियां बदल रही हैं। कोई भी भाषा अपने बच्चों से ही सम्मान पाती है और ये समय हिन्दी को उसका सम्मान दिलाने का है।

डॉ. अल्पना मिश्र ने कहा कि हिन्दी राष्ट्रीय अस्मिता की प्रतीक है। आज पूरी दुनिया में हिन्दी का आकर्षण बढ़ा है और इसका प्रमुख कारण है हिन्दी का लचीलापन। हिन्दी भाषा के अंदर अनुकूलन की क्षमता है और वह सभी को अपने अंदर समेट लेती है। तकनीक के कारण भाषाएं तेजी से एक-दूसरे के निकट आई हैं।
 
डॉ. प्रेम जन्मेजय ने कहा कि भाषा सम्प्रेषण का माध्यम है, लेकिन हमने उसे सामाजिक स्तर की कसौटी बना दिया है। भारत की नई शिक्षा नीति इस मानसिकता के खिलाफ लड़ने का सशक्त हथियार है। डॉ. जन्मेजय के अनुसार यदि हम अपने देश से प्रेम करते हैं तो उसकी भाषाओं से भी प्रेम करना चाहिए। आज प्रत्येक व्यक्ति को भारतीय भाषा का सैनिक बनना होगा। उन्होंने कहा कि हिन्दी एक विशाल महासागर है। एक समय था जब ब्रिटिश राज का सूर्य नहीं डूबता था, लेकिन आज हिन्दी का सूर्य नहीं डूबता। प्रो. गोविंद सिंह ने कहा कि बाजार ने हिन्दी की ताकत को समझा और हिन्दी को आगे बढ़ाने पर जोर दिया लेकिन हम हिन्दी को बाजार के हाथों में नहीं छोड़ सकते। जब तक हिन्दी भाषी समाज नहीं जागेगा, तक तक हिन्दी का विकास नहीं हो सकता।
 
सम्मेलन के विशिष्ट अतिथि कुमार पाल शर्मा ने कहा कि हिन्दी भाषा में ही प्रसार की शक्ति छुपी हुई है और वो शक्ति है उसकी सरलता और सहजता। ये प्रसारित शक्ति ही हिन्दी को बोली से कलम तक और कलम से कम्प्यूटर तक लाई है। उन्होंने कहा कि आप विदेशों से कुछ भी लीजिए, पर उसका प्रचार और उपयोग अपनी भाषा में कीजिए। इस अवसर पर रघुवीर शर्मा ने गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग के कंठस्थ टूल के बारे में लोगों को जानकारी दी। इस टूल के माध्यम से अनुवाद का कार्य बेहद आसान तरीके से किया जा सकता है।
 
 संचालन विष्णुप्रिया पांडेय एवं अपवन कौंडल ने किया। स्वागत भाषण प्रो. संगीता प्रणवेंद्र ने दिया। धन्यवाद ज्ञापन रीता कपूर ने किया। सम्मेलन में नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, दक्षिणी दिल्ली के सभी सदस्यों ने हिस्सा लिया।
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