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Written By वेबदुनिया न्यूज डेस्क
Last Updated : शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2021 (12:36 IST)

चीन का नया लैंड बाउंड्री कानून भारत के लिए खतरे की घंटी, नदियों का पानी रोकने का खतरनाक प्लान

चीन का नया लैंड बाउंड्री कानून भारत के लिए खतरे की घंटी, नदियों का पानी रोकने का खतरनाक प्लान - China new land border law and Indian concerns Explained in Hindi
चीन और भारत के बीच सीमा विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। अगले साल जनवरी से चीन नए 'लैंड बाउंड्री क़ानून' को लागू करने जा रहा है। इस कानून का उद्देश्य चीन द्वारा विवादित इलाक़ों में निर्माण और इन्फ़्रास्ट्रक्चर का काम शुरू करना बताया जा रहा है जिससे उसे आधिकारिक हिस्से के तौर पर अपना क्षेत्र दिखाया जा सके।

इस मुद्दे पर भारत ने कहा है कि चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी पर यथास्थिति बदलने के क़दम को सही ठहराने के लिए नए 'लैंड बाउंड्री कानून' का इस्तेमाल ना करे। भारत ने चीन के नए लैंड बाउंड्री क़ानून की कड़े शब्दों में आलोचना की है।
 
बुधवार को भारत के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि चीन द्वारा नया कानून बनाने का फैसला एकतरफा है और उससे सीमा प्रबंधन पर मौजूदा द्विपक्षीय व्यवस्था के साथ-साथ सीमा से जुड़े सवालों पर असर पड़ सकता है। इस तरह के एकतरफ़ा क़दम को भारत स्वीकार नहीं करेगा। सीमा से जुड़े सवाल और एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए दोनों देशों के बीच व्यवस्था पहले से ही है और इसमें किसी भी तरह के एकतरफ़ा बदलाव को भारत स्वीकार नहीं करेगा।
 
उल्लेखनीय है कि भारत पूरे जम्मू-कश्मीर पर अपना दावा करता है जिसमें अक्साई चिन भी शामिल है जिसे 1963 में चीन-पाकिस्तान समझौते के अंतर्गत पाकिस्तान ने अक्साई चिन की शाक्सगम घाटी चीन के हवाले कर दी थी। भारत शुरू से ही इस समझौते को नकारता रहा है और पाक अधिकृत कश्मीर और अक्साई चिन को अपना क्षेत्र मानता है। 
 
बता दें कि 23 अक्टूबर को चीन में नेशनल चीन की राष्ट्रीय जनप्रतिनिधि सभा (पीपल्स कांग्रेस की स्टैंडिंग कमिटी) ने इस कानून को पास किया था। चीन के सरकारी मीडिया शिन्हुआ के अनुसार इसका मक़सद जमीन से जुड़ी सीमाओं की सुरक्षा और उसका इस्तेमाल करना है। परंतु विशेषज्ञों का कहना है कि चीन नए नियमों से विवादित सीमाओं, खासतौर पर भारत और भूटान के साथ अनसुलझे सीमा विवाद को और उलझा रहा है।
 
भारत के लिए चीन का यह कानून इस संदर्भ में भी परेशान करने वाला है कि चीन ने अप्रैल 2020 के बाद से एलएसी की यथास्थिति बदल दी है और विवादित इलाकों में चीन अपनी सेना (पीपल्स लिबरेशन आर्मी) की मौजूदगी को अब नए कानून के ज़रिए सही ठहरा सकता है। चीन की भारत समेत 14 देशों के साथ 22,457 किलोमीटर लंबी ज़मीन से जुड़ी सीमा है जिसमें मंगोलिया और रूस के बाद चीन की सबसे लंबी सीमा भारत से लगी है। भारत के साथ चीन की 3,488 किलोमीटर सीमा विवादित है। भारत के अलावा भूटान के साथ भी चीन की 477 किलोमीटर की सीमा विवादित है।

क्या है इस कानून में : इस कानून में सीमा से जुड़े मुद्दों पर चीन के बुनियादी सिद्धांतों का स्पष्टीकरण और निश्चय किया गया है। उदाहरण के लिए इस कानून में कहा गया कि चीन प्रभावी कदम उठाकर प्रभुसत्ता और थलीय सीमा की डटकर सुरक्षा करता है और प्रभुसत्ता व थल सीमा को नुकसान करने वाली किसी भी कार्रवाई पर प्रहार करता है। उल्लेखनीय बात है कि इस कानून के पहले अनुच्छेद की 15वीं धारा में कहा गया कि चीन समानता, पारस्परिक विश्वास एवं मैत्रीपूर्ण सलाह-मशविरे के सिद्धांतों पर वार्ता के जरिये थलीय पड़ोसी देश के साथ सीमा व संबंधित मामलों का निपटारा करता है और मतभेद व इतिहास से छोड़े गए सीमा सवाल का समुचित समाधान करता है।
 
इस कानून में स्पष्ट कहा गया है कि राज्य परिषद के संबंधित विभागों और सीमा से लगे प्रांतों व प्रदेशों की विभिन्न स्तरीय सरकारों को कदम उठाकर सीमा पर स्थित नदी (झील) के बहाव की दिशा स्थिर करना और संबंधित संधि के मुताबिक नदी के पानी का संरक्षण और उचित प्रयोग करना चाहिए। रक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत इस कानून को समझने में चूक गया है और सीमा पार के पानी पर संप्रभुता के दावे का मतलब है कि पीआरसी को जितना चाहें उतना साझा जल रोकने का अधिकार होगा या सरल शब्दों में इस कानून के जरिए चीन अपने क्षेत्र में बहने वाली नदियों के पानी के बहाव को रोक सकता है। सबसे चिंताजनक बात है कि यह कानून तिब्बत जैसे पीआरसी के क्षेत्र से बहने वाले के कब्जे सीमा पार नदी के जल तक फैला हुआ है। कानून की शब्दावली के अनुसार पीआरसी की सीमाओं के भीतर उत्पन्न होने वाली अंतरराष्ट्रीय नदियों का साझा जल 'आंतरिक जल' है।
 
इसके अलावा इस कानून में सीमा से जुड़े मामले और संभावित घटना को सुलझाने के उपायों और प्रक्रिया का स्पष्टीकरण किया गया है। इस भूमि सीमा कानून से चीन के सीमा मामलों के प्रबंधन को मजबूती मिलेगी और सीमा मामले का प्रबंधन कानून के मुताबिक चलेगा। इसके साथ संबंधित मामलों का निपटारा अधिक पारदर्शी और अनुमानित होगा।
 
हालांकि चीन का यह कानून पूर्णत: घरेलू कानून है, जो 1 जनवरी 2022 से प्रभाव में आएगा और इसमें भारत या भारत से विवादित सीमा का कोई उल्लेख नहीं है। लेकिन आने वाले समय में चीन ये कह सकता है कि सीमा विवाद पर वो वार्ता इस कानून के अंतर्गत ही करेगा। यह भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि इस कानून का सीमा प्रबंधन पर वर्तमान द्विपक्षीय समझौतों और सीमा से जुड़े संपूर्ण प्रश्नों पर प्रभाव पड़ सकता है। इसे चीन का कूटनीतिक दांव माना जा रहा है, जो लद्दाख में जारी सैन्य गतिरोध और सीमा विवाद को लंबे समय के लिए उलझाकर मौजूदा सरकार को चैन से नहीं बैठने देगा।
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