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Last Modified: बुधवार, 21 मई 2025 (15:12 IST)

वक्फ बाई यूजर पर सुप्रीम कोर्ट से केंद्र ने कहा, किसी को भी सरकारी जमीन पर दावे का अधिकार नहीं

supreme court
center on Waqf by user : केंद्र ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि कोई भी व्यक्ति सरकारी जमीन पर अधिकार का दावा नहीं कर सकता है और सरकार को ‘वक्फ बाई यूजर’ सिद्धांत का उपयोग करके वक्फ घोषित की गई संपत्तियों को पुनः प्राप्त करने का कानूनन अधिकार है। ‘वक्फ बाई यूजर’ से आशय ऐसी संपत्ति से है जहां किसी संपत्ति को औपचारिक दस्तावेज के बिना भी धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए उसके दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर वक्फ के रूप में मान्यता दी जाती है।
 
वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली दलीलों का जवाब देते हुए, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ के समक्ष केंद्र की ओर से अपनी दलीलें पेश करना शुरू किया।
 
मेहता ने कहा कि किसी को भी सरकारी जमीन पर दावे का अधिकार नहीं है। उच्चतम न्यायालय का एक फैसला है, जिसमें कहा गया है कि अगर संपत्ति सरकार की है और उसे वक्फ घोषित किया गया है, तो सरकार उसे बचा सकती है।
 
शुरुआत में, शीर्ष विधि अधिकारी मेहता ने कहा कि किसी भी प्रभावित पक्ष ने अदालत का रुख नहीं किया है और किसी ने इस तरह का मामला नहीं रखा है कि संसद के पास इस कानून को पारित करने की क्षमता नहीं है। उन्होंने संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट और इस तथ्य का हवाला दिया कि अधिनियम के अस्तित्व में आने से पहले कई राज्य सरकारों और राज्य वक्फ बोर्डों से परामर्श किया गया था।
 
पीठ ने याचिकाकर्ताओं की इन दलीलों पर केंद्र से जवाब मांगा कि जिलाधिकारी के पद से ऊपर का कोई अधिकारी वक्फ संपत्तियों पर इस आधार पर दावा तय कर सकता है कि वे सरकारी हैं।
यह न केवल भ्रामक है बल्कि एक गलत तर्क है। मामले की सुनवाई जारी है।
 
केंद्र ने अपने लिखित नोट में अधिनियम का दृढ़ता से बचाव करते हुए कहा कि वक्फ अपनी प्रकृति से ही एक धर्मनिरपेक्ष अवधारणा है और इस कानून पर रोक नहीं लगाई जा सकती क्योंकि इसके पक्ष में संवैधानिकता की धारणा है। उसने उन मुद्दों पर ध्यान दिया जो अदालत ने पहले उठाए थे और कहा कि कानून केवल धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए वक्फ प्रशासन के धर्मनिरपेक्ष पहलुओं को विनियमित करने का प्रयास करता है। उन्होंने कहा कि इस पर रोक लगाने की कोई गंभीर राष्ट्रीय तात्कालिकता नहीं है।
 
नोट में कहा गया है कि कानून में यह स्थापित स्थिति है कि संवैधानिक अदालतें किसी वैधानिक प्रावधान पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोक नहीं लगाएंगी और मामले पर अंतिम रूप से निर्णय लेंगी। संसद द्वारा बनाए गए कानूनों पर संवैधानिकता की धारणा लागू होती है।
 
पीठ ने मंगलवार को ‘कानून के पक्ष में संवैधानिकता की धारणा’ को रेखांकित किया था और कहा कि वक्फ कानून को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत के लिए ‘मजबूत और स्पष्ट’ मामले की आवश्यकता है।
 
जब कानून के खिलाफ वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें शुरू कीं, तो प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि हर कानून के पक्ष में संवैधानिकता की धारणा होती है। अंतरिम राहत के लिए, आपको एक बहुत मजबूत और स्पष्ट मामला बनाना होगा। अन्यथा, संवैधानिकता की धारणा रहेगी। केंद्र ने पीठ से तीन मुद्दों पर सुनवाई को सीमित करने का आग्रह किया था। एक मुद्दा ‘अदालत द्वारा वक्फ, वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाई डीड’ घोषित संपत्तियों को गैर-अधिसूचित करने के अधिकार का है।
 
याचिकाकर्ताओं द्वारा उठाया गया दूसरा मुद्दा राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद की संरचना से संबंधित है, जहां उनका तर्क है कि पदेन सदस्यों को छोड़कर केवल मुसलमानों को ही इसमें काम करना चाहिए। तीसरा मुद्दा एक प्रावधान से संबंधित है, जिसमें कहा गया है कि जब कलेक्टर यह पता लगाने के लिए जांच करते हैं कि संपत्ति सरकारी भूमि है या नहीं, तो वक्फ संपत्ति को वक्फ नहीं माना जाएगा।
 
केंद्र ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पिछले महीने अधिसूचित किया था। इसे 5 अप्रैल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी मिल गई थी। इस विधेयक को लोकसभा में 288 सदस्यों के मत से पारित किया गया, जबकि 232 सांसद इसके खिलाफ थे। राज्यसभा में इसके पक्ष में 128 और विपक्ष में 95 सदस्यों ने मतदान किया। (भाषा)
edited by : Nrapendra Gupta 
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