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Written By Author सुरेश एस डुग्गर

आकर्षण बरकरार है अमरनाथ यात्रा का

आकर्षण बरकरार है अमरनाथ यात्रा का - Amarnath Yatra
श्रीनगर। वर्ष 1993 की अमरनाथ यात्रा उन लोगों को अभी भी याद है जिन्होंने पहली बार इस यात्रा पर लगे प्रतिबंध के बाद ‘हरकतुल अंसार’ के हमलों को सहन किया था, तब 3 श्रद्धालुओं की जानें गई थीं। पहले हमले के 10 सालों बाद हुए भीषण हमले में 11 श्रद्धालु मौत की आगोश में चले गए थे। इन 10 सालों में कोई भी साल ऐसा नहीं बीता था, जब आतंकी हमलों और मौतों ने अमरनाथ यात्रा को चर्चा में न लाया हो लेकिन बावजूद इसके यह आज भी आकर्षण का ही केंद्र बनी हुई है।
 
फिर से इसे सुरक्षित और असुरक्षित बनाने की कवायद तेज हुई है। राज्य की नई सरकार के लिए यह किसी चुनौती से कम इसलिए नहीं है, क्योंकि वर्ष 1993 के बाद के आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि शायद ही कोई साल ऐसा होगा, जब आतंकी हमलों में श्रद्धालुओं की मौतें न हुई हों। और जो वर्ष बचा वह प्राकृतिक आपदा की भेंट चढ़ गया। अर्थात अगर आतंकवादियों के हाथों से बच गए तो कुदरत के हाथों से नहीं बच पाए।
 
वर्ष 1992 तक यह अपनी सामान्य गति के साथ ही चलती रही है और इस गति की खास बात यह कही जा सकती है कि हिस्सा लेने वालों की संख्या भी इतनी नहीं होती थी कि यह अखबारों की सुर्खियों में स्थान पा सके। तब हिस्सा लेने वालों की संख्या बमुश्किल 54 हजार के आंकड़े को ही पार कर पाई थी। मगर 1993 के प्रथम आतंकी प्रतिबंध ने लोगों को इसकी ओर आकर्षित होने पर मजबूर कर दिया। नतीजा वर्ष 1993 से वर्ष 2002 की यात्रा में औसत भाग लेने वालों का आंकड़ा सवा लाख का रहा है। इनमें सुरक्षाकर्मियों तथा स्थानीय लोगों की गिनती नहीं की जाती है।
 
फिर यूं अमरनाथ यात्रा पर प्रतिबंध और हमले बढ़ते रहे, इसमें शामिल होने वालों की संख्या भी बढ़ती गई। असल में कई धार्मिक संगठनों ने इसे एक चुनौती के रूप में लेते हुए हजारों लोगों को शामिल होने की अपीलें तक कर डालीं। यही कारण था कि वर्ष 1996 में जब बजरंग दल के 50 हजार के करीब सदस्य अमरनाथ यात्रा में हिस्सा लेने पहुंचे तो सारी व्यवस्थाएं चरमरा गईं और प्राकृतिक आपदा ने भी यात्रा को घेर लिया।
 
नतीजा सबके सामने ही था। 300 के करीब श्रद्धालु प्राकृतिक आपदा का शिकार हुए और मौत की आगोश में चले गए। तब मृतकों में 9 माह के बच्चे और 100 साल के बूढ़े भी शामिल थे। तब आयु सीमा की कोई पाबंदी नहीं थी यात्रा में शामिल होने के लिए और न ही चिकित्सा प्रमाणपत्र की। हालांकि कहा तो यह भी जाता है कि मृतकों की संख्या हजार में थी, क्योंकि पंजीकरण की व्यवस्था नहीं होने से सही तौर पर मालूम ही नहीं हो पाया था कि मृतकों की संख्या सही मायने में कितनी है?
 
लेकिन अमरनाथ यात्रा का एक रोचक तथ्य यह रहा कि यह आतंकवादी हमलों के कारण ही आकर्षण का केंद्र बनी थी, मगर आतंकवादी हमलों में मरने वालों की संख्या इतनी नहीं थी जितने प्राकृतिक आपदाओं में मारे गए। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक 1993 से लेकर 2002 तक के अरसे के दौरान होने वाले हमलों में कुल 72 अमरनाथ श्रद्धालु विभिन्न हमलों में मारे गए। यह बात अलग है कि दिल की धड़कन रुकने या फिर घोड़े से फिसलकर मरने वालों की संख्या भी इन्हीं 10 सालों के दौरान उतनी ही थी जितनी आतंकी हमलों में मरने वालों की थी।
 
बावजूद इसके कि आतंकी हमले मासूमों की जानें लेते रहे हैं, प्राकृतिक आपदाओं ने भी शामिल होने वालों को नहीं बख्शा और कदम-कदम पर मुसीबतें तथा कष्ट सहन करने पड़ते हैं, मगर इनमें से कोई भी उन लोगों को हतोत्साहित नहीं कर पाता है, जो इसमें भाग लेना चाहते हैं या फिर कई सालों से शामिल हो रहे हैं।

सारे संदर्भ में यह भी सच है कि गठबंधन सरकार की दूसरी अमरनाथ यात्रा चुनौती के रूप में सामने आने वाली है, क्योंकि इस बार इसकी शुरुआत 2 जुलाई को हो रही है तथा 29 अगस्त तक यह जारी रहेगी। अभी तक का अनुभव यही रहा है कि अगस्त महीने में अमरनाथ यात्रा मार्ग पर मौसम हमेशा ही खराब रहा है। दूसरा कश्मीर में हिंसा में आई तेजी के बाद इस पर अब आतंकी खतरा भी मंडराने लगा है। तीसरे यात्रा को पर्यटन बाजार में बदलने के प्रयास। इन सबको मिला आधिकारिक तथा सुरक्षा के मोर्चे पर मिलने वाली चेतावनी यही कहती है कि अमरनाथ यात्रा को खतरों से मुक्त बनाना हो तो इसे पर्यटन बाजार में न बदला जाए, क्योंकि आतंकियों के लिए यह नर्म लक्ष्य बन सकती है।
 
श्राइन बोर्ड ने अमरनाथ यात्रा में शामिल होने के लिए 10 लाख के करीब लोगों को न्योता तो दे दिया लेकिन अब वह परेशान हो गई है। उसकी परेशानी का कारण बदलते हालात तो हैं ही, बदलता मौसम भी है। अगर हालात की चर्चा करें तो ये परतें उघड़नें लगी हैं कि आतंकी अमरनाथ यात्रा को नर्म लक्ष्य के रूप में ले सकते हैं। फिलहाल किसी आतंकी गुट की ओर से कोई चेतावनी नहीं मिली है न ही अमरनाथ यात्रा पर किसी संगठन ने प्रतिबंध लगाया है। मगर मिलने वाली सूचनाएं प्रशासन को परेशान किए जा रही हैं, पर कश्मीर में तेज होती आतंकी हिंसा और अलगाववादियों द्वारा 2010 को दोहराने की कोशिशों को एक संकेत के रूप में लिया जा रहा है।
 
ताजा सूचनाएं कहती हैं कि कुछ दिन पहले कश्मीर के कई भागों में चलाए गए अभियानों के दौरान 400 के करीब आतंकी भागने में कामयाब रहे थे। चिंता की बात इन भागने वाले आतंकवादियों के प्रति यह कही जा रही है कि अधिकतर पुंछ से सटे अनंतनाग क्षेत्र की ओर भागे हैं और अमरनाथ यात्रा भी इसी जिले में होनी है।
 
बकौल आधिकारियों के, अनंतनाग जिले में आतंकी घटनाएं बढ़ी भी हैं। इनके लिए उन्हीं आतंकियों को दोषी ठहराया जा रहा है, जो सेना से छुपते फिर रहे हैं। हालांकि सूत्र यह भी कहते हैं कि भागने वाले आतंकियों में पाक सेना के कुछ नियमित जवानों के साथ ही अल-कायदा और तालिबान के सदस्य भी हैं। इसकी पुष्टि सेनाधिकारी कर चुके हैं। हालांकि सेना की गुप्तचर संस्था के अधिकारी कहते हैं कि खतरा सिर्फ अनंतनाग में ही नहीं बल्कि राजौरी, पुंछ, जम्मू, डोडा और छोपियां में भी है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि अभियानों से बच निकलने वाले आतंकियों की पहुंच में ये क्षेत्र थे, जो इन क्षेत्रों में शरण ले चुके हैं।
 
कुछ दिन पहले ही पकड़े गए पाकिस्तानी नागरिकों के रहस्योद्घाटनों ने भी सरकार को चिंता में डाला हुआ है। वे इसके प्रति रहस्योद्घाटन कर चुके हैं कि पाक सेना अमरनाथ यात्रा को निशाना बनाने के निर्देश आतंकवादियों को दे सकती है, क्योंकि सीमाओं पर चल रहे सीजफायर ने उसके प्रयासों पर पानी फेरा है।
 
इन खतरों को लेकर अधिकारी परेशानी में इसलिए भी है, क्योंकि पहले ही श्राइन बोर्ड 10 लाख के करीब श्रद्धालुओं को यात्रा में शामिल होने के लिए न्योता दे चुका है। वह ऐसा इसलिए कर रहा है ताकि अमरनाथ यात्रा का दोहन कर उसे पर्यटन बाजार में बदला जा सके। और यही सोच अब परेशानी पैदा कर रही है।
 
बकौल उन सुरक्षाधिकारियों के, जिनके कांधों पर यात्रा का जिम्मा है, इतनी भीड़ को संभाल पाना और सुरक्षा प्रदान कर पाना खालाजी का घर नहीं है। ‘पहले ही आतंकी सभी सुरक्षा प्रबंधों को धता बताते हुए हर बार अमरनाथ यात्रियों पर हमले करने में कामयाब होते रहे हैं। अब अगर इतनी भीड़ होगी तो किस-किसको कहां सुरक्षा प्रदान की जाएगी जबकि यात्रा करने वालों को पर्यटक के रूप में सरकार कश्मीर के अन्य पर्यटन स्थलों की ओर भी खींचकर लाने की इच्छुक है,’ एक अधिकारी का कहना था।
 
इस चिंता में मौसम की चिंता भी अपनी अहम भूमिका निभाने लगी है। मौसम विभाग भी इस बार अभी से चेतावनी जारी करने लगा है कि यात्रा मार्ग पर इस बार मौसम कुछ अधिक ही खराब हो सकता है। यह अनुमान अगस्त महीने के कारण है। याद रहे कि वर्ष 1996 में मौसम ने अचानक करवट बदली थी तो 300 श्रद्धालु मौत का ग्रास बन गए थे और तब भी अगस्त महीने में होने वाली अमरनाथ यात्रा का मुख्य दर्शन 30 अगस्त को ही था।
 

वर्ष 1993 के बाद से अमरनाथ यात्रा पर हुए हमलों का विवरण- 
 
1. वर्ष 1993 : बाबरी मस्जिद प्रकरण को मुद्दा बना हरकतुल अंसार ने अमरनाथ यात्रा पर प्रतिबंध लगाया। अमरनाथ यात्रा पर 2 हमलों में 3 लोग मारे गए।
 
2. वर्ष 1994 : पुनः हरकतुल अंसार ने यात्रा पर प्रतिबंध लागू कर दिया। एक हमला किया गया यात्रियों पर जिसमें 2 की मौत हो गई।
 
3. वर्ष 1995 : लगातार तीसरे वर्ष हरकतुल अंसार ने यात्रा पर प्रतिबंध लागू कर दिया। 3 हमले किए गए, परंतु आतंकवादी किसी की जान नहीं ले पाए।
 
4. वर्ष 1996 : इस बार भी आतंकवादियों की ओर से नाकामयाब हमले किए गए अमरनाथ यात्रा पर लेकिन किसी को कोई क्षति नहीं पहुंचा पाए। लेकिन मौसम के खराब होने तथा बर्फबारी के कारण जो अमरनाथ त्रासदी हुई उसने 300 श्रद्धालुओं की जान ले ली।
 
5. वर्ष 2000 : आतंकवादियों द्वारा पहलगाम के करीब आरू नामक स्थान पर हुए किए गए हमले में 32 श्रद्धालुओं सहित 35 लोग मारे गए।
 
6. वर्ष 2001 : शेषनाग में आतंकवादी हमले में 3 पुलिस अधिकारियों समेत 12 श्रद्धालु मारे गए।
 
7. वर्ष 2002 : अमरनाथ यात्रा पर हुए 2 अलग-अलग हमलों में कुल 10 श्रद्धालु मारे गए तथा 25 के करीब गंभीर रूप से घायल हो गए।
 
8. वर्ष 2003 : आतंकवादियों ने अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वालों को सीधे निशाना तो नहीं बनाया लेकिन यात्रा के दौरान ही कटड़ा में वैष्णोदेवी के आधार शिविर पर हमला कर 8 श्रद्धालुओं को मार डाला और टांडा में सेना के एक ब्रिगेडियर को भी मार डाला। साथ ही राजमार्ग पर कुछ लोगों की हत्या कर अमरनाथ यात्रा में शामिल होने वालों को दहशतजदा करने का प्रयास अवश्य किया।