मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. राष्ट्रीय
  4. Amarinder Singh Punjab Indian National Congress
Written By
Last Updated : शनिवार, 18 सितम्बर 2021 (21:42 IST)

सेना में सेवा, राजीव गांधी से दोस्ती, कांग्रेस को सत्ता में लाने और कुर्सी छोड़ने तक, ऐसा है अमरिंदर सिंह का सफर

सेना में सेवा, राजीव गांधी से दोस्ती, कांग्रेस को सत्ता में लाने और कुर्सी छोड़ने तक, ऐसा है अमरिंदर सिंह का सफर - Amarinder Singh Punjab Indian National Congress
चंडीगढ़। कांग्रेस के सबसे मजबूत क्षेत्रीय छत्रपों में गिने जाने वाले अमरिंदरसिंह वे नेता हैं जिन्होंने पंजाब में पिछले विधानसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल और आम आदमी पार्टी से कड़े मुकाबले में दोनों को शिकस्त देकर कांग्रेस की राज्य की सत्ता में वापसी कराई।
 
कांग्रेस में सम्मानित और लोकप्रिय नेता की शख्सियत रखने वाले 79 वर्षीय अमरिंदर ने 2017 के चुनाव में 117 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस को जबरदस्त जीत दिलाई और दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने और इस तरह उन्होंने दिल्ली से बाहर अपनी जड़ें जमाने की कोशिश कर रही आम आदमी पार्टी के सपनों को ध्वस्त कर दिया।
पंजाब में 10 साल बाद मिली जीत से कांग्रेस को नई ऊर्जा मिलने की उम्मीदें जग गई थीं, लेकिन अब पार्टी की प्रदेश इकाई में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है और 50 से अधिक विधायकों ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखकर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग की। राज्य में विधानसभा चुनाव से महज 4 महीने पहले यह उठापटक चल रही है। इस बीच सिंह ने शनिवार को कांग्रेस विधायक दल की बैठक से पहले मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
 
सेना में रहते हुए भारत-पाक की जंग में हिस्सा ले चुके सिंह की मुश्किलें नवजोतसिंह सिद्धू के पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद बढ़ गईं। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले सिद्धू ने भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा था और अटकलें थीं कि उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। लेकिन उन्हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया। सिद्धू और अमरिंदर सिंह के बीच रिश्ते कभी गर्मजोशी वाले नहीं रहे।
 
कांग्रेस के सत्ता में आने के 2 साल बाद जून 2019 में मंत्रिमंडल में हुई फेरबदल में सिद्धू से अहम मंत्रालय ले लिए गए और उन्होंने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। सिद्धू से स्थानीय शासन और पर्यटन तथा सांस्कृतिक मंत्रालय लेकर उन्हें ऊर्जा और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय सौंपे गए और सिद्धू ने नए विभाग के मंत्री के रूप में कामकाज ही नहीं संभाला।
 
इसके कुछ दिन बाद सिद्धू ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से संपर्क साधा और हालात से अवगत कराया। सिंह और सिद्धू का टकराव खुलकर सामने आ गया। मुख्यमंत्री ने जहां सिद्धू को स्थानीय शासन विभाग ठीक से नहीं चला पाने का जिम्मेदार ठहराते हुए दावा किया कि इसकी वजह से 2019 के लोकसभा चुनाव में शहरी इलाकों में कांग्रेस का प्रदर्शन खराब रहा, वहीं पूर्व क्रिकेटर ने कहा ‍कि राहुल गांधी मेरे कप्तान हैं। राहुल गांधी कैप्टन (सिंह) के भी कप्तान हैं। इसके बाद स्थितियां नाजुक होती गईं और अंतत: सिद्धू को सिंह के कड़े विरोध के बावजूद प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंप दी गई।
 
एक समय अकाली दल के नेता रहे सिंह ‘पटियाला राजघराने’ से ताल्लुक रखते हैं और सेना के अपने संक्षिप्त कॅरियर में वह 1965 की लड़ाई में भाग ले चुके हैं। पटियाला के दिवंगत महाराज यादविंदर सिंह के बेटे अमरिंदर ने लॉरेंस स्कूल, सनावर और दून स्कूल, देहरादून से पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने 1959 में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए), खड़गवासला में प्रवेश लिया और वहां से 1963 में स्नातक हुए।
 
1963 में भारतीय सेना में शामिल हुए सिंह दूसरी बटालियन सिख रेजीमेंट में तैनात हुए। इस बटालियन में उनके पिता और दादा दोनों सेवाएं दे चुके थे। सिंह ने 2 साल तक भारत तिब्बत सीमा पर सेवाएं दीं और पश्चिमी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल हरबख्श सिंह के सहयोगी नियुक्त किये गये।
 
दिवंगत राजीव गांधी के करीबी दोस्त माने जाने वाले सिंह का राजनीतिक करियर जनवरी 1980 में सांसद चुने जाने के साथ शुरू हुआ। लेकिन उन्होंने 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान स्वर्ण मंदिर में सेना के प्रवेश के खिलाफ लोकसभा और कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। अगस्त 1985 में वे अकाली दल में शामिल हो गये और 1995 के चुनाव में अकाली दल (लोंगोवाल) के टिकट पर राज्य विधानसभा में पहुंचे।
 
कांग्रेस में वापसी के बाद वह पहली बार 2002 से 2007 तक मुख्यमंत्री रहे थे और इस दौरान उनकी सरकार ने 2004 में पड़ोसी राज्यों से पंजाब के जल बंटवारा समझौते को समाप्त करने वाला राज्य का कानून पारित किया। पिछले साल उनकी सरकार संसद से पारित केंद्रीय कृषि कानूनों के विरोध में चार विधेयक लाई, जिन्हें बाद में पारित कर दिया गया।
 
अमरिंदर सिंह ने 2014 का लोकसभा चुनाव अमृतसर से लड़ा था और भाजपा के अरुण जेटली को एक लाख से अधिक मतों के अंतर से हराया था। इस बीच उच्चतम न्यायालय ने सतलुज-यमुना लिंक (एसवाईएल) नहर समझौते को समाप्त करने वाले पंजाब के 2004 के कानून को असंवैधानिक बताया तो सिंह ने संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। कुछ दिन बाद उन्हें पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले राज्य इकाई का प्रमुख बनाया गया। अनेक देशों की यात्रा करने वाले सिंह ने 1965 की भारत-पाक जंग के अपने संस्मरण के अलावा कई पुस्तकें लिखी हैं।
ये भी पढ़ें
झारखंड में बड़ा हादसा : ‘करमा विसर्जन’ करने गई 7 लड़कियों की तालाब में डूबने से मौत, 6 एक ही परिवार कीं