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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली (भाषा) , शनिवार, 11 अगस्त 2007 (21:10 IST)

भारत विकसित देशों की कतार में

भारत अंतरिक्ष कार्यक्रम
आजादी के 60 सालों के दौरान भारत ने अंतरिक्ष कार्यक्रम में बेहतरीन प्रगति की है और कई मायनों में वह इस क्षेत्र के सर्वाधिक विकसित देशों की कतार में खड़ा हो गया है।

भारत ने इसी साल अप्रैल में अपने पहले व्यावसायिक रॉकेट ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) के जरिये इटली के उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया।

इसी के साथ भारत अरबों डॉलर के वैश्विक प्रक्षेपण बाजार में शामिल हो गया। भारत अब अमेरिका, रूस, चीन, उक्रेन तथा यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार है।

माना जाता है कि वैश्विक प्रक्षेपण बाजार सालाना ढाई अरब डॉलर का है और जल्दी ही इसके एक हिस्से पर भारत का कब्जा हो जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष शोध संगठन (इसरो) ने तीन विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए समझौता किया है।

भारत ने अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम आजादी मिलने के 16 साल बाद 1963 में शुरू किया था और उसने 44 साल में ही बहुतों को पीछे छोड़ दिया। भारत उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के अलावा चाँद मिशन पर भी काम कर रहा है। इसमें मानवरहित यान चाँद पर भेजना शामिल है। अगर सब कुछ ठीक रहा, तो इस साल के अंत तक चाँद की कक्षा में भारतीय यान पहुँच जाएगा।

अंतरिक्ष कार्यक्रम में तत्कालीन सोवियत संघ आगे रहा और उसने 1957 में पहला मानवनिर्मित उपग्रह स्पुतनिक अंतरिक्ष में भेजा। भारत ने बिना कोई देरी किए नई प्रौद्योगिकी के लिए समयबद्ध कार्यक्रम निर्धारित किया, ताकि नई तकनीक से देश को लाभ पहुँचाया जा सके।

उस समय इस बात की काफी आलोचना हुई और कहा गया कि भारत जैसे निर्धन देश के लिए इस महँगी प्रौद्योगिकी में निवेश करना उचित नहीं है, लेकिन डॉ. विक्रम साराभाई के प्रयासों से भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम जारी रहा और बाद की सफलता खुद ही कहानी बताते हैं।

आज भारत विश्व का एकमात्र विकासशील देश है जो अपने उपग्रहों का निर्माण, डिजाइन, प्रक्षेपण और संचालन कर सकता है। इन उपग्रहों का इस्तेमाल टीवी और रेडियो प्रसारण दूरसंचार मौसम आपदा चेतावनी दूरसंवेदन क्षेत्रों में व्यापक रूप से प्रयोग किया जा रहा है।

भारत ने अभी तक विभिन्न प्रकार के 38 उपग्रहों का डिजाइन एवं निर्माण किया है। इनमें अत्याधुनिक बहुद्देश्यीय इनसैट चार सिरीज के उपग्रह भी शामिल हैं। इसके अलावा भारत ने 12 उपग्रहों को अपने प्रक्षेपण यानों से अंतरिक्ष में भेजा भी है।

भारतीय जमीन से सबसे पहली बार 21 नवंबर 1963 को केरल में तिरुवनंतपुरम के पास थुंबा से एक छोटे यान का प्रक्षेपण किया गया। पहला भारत निर्मित रॉकेट थुंबा से 20 नवंबर 1967 को छोड़ा गया। सिर्फ 10 किलोग्राम वजन वाला रोहिणी रॉकेट सिर्फ 4.2 किलोमीटर की ऊँचाई तक ही पहुँच सका, लेकिन भारत अंतरिक्ष क्लब में शामिल हो गया।

इस बीच 1965 में थुंबा में अंतरिक्ष विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र की स्थापना की गई, जिसे बाद में विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र नाम दिया गया। सभी राष्ट्रीय अंतरिक्ष गतिविधियों से संबंधित कार्यक्रम के लिए 1969 में इसरो की स्थापना की गई। आज रॉकेटों और उपग्रहों के विकास प्रक्षेपण और संचालन की जिम्मेदारी इसरो की ही है।

पिछले 32 सालों में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम ने नित-नई ऊँचाइयों को छुआ है। इसकी शुरुआत भारत निर्मित आर्यभट्ट से हुई, जिसे सोवियत संघ के रॉकेट से 1975 मे अंतरिक्ष में भेजा गया था। प्रौद्योगिकी के परीक्षण के लिए तैयार किए गए आर्यभट्ट के छह साल तक काम करने का अनुमान था, लेकिन उसने 17 सालों तक न सिर्फ काम किया, बल्कि आँकड़े भी भेजता रहा।

आर्यभट्ट की कामयाबी से उत्साहित इसरो ने भास्कर और भास्कर-2 का रूसी रॉकेट से प्रक्षेपण किया। बाद में भारत ने आईआरएस और इनसैट दो-तीन और चार सिरीज के कई उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में भेजा। भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का उद्देश्य इस प्रौद्योगिकी का लाभ आम लोगों तक पहुँचाना रहा है।