Last Modified: नई दिल्ली ,
शुक्रवार, 25 दिसंबर 2009 (11:14 IST)
बाबा आमटे ने बिताया था राजकुमारों जैसा बचपन
जन्मदिन पर विशेष
बचपन में चाँदी के चम्मच से खाना खाने वाले और सोने के पालने में सोने वाले मुरलीधर देवीदास आमटे महात्मा गाँधी और विनोबा भावे से कुछ इस तरह प्रभावित हुए कि शानो-शौकत को ठोकर मारकर अपनी पूरी जिंदगी गरीबों-मजलूमों के नाम कर दी।
ब्रिटिश हुकुमत के दौरान शासकीय सेवा में लेखपाल के तौर पर काम करने वाले देवीदास हरबाजी आमटे के घर महाराष्ट्र के वर्धा जिले में 26 दिसंबर 1914 को पैदा हुए बाबा आमटे ने समाज से ठुकराए लोगों और कुष्ठ रोगियों के लिए अनेक आश्रमों और समुदायों की स्थापना की। इनमें महाराष्ट्र के चन्द्रापुर जिले में ‘आनंदवन’ आश्रम बहुत मशहूर है।
बाबा आमटे की शख्सियत को बयान करते हुए उनके बेटे प्रकाश आमटे ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले से बताया कि उनके पिता का मन शुरू से ही गरीबों के दुख-दर्द को देखकर पिघल उठता था।
अपने पिता की तरह 26 दिसंबर के दिन ही पैदा हुए और 2008 में सामुदायिक सेवा के लिए अपनी पत्नी मंदाकिनी के साथ रैमन मैग्सायसाय अवॉर्ड से नवाजे जा चुके प्रकाश ने बताया कि बाबा ने शुरू से ही उन लोगों को खुलकर काम करने की छूट दी।
प्रकाश ने कहा कि बाबा तो 1974 में ही ‘नर्मदा बचाओ आंदोलन’ में हिस्सा लेने चले गए और 11 साल बाद वापस लौटे। उन्होंने बताया कि अपनी बेबाकी के लिए मशहूर बाबा आमटे के जाने से उनकी संस्था के कामकाज पर तो कोई खास असर नहीं पड़ा, लेकिन दिशानिर्देश देने वाले एक शख्स की कमी जरूर खलती है।
‘पद्म श्री’ और ‘पद्म विभूषण’ से नवाजे गए बाबा आमटे से प्रेरणा पाने वालों में 14वें दलाई लामा का भी नाम शामिल है। पिछले साल फरवरी महीने में बाबा की मृत्यु पर ‘दलाई लामा’ ने कहा था कि आमटे का निधन हम सब के लिए एक बड़ी क्षति है । मैंने भी बाबा आमटे से काफी कुछ सीखा है और उनसे काफी प्रभावित हूँ।
एमए-एलएलबी की शिक्षा प्राप्त कर बाबा ने वर्धा जिले में बतौर वकील अपना अच्छा खासा नाम बना लिया था। बाबा ने आजादी की लड़ाई के दौरान मुकदमे का सामना कर रहे स्वतंत्रता सेनानियों के पक्ष में अपने कानूनी ज्ञान का इस्तेमाल किया।
गढ़चिरौली जिले की ‘मादिया गोंड’ नाम की जनजाति के जीवन-स्तर में सुधार के लिए बाबा ने 1973 में ‘लोक बिरादरी प्रकल्प’ की स्थापना की थी जिसका काम आजकल प्रकाश और मंदाकिनी अपने परिवार के साथ मिलकर देख रहे हैं।
प्रकाश ने बताया कि 1985 में रैमन मैग्सायसाय अवॉर्ड से नवाजे गए बाबा की रुचि साहित्य में भी थी और उन्होंने ‘ज्वाला आणि फुले’ नाम के कविता संग्रह के अलावा ‘उज्ज्वल उद्यासाठी’ कविता की भी रचना की थी। (भाषा)