फैसला मानने को बाध्य नहीं-चिन्मयानंद
राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति के सदस्य एवं पूर्व केंद्रीय गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद ने कहा कि वे न्यायालय का फैसला मानने को बाध्य नहीं हैं।उन्होंने बताया कि पिछले दिनों 24 सितंबर को राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति की बैठक दिल्ली में सम्पन्न हुई जिसमें साधु-संतों के अलावा संयोजक राजेन्द्रसिंह पंकज, संयुक्त महामंत्री अशोक सिंघल, विश्व हिन्दू परिषद के संगठन मंत्री दिनेशजी आदि थे, उसमें तय किया गया कि न्यायालय का फैसला मानने को बाध्यकारी वे हैं जो मुकदमे में पक्षकार हैं।उन्होंने कहा कि अयोध्या में मुसलमानों का दावा बनता ही नहीं है। मुसलमान अयोध्या मामले में अपनी जिद छोड़ दें। न्यायालय के बाहर लोग वहाँ रामलला को देखना चाहते हैं। मंदिर आज बने या कल मंदिर के अलावा वहाँ और कुछ भी स्वीकार नही होगा। मंदिर और मस्जिद साथ-साथ बनाने का भी प्रयास एक व्यर्थ की कवायद है। स्टेट गेस्ट हाउस में वेबदुनिया से विशेष बातचीत में राम जन्मभूमि मुक्ति संघर्ष समिति की उच्चाधिकार समिति के सदस्य स्वामी चिन्मयानंद ने कहा कि यह बात सही है कि अयोध्या मामले में न्यायालय और संसद ही इस मसले के समाधान के उचित मंच हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि फैसला जो भी आए, लेकिन अयोध्या में विराजमान रामलला को हटाना संभव नहीं।निर्णय को टलवाना चाहती है कांग्रेस : स्वामी चिन्मयानंद ने कहा कि उन्हें पूरा विश्वास था कि 24 सितंबर को फैसला आ जाएगा, किन्तु अचानक जिस तरह गतिरोध पैदा किया गया और जिस याची त्रिपाठी की याचिका पर उच्च न्यायालय ने इतना कड़ा रुख अपनाया कि उसे आर्थिक दंड दिया गया, ऐसे व्यक्ति की याचिका सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकार किया जाना और उच्च न्यायालय के निर्णय को स्थगित करना तथा उस पर सुनवाई हेतु एक तारीख मुकर्रर करना एक संशय उत्पन्न करता है। उन्होंने कहा कि निर्णय को रोकने पर फैसला सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने किया उसका स्वागत न किसी राजनीतिक दल ने किया और न ही इस मूवमेंट से जुडे किसी संगठन ने। मुस्लिम पक्ष के वकील जफरयाब जिलानी आदि ने स्थगन का घोर विरोध किया, लेकिन कांग्रेस ने स्थगन का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका के कार्यों में अपने निहित राजनीतिक स्वार्थों के लिए कांग्रेस के द्वारा अड़ंगा डालना न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित करने की साजिश मानता हूँ।उन्होंने कहा कि यह मुकदमा इतना लम्बा न खिंचता यदि कांग्रेस ने समय-समय पर इसी प्रकार के हथकंडे अपना कर न्यायालय के कार्य में अवरोध न उत्पन्न करती। पहले भी एक बार कारसेवा के मामले में जब सुनवाई पूरी हो गई थी उसके बावजूद फैसला सुरक्षित कर लिया गया था।स्वामी चिन्मयानंद ने कहा कि जनभावनाओं के प्रति देश का न्यायालय संवेदनशील न होगा यह मैं नहीं मानता। उन्होंने बताया कि 1989 में राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने जब संविधान की धारा 143-ए के अन्तर्गत सर्वोच्च न्यायालय से इस मसले के समाधान हेतु राय माँगी थी तो उस समय के मुख्य न्यायाधीश की गठित पीठ ने एक लम्बी सुनवाई के बाद जो फैसला दिया था उस पर गौर किया जाना चाहिए था। उस समय उन्होंने कहा था कि आस्था के मसले न्यायालय में तय नहीं होते। इसके समाधान के लिए राजनीतिक दलों में इच्छाशक्ति होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अब जब देश पुनः राम जन्मभूमि को लेकर चिंतित है और केंद्र सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि न्यायालय के सम्मान को ध्यान में रखकर फैसले की राह में रोड़ा न डाले। जो भी फैसला आए उसे लागू करने का साहस दिखाए। यदि लगता है कि न्यायालय से प्राप्त फैसला लागू करने में उसे दिक्कत है तो उसे संसद में जाना चाहिए। सोमनाथ की तर्ज पर कानून बनाकर मसले का समाधान निकालना चाहिए।अदालत में नहीं हो सकता सर्वमान्य फैसला : पूर्व मुख्यमंत्री और राम मंदिर आंदोलन के प्रबल पक्षधर रहे कल्याणसिंह ने दोहराया कि कोई अदालत अयोध्या विवाद का सर्वमान्य फैसला नहीं दे सकती क्योंकि यह करोड़ों लोगों की आस्था और विश्वास का विषय है।उन्होंने कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला अब और टाला नहीं जाना चाहिए और बातचीत से इस समस्या के समाधान खोजने के जो भी प्रयास हो रहे हैं वे महज ‘नाटक’ हैं, इसलिये भी कि पूर्व में ऐसी सारी कोशिशें नाकाम रही हैं।