धवन को था भारतीय प्रतिभाओं पर भरोसा
25 सितंबर, जन्मदिवस पर विशेष
देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊँचाई पर पहुँचाने में अहम भूमिका निभाने वाले महान वैज्ञानिक प्रो. सतीश धवन एक बेहतरीन इनसान और कुशल शिक्षक भी थे। उन्हें भारतीय प्रतिभाओं पर अपार भरोसा था।भारतीय प्रतिभाओं में उनके विश्वास को देखते हुए उनके साथ काम करने वाले लोगों तथा उनके छात्रों ने कठित मेहनत की, ताकि उनकी धारणा की पुष्टि हो सके। सतीश धवन को विक्रम साराभाई के बाद देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। वे इसरो के अध्यक्ष नियुक्त किए गए।
सतीश धवन इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस बैंगलुरु के लोकप्रिय प्राध्यापक थे। उनके प्रयासों से संचार उपग्रह इन्सैट, दूरसंवेदी उपग्रह आईआरएस और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी का सपना साकार हो सका।
विक्रम साराभाई ने ऐसे भारत की परिकल्पना की थी, जो उपग्रहों के निर्माण एवं प्रक्षेपण में सक्षम हो और नई प्रौद्योगिकी सहित अंतरिक्ष कार्यक्रम का पूरा फायदा उठा सके। सतीश धवन ने न सिर्फ उनकी परिकल्पना को साकार किया, बल्कि भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊँचाई देते हुए भारत को दुनिया के गिने-चुने देशों की सूची में शामिल कर दिया। वे एक बेहतरीन इनसान भी थे, जिन्होंने कई लोगों को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया।भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम (इसरो) की वेबसाइट के अनुसार रॉकेट वैज्ञानिक सतीश धवन ने संस्था के अध्यक्ष के रूप में अपूर्व योगदान किया। उनके प्रयासों से भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में असाधारण प्रगति हुई तथा कई बेहतरीन उपलब्धियाँ हासिल हुईं।वेबसाइट के अनुसार अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख रहने के दौरान ही उन्होंने बाउंड्री लेयर रिसर्च की दिशा में अहम योगदान किया, जिसका जिक्र दर्पन स्लिचटिंग की पुस्तक 'बाउंड्री लेयर थ्योरी' में किया गया है।सतीश धवन इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस बैंगलुरु के लोकप्रिय प्राध्यापक थे। उन्हें इस संस्थान में पहला सुपरसोनिक विंड टनेल स्थापित करने का श्रेय है। उनके प्रयासों से संचार उपग्रह इन्सैट, दूरसंवेदी उपग्रह आईआरएस और ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी का सपना साकार हो सका और भारत चुनिंदा देशों की कतार में शामिल हो गया। श्रीनगर में 25 सितंबर 1920 को जन्मे सतीश धवन ने इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में कई सकारात्मक बदलाव किए। उन्होंने संस्थान में अपने देश के अलावा विदेशों से भी युवा प्रतिभाशाली फैकल्टी सदस्यों को शामिल किया। उन्होंने कई नए विभाग भी शुरू किए और छात्रों को विविध क्षेत्रों में शोध के लिए प्रेरित किया। तीन जनवरी 2002 को उनके निधन के बाद श्रीहरिकोटा स्थित उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र का नाम बदलकर प्रो. सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र कर दिया गया। उनके निधन पर तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने शोक व्यक्त करते हुए कहा था कि भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के शानदार विकास और उसकी ऊँचाई का काफी श्रेय प्रो. सतीश धवन के दूरदृष्टिपूर्ण नेतृत्व को जाता है।