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Written By भाषा
Last Modified: नई दिल्ली (भाषा) , गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009 (22:01 IST)

बेलगाम बर्ताव से अदालत आहत

बेलगाम बर्ताव से अदालत आहत -
मद्रास उच्च न्यायालय में जनता पार्टी के नेता सुब्रमण्यम स्वामी पर हाल ही में हुए हमले जैसी वकीलों की संलिप्तता वाली उपद्रवी घटनाओं से आहत उच्चतम न्यायालय गुरुवार को ऐसे दुष्ट तत्वों से अदालतों को बचाने के जवाब तलाशता नजर आया।

न्यायमूर्ति बीएन अग्रवाल, न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति आफताब आलम की तीन सदस्यीय पीठ ने बीएमडब्ल्यू स्टिंग ऑपरेशन मामले में एनडीटीवी की ओर से मौजूद वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे से कहा कि कृपया हमें बताएँ...हम कैसे अपने न्यायालयों की हिफाजत करें। हमारे पास ऐसे उदाहरण हैं, जब कुछ लोग अदालतों में जबर्दस्ती घुसे और नारे लगाए। ऐसी ही घटना पटना और मद्रास उच्च न्यायालय में हुई।

उच्च न्यायालय ने कहा ऐसे लोग साल्वे जैसे वकीलों को भी बाहर ले जाकर उन पर हमला कर सकते हैं। इसके जवाब में साल्वे सहमत हुए और मद्रास उच्च न्यायालय में कुछ तत्वों के स्वामी पर अंडे फेंकने और उन पर हमला करने के मामले का हवाला देते हुए कहा कि ऐसे दुष्ट तत्वों पर लगाम कसने का समय आ गया है।

साल्वे ने दलील दी थी कि टीवी चैनल द्वारा पर्दाफाश किए गए एक मामले में अभियोजन पक्ष के अहम गवाह सुनील कुलकर्णी को प्रभावित करने की कोशिश करने के लिए वरिष्ठ वकील आरके आनंद और आईयू खान को दंडित कर एक उदाहरण पेश किया जाना चाहिए।

न्यायालय अवमानना अधिनियम कानून के तहत चार महीने के लिए अदालत में आने से प्रतिबंधित किए गए दोनों वकीलों आनंद और खान ने उच्च न्यायालय के निर्देशों को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल की थी।

साल्वे ने कहा ऐसे व्यक्तियों के लिए तीखी फटकार और ऐसी सजा होनी चाहिए, जो उदाहरण पेश करती हो। उन्होंने कहा सजा ऐसी हो, जिससे हर किसी को यह संदेश दिया जा सके कि अदालतें न्याय के प्रशासन में किसी तरह का अवरोध बर्दाश्त नहीं करेंगी।

वरिष्ठ वकील ने कहा कि आरके आनंद ने न्यायमूर्ति मनमोहन सरीन के समक्ष गत सात वर्ष से पेश होने के बावजूद इस मामले से (उन्हें न्यायमूर्ति सरीन को) हटाने के लिए अर्जी दाखिल की है।

उन्होंने कहा इस तरह के मामलों पर अदालतों को विचार नहीं करना चाहिए। न्यायमूर्ति सरीन की अध्यक्षता वाली पीठ ने ही स्टिंग ऑपरेशन पर स्वतः संज्ञान लेते हुए दोनों वरिष्ठ वकीलों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की पहल की थी।

मामले में न्यायालय की मदद कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल गोपाल सुब्रमण्यम ने उच्च न्यायालय से कहा कि व्यक्ति की निजता और प्रेस की स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संतुलित तरीका अपनाने की जरूरत है।