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Written By ND

नानकजी की कथनी-करनी में अंतर नहीं था

गुरु नानक
प्रीतमसिं

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गुरु नानकदेवजी का बहुमुखी प्रतिभावान जीवन दर्शन मानवतावादी दर्शन था। वे मानवीय समता, समानता, समरसता, सौहार्दता, विश्व बंधुत्व के प्रबल पैरोकार थे। जपुजी साहब के चौदहवें पद में वे स्पष्ट शब्दों में दर्शाते हैं- 'बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी साम्प्रदायिकता के घेरे में नहीं बँधता, क्योंकि उसका संबंध धर्म के सत्य मर्म के साथ होता है।' अपनी रचना में उन्होंने उच्चारण किया है- 'जेते जिआ तेते बाटानु' अर्थात संसार में जितने जीव हैं, उतने ही पंथी हैं, किंतु मनुष्य केवल आत्मसंयम और अपने मन को जीतने से विजय प्राप्त कर सकता है।

'मनि जीते जगु जीतु।'

श्री गुरु नानक का मत वर्गगत मतभेदों से ऊपर है। उनका मानना है कि मनुष्य अपने वर्गभेदों से ऊपर उठकर ही सच्चे मानव धर्म का निर्वाह कर सकता है। इस दिव्य विचारधारा को लेकर श्री गुरु नानक ने द्वेष, कलह से पीड़ित विश्व में प्रेम, एकात्मकता, समता, समानता एवं सौहार्दता की स्वस्थ लहर चलाई।
 
जपुजी साहब के चौदहवें पद में वे स्पष्ट शब्दों में दर्शाते हैं- 'बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी साम्प्रदायिकता के घेरे में नहीं बँधता, क्योंकि उसका संबंध धर्म के सत्य मर्म के साथ होता है।'


गुरुनानक की वाणी है- 'मेरे लिए समस्त ब्रह्मांड एक पावन मंडल है। जो ईश्वरीय सत्य के उसूलों से प्रेम करता है, वही सच्चा धर्मात्मा है। यह सारा ब्रह्मांड ही ईश्वरीय स्वरूप है।' गुरु नानकजी के मानव भ्रातृत्व एवं मानवता के प्रति प्रेम, सेवा के दिव्यसंदेश के प्रति स्वामी विवेकानंद ने लाहौर में अपने भाषण में जोरदार शब्दों में कहा था- 'पिछले जमाने में यहीं पर श्री गुरु नानक ने विश्व-प्रेम के अपने अद्वितीय सिद्धांत का प्रचार किया। इस धरती पर न केवल हिन्दुओं व मुसलमानों वरन संपूर्ण विश्व को भी गले लगाने के लिए उनका विशाल हृदय सदा खुला रहा है और उनकी भुजाएँ सदा खुली रहीं।'

श्री गुरु नानक का दृष्टिकोण इतना उदार एवं विशाल था कि उन्होंने अपनी रचनाओं में ईश्वर के हिन्दू एवं इस्लामी संबंधों का खुलकर प्रयोग किया। उन्होंने संसार के हर मजहब, वर्ण, वर्ग के जनमानस को 'एक पिता एकस के हम बारिक' के अमृतमयी दिव्य ज्ञान से सिंचित कर उस एक परमात्मा के नेक आदर्श इंसान बनने का उपदेश दिया।

गुरु नानकजी का व्यक्तित्व, दृष्टिकोण और सामाजिक आचरण बहुत प्रभावशाली था। उन्होंने सज्जन, ठग, नूरशाह बली कंधारी, कोढ़ा, भूमिया जैसे अनेक अन्यायियों का अपनी नम्रता, सहजता, प्रेममयी वाणी से हृदय परिवर्तन कर नेक कर्मवान इंसान के समान जीवन जीने का संदेश दिया। उन्होंने नैतिकता को आदर्श आचरण के रूप में क्रियान्वित किया और उन्होंने रूढ़ि और आधुनिकता, कल्पना और उद्यम, आध्यात्मिक तथा समाजवाद में समन्वय करने का प्रयास किया।