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Last Updated : सोमवार, 19 फ़रवरी 2024 (19:44 IST)

बस 50 किमी और इसके बाद छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद खत्म, हिडमा के गांव से सीआरपीएफ की हुंकार

बस 50 किमी और इसके बाद छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद खत्म, हिडमा के गांव से सीआरपीएफ की हुंकार - Just 50 km and after this Naxalism will end from Chhattisgarh
क्या आप सीआरपीएफ के हैं...? दोरनापाल में मुझसे जब एक टेम्पो वाले ने यह पूछा तो मैं चौंक गया। नक्सलियों की यहां अपनी दुनिया है, जहां बस से उतरते ही अनजान लोगों की आंखें आपको घूरने लगती हैं। नेशनल हाईवे क्रमांक 30 राष्ट्रीय राजमार्ग पर सुकमा जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर दोरनापाल एक कस्बा है। यदि आप इस इलाके में नए, युवा और चुस्त-दुरुस्त हो तो सीआरपीएफ का होने की आप पर मुहर लग लग जाती है।
 
देश में नक्सली आतंक की खौफनाक अनुभूति दोरनापाल में होती है, जहां बंगाल से लेकर झारखंड या नक्सलियों से जुड़ा कोई गुमनाम शख्स मूंगफली बेचते हुए नए लोगों पर नजर रखता है तो सीआरपीएफ का होने पर ऑटो में बिठाने से भी ड्राइवर डरते हैं। दोरनापाल में उतरकर मैं दाएं मुड़ा और करीब 500 मीटर दूर गया तो एक बड़ा से गेट लगा हुआ था। उस गेट पर शहीद जवानों के स्मृति स्थल बने थे।
 
सुकमा और बीजापुर के जंगलों में नक्सलियों के स्मृति स्थल तो बड़े-बड़े मिल जाएंगे लेकिन सीआरपीएफ या पुलिस के शहीदों के परिवारों को तो यहां से जान बचाने के लिए पलायन करना पड़ता है, अत: उनकी याद में कोई निर्माण की कल्पना भी मुश्किल होती है।
 
गेट के ठीक आगे सीआरपीएफ की एक बटालियन का मुख्यालय देखकर राहत का सांस ली। रोड पर अत्याधुनिक हथियार लिए डीआरजी के जवान बैठे थे। दोरनापाल से ही शुरू होती है नक्सलियों की दुनिया। इन इलाकों में मारे जाने वाले नक्सलियों की याद में बड़े-बड़े स्तंभ बनाते हैं और वहां पर समय-समय पर जश्न भी मनाते हैं जिसमें आसपास के गांवों के हजारों लोग शामिल होते हैं।
 
दोरनापाल में सवारी जीप खड़ी होती है जिससे ताड़मेटला, बुर्कापाल, गोंडापल्ली, चिंतागुफा, कोरईगुंडम और तोंगुडा जैसे घोर नक्सल प्रभावित गांवों में जाया जा सकता है। ये सभी गांव 60 से 70 किलोमीटर के इलाके में बसे हैं। जब आप इस जीप पर चढ़ते हैं और स्थानीय नहीं लगते तो जीप का ड्राइवर यह पूछता है कि आपको कहां जाना है? और कहीं आप सीआरपीएफ के तो नहीं हो? इस इलाके में सीआपीरएफ के जवानों से नक्सली गहरी नफरत करते हैं और उनकी जान को हमेशा खतरा होता है। सीआपीरएफ के जवानों के लिए भी इन गाड़ियों में बैठना बिलकुल सुरक्षित नहीं होता।

 
इन क्षेत्रों में नक्सलियों की दहशत रही है। 6 अप्रैल 2010 को ताड़मेटला में सीआरपीएफ के 76 जवानों की नक्सलियों के हत्या कर दी थी। यह हत्या इतनी निर्मम थी कि नक्सली जवानों के जूतों के साथ पंजे भी काटकर ले गए थे। करीब 14 साल होने को आए हैं लेकिन उन 76 जवानों की हत्या का सही कारण अब तक पता लगाने में हमारी सुरक्षा एजेंसियां नाकाम रही हैं।
 
इन्हीं इलाकों में 24 अप्रैल 2017 को सर्चिंग पर निकले सीआरपीएफ की 74वीं बटालियन के 26 जवानों को 300 नक्सलियों ने घेरकर मार डाला था। नक्सलियों ने हमले का बाकायदा वीडियो बनाया। हमले से लूटकर ले गए हथियारों की जंगल में प्रदर्शनी लगाई और सफलता का जश्न भी मनाया।
 
 सुकमा और बीजापुर के बीच इन्हीं इलाकों में एक गांव बसा है पूवर्ती। यह आम गांव नहीं बल्कि कुख्यात नक्सली नेता माडवी हिडमा का गांव है जिसके हाथ हमारे सैकड़ों जवानों के खून से रंगे हैं।
 
जगरगुंडा और बीजापुर के जंगलों में पग-पग पर मौत होती है। यहां आईईडी कहां पर बिछाकर रखा गया हो, कुछ नहीं बताया जा सकता। ताड़मेटला, बुर्कापाल, गोंडापल्ली, चिंतागुफा, कोरईगुंडम और तोंगुडा जैसे घोर नक्सल प्रभावित इलाकों में रात-दिन सीआपीरएफ के जवान डटे हुए रहते हैं। उनकी वीरता का ही कमाल है कि अब इन इलाकों में पक्के रोड बन पाए हैं। नक्सलियों के खौफ से कभी जहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता था, वहां सीआपीरएफ ने अपना मजबूत गढ़ बना लिया है और उन्होंने देश के गृहमंत्री अमित शाह को चाय की दावत भी दी है।
 
21 अप्रैल 2012 की शाम को नक्सलियों ने सुकमा जिले के केरलापाल क्षेत्र के माझीपारा गांव में कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन के 2 अंगरक्षकों की हत्या कर कलेक्टर को अगवा कर लिया था। नक्सलियों ने कलेक्टर की रिहाई के लिए सरकार के सामने 'ऑपरेशन ग्रीन हंट' को बंद करने और उनके 8 सहयोगियों को रिहा करने की बात कही थी। 'ऑपरेशन ग्रीन हंट' रेड कॉरिडोर वाले 5 राज्यों में नवंबर 2009 में शुरू किया गया था।
 
अब सीआपीरएफ के जांबाजों ने हिडमा के पूवर्ती गांव में कैम्प स्थापित कर नक्सलियों की कमर तोड़ दी है। सीआरपीएफ का ध्येय वाक्य राष्ट्र प्रथम से शुरू होता है। माडवी हिडमा के पूवर्ती गांव में सीआरपीएफ के जांबाज डट गए हैं। नक्सलियों ने सुरक्षाबलों के नए कैंप पर दिनदहाड़े अंडर बैरल ग्रेनेड लॉन्चर से हमला भी किया लेकिन जवानों ने बहादुरी से मुकाबला करते हुए उन्हें खदेड़ दिया।
 
सीआरपीएफ ने न केवल नक्सलियों को इन इलाकों से भगाने और उन्हें बड़ी संख्या में मार गिराने में सफलता हासिल की है बल्कि पक्के रोड और मोबाइल टॉवर स्थापित करके विकास के रास्ते पर गरीब आदिवासियों के जीवन को रोशन भी किया है।
 
कई दशकों से नक्सलियों की समांतर सरकारें चलने वाले इन इलाकों पर जीत हासिल करके सीआरपीएफ के जांबाज बहुत खुश हैं। वे अपने शहीद साथियों पर फख्र करते हुए कह रहे हैं, बस 50 किलोमीटर और इसके बाद छत्तीसगढ़ से नक्सलवाद खत्म!
 
Edited by: Ravindra Gupta
 
(इस लेख में व्यक्त विचार/ विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/ विश्लेषण 'वेबदुनिया' के नहीं हैं और 'वेबदुनिया' इसकी कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है।)
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