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इंटरनेट से उकता गई है जनरेशन नेक्स्ट

इंटरनेट से उकता गई है जनरेशन नेक्स्ट - Internet, indian youth, internet users
# माय हैशटैग
 
आज के युवाओं और किशोरों की तकनीक तक असीमित पहुंच है। इस कारण वे कई ऐसे कार्य भी सुविधा से कर लेते हैं जिन्हें करने में पहले काफी परेशानी होती थी। अनेक काम जो पहले भौतिक रूप से कहीं जाकर करने होते थे, वे अब ऑनलाइन होने लगे हैं। फ्लाइट, ट्रेन या सिनेमा की टिकट बुक करनी हो या राशन खरीदना हो, बैंक का कोई काम हो या बीमे की किस्त जमा करनी हो, अब सब बैठे-बैठे ही किए जा सकते हैं। इस कारण आने-जाने में काफी समय बचता है और पैसे की भी बचत होती है। बुजुर्गों की तुलना में युवा लोग ये तकनीकें आसानी से अपना रहे हैं। इन युवा लोगों के पास समय का सदुपयोग करने के साधन उपलब्ध हैं।


एयरपोर्ट पर बोर्डिंग का इंतजार करते हों या डॉक्टर से मिलने के लिए वेटिंग रूम में बैठे हों, ये अपने मोबाइल फोन या लैपटॉप पर समय का पूरा उपयोग कर लेते हैं। अपनी ई-मेल चेक कर लेते हैं और जरूरी मेल का जवाब दे देते हैं। मोबाइल गेम भी खेल लेते हैं या ट्वीट करके अपनी स्थिति बता देते हैं। राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय घटना हो तो उस पर अपनी राय देने से भी नहीं चूकते और न ही देरी करते हैं। लेकिन अब इन लोगों के सामने भी परेशानी हो रही है।

अब ये युवा अपने स्मार्टफोन और लैपटॉप से भी ऊब चुके हैं। इंटरनेट की हाईस्पीड ने इनकी गति बढ़ा दी है और इन्हें बेचैन बना दिया है। यह बेचैनी उन्हें लैपटॉप पर स्क्रॉल करते हुए और मोबाइल पर नए-नए ऐप खोलते और बंद करते हुए देखी जा सकती है। नए-नए ऐप खोलते हुए इनके मनोभाव बदलते रहते हैं और इनके दिमाग का खालीपन भी समझा जा सकता है।

यही स्थिति कुछ वर्ष पहले तक टीवी के सामने रिमोट लेकर बैठे लोगों की होती थी। हजारों मोबाइल ऐप के बीच इन्हें अपने काम के ऐप नहीं मिलते और ये फोन रखते हुए मुंह बिचकाते नजर आते हैं। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जब आप अपने स्मार्टफोन का इस तरह उपयोग करते हैं, तब आप इसकी कल्पना इस तरह कर सकते हैं, मानो कोई व्यक्ति बेचैन हो और अपने घर में एक कमरे से दूसरे कमरे में बिना किसी उद्देश्य के आ-जा रहा हो। ये लोग ऊपर से बहुत व्यस्त दिखते हैं, लेकिन व्यस्त नहीं होते, अस्त-व्यस्त होते हैं।

पढ़ाई के प्रति गंभीर होने वाले किशोरों और युवाओं को आप इस तरह के गैजेट्स से दूर देखेंगे। जाहिर है उनके लिए जीवन का लक्ष्य कुछ और है और वे अपने समय का उपयोग करना जानते हैं। युवा और किशोरों का एक बड़ा वर्ग चौबीसों घंटे स्मार्टफोन के साथ ही रहता है। वॉशरूम में कमोड पर बैठे-बैठे लंबे समय तक वह स्मार्टफोन का उपयोग करता है। रात को बिस्तर पर सोने के पहले और उठने के तत्काल बाद तो उसके हाथ में स्मार्टफोन होता ही है, रात को नींद खुल जाए, तब भी वह स्मार्टफोन पर जूझता नजर आता है।

अनेक युवा मानते हैं कि यह स्मार्टफोन केवल एक उपकरण नहीं है, बल्कि उनके लिए दुनिया को देखने की एक खिड़की है, जहां से वे विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। नए विचार अपना सकते हैं और अपने विचार दूसरों से शेयर कर सकते हैं। कई लोगों का मानना है कि अगर आप अपने फोन पर वीडियो क्लिप देख रहे हैं, सोशल मीडिया पर लाइक और कमेंट पोस्ट कर रहे हैं, कोई नया समाचार पढ़ रहे हैं, तब आप कैसे कह सकते है कि हम फोन के साथ बोर हो रहे हैं?

स्मार्टफोन से उकताहट वह होती है, जब आप फोन पर सब कुछ करने के बाद उसे एक तरफ पटक देते हैं और आपके चेहरे पर झुंझलाहट होती है। आप सोशल मीडिया की किसी साइट पर जाते हैं और पाते हैं कि वहां पोस्ट की जाने वाली ज्यादातर सामग्री आपके काम की नहीं है। आप देखते हैं कि हजारों लोग एक ही तरह का काम कर रहे हैं, एक ही तरह का विचार व्यक्त कर रहे हैं या वे लोग किसी सोची-समझी रणनीति के तहत यह सब कर रहे हैं। वर्तमान में कहीं-कहीं तो प्राइमरी स्कूल के बच्चों के हाथ में फोन थमा दिए जाते हैं।

कुछ महीनों में ही ये बच्चे फोन के तमाम उपयोग सीख जाते हैं और नए-नए प्रयोग करने लगते हैं। कॉलेज जाने वाले अधिकांश विद्यार्थी यह समझते हैं कि वे सोशल मीडिया पर खासकर यू-ट्यूब जैसी वेबसाइट पर वीडियो शेयर करके काफी पैसे कमा सकते हैं। हजारों युवक इस काम में लगे हुए हैं, लेकिन 5 प्रतिशत भी सालभर में 100 डॉलर से अधिक नहीं कमा पाते। वे जिस वीडियो से अपेक्षा करते हैं, वह वायरल नहीं हो पाता और जो वायरल होता है, उसके बारे में उन्हें अंदाज नहीं होता।

मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि अभिभावकों को चाहिए कि वे अपने बच्चों से कहें कि कुछ घंटों के लिए मोबाइल फोन से दूर रहें, भले ही उन्हें पढ़ाई करनी हो या नहीं करनी हो। इस समय का उपयोग वे मैदान में जाकर खेलने या दोस्तों के साथ गपबाजी करने में लगाएं, तो बेहतर है। माता-पिता के साथ बैठकर उनसे अनुभव बांटना तो सर्वश्रेष्ठ है ही। दुर्भाग्य की बात है कि अभिभावकों का एक वर्ग यह समझता है कि उनके बच्चे तकनीक से बहुत ज्यादा परिचित हैं और इसीलिए वे बहुत बुद्धिमान हैं जबकि वास्तविकता इसके ठीक विपरीत होती है।
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