अवधेश कुमार
तो वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी साकार हो गया। हालांकि अभी भी इसे लेकर देश में दो खेमे बने हुए हैं। दोनों दो विपरीत ध्रुवों पर खड़े हैं। एक पक्ष, जिसमें सरकार तथा इसके समर्थक शामिल है, इसे आजादी के बाद का सबसे बड़ा और क्रांतिकारी कर सुधार साबित कर रहे हैं। उनका मानना है कि देश में समान वस्तु या सेवा पर सभी जगह समान कर की व्यवस्था बहुत पहले लागू की जानी चाहिए थी। उनके अनुसार यदि यह पहले लागू हो गया होता, तो देश की आर्थिक दशा आज ज्यादा बेहतर होगी, इससे कर चोरी एवं भ्रष्टाचार पर काफी हद तक अंकुश लग गया होता तथा आम आदमी को भी उचित कीमत पर वस्तु एवं सेवा उपलब्ध होता। सरकार इसे कितना महत्व दे रही है, इसका प्रमाण है इसके लागू करने का उसका तरीका। ठीक आजादी की घोषणा की तरह। जाहिर है, वह इसे आजादी के समान ही मान रही है।
इसके विपरीत दूसरा पक्ष है जो इसकी अनेक प्रकार से आलोचना कर रहा है। आलोचकों में अलग-अलग प्रकार के लोग हैं। इनमें एक वर्ग वैसे लोगों का हैं जो इसे बिल्कुल स्वीकार करने को तैयार नहीं। उनका मानना है कि यह आजादी का नहीं बल्कि गुलामी का प्रतीक है। वे इसकी जगह दूसरे प्रकार की कर व्यवस्था की वकालत कर रहे हैं। किंतु जिस बिंदू पर सर्वाधिक आलोचना हो रही है, वह यह है कि इसे लागू करने में जल्दबाजी की रही है। यानी इसके लिए जितनी तैयारी होनी चाहिए नहीं हो रही। इनके अनुसार जो अफरा-तफरी विमुद्रीकरण के समय हुई थी, उससे कहीं ज्यादा अफरा-तफरी इसके लागू किए जाने के बाद होगा। व्यापारियों का विभिन्न समूह इसका पुरजोर विरोध कर रहा है। कुछ व्यापारी संघों ने तो अपने व्यवसाय क्षेत्र में भारत बंद तक का आह्वान कर दिया। तो फिर सच क्या है? हम इसे देशहित में माने या अहित में? क्या वाकई इसके लागू होने से अफरा-तफरी या अस्त-व्यस्तता या अराजकता की स्थिति पैदा हो जाएगी? या यह सारी आलोचनाएं निराधार हैं?
अगर तैयारियां पूरी किए बगैर जीएसटी लागू किया जा रहा है, तो इसकी आलोचना होनी ही चाहिए। एक-एक कारोबारी तथा व्यक्ति के जीवन से जुड़े कर सुधार के पहले इसकी पूरी तैयारी होनी ही चाहिए। निस्संदेह, जीएसटी लागू करने के लिए सरकार के सामने लगभग एक दर्जन से भी ज्यादा नियमावली अधिसूचित करना और उससे संबंधित सॉफ्टवेयर तैयार करना, आवश्यक मानव-संसाधन का प्रबंध और उनका प्रशिक्षण सुनिश्चित करना, व्यवसायी वर्ग को नई प्रणाली के अनुकूल तैयार करना तथा उनके रिटर्न अपलोड करने के लिए प्रोफेशनल टीम तैयार करना जैसी अनेक चुनौतियां रही हैं। आलोचकों का कहना है कि जीएसटी का बैक-इंड सॉफ्टवेयर अब तक नहीं बन पाया है। इसी सॉफ्टवेयर के जरिए विभागीय अधिकारियों द्वारा जीएसटी संबंधी समस्त दस्तावेजों की देखरेख की जाएगी। इसके अभाव में यह प्रणाली काम नहीं करेगा।
विरोधियों का यह भी कहना है कि जीएसटी कानून लागू करने से संबंधित विभिन्न नियमावली भी अब तक अधिसूचित नहीं की गई है। अगर रजिस्ट्रेशन और कंपोजिशन संबंधी नियमावलियों की अधिसूचना अब तक नहीं हो सकी है, तो फिर इसे लागू करने का तुक क्या है? नियमावलियों की अधिसूचना के बाद उनकी प्रतियां प्रोफेशनल लोगों तथा अधिकारियों तक पहुंचाने का काम पूरा करना होगा। इसके अलावा, जीएसटी के इनवॉइस फॉरमेट में दी जानी वाली जानकारियों का विवरण भी अब तक उपलब्ध नहीं कराया गया है। इससे टैक्स प्रोफेशनल्स उलझन में हैं कि आखिर वे किस तरह इतने सारे डाटा संग्रहीत करेंगे।
यह सब आलोचनाएं ऐसी हैं जो कि ऐसे बिल्कुल अमूलचूल परिवर्तन वाले कर प्रणाली लागू होने के पूर्व उठाया जाना अस्वाभाविक नहीं है। किंतु यह सब एकपक्षीय है। यह मानना उचित नहीं है कि सरकार ने इन सबकी चिंता की ही नहीं और इससे संबंधित कदम नहीं उठाएं। जीएसटी का फ्रंट-इंड सॉफ्टवेयर तैयार है। उसकी टेस्टिंग का काम पूरा हो चुका है और प्रशिक्षण का काम चल रहा है। द बैक-इंड सॉफ्टवेयर भी आ चुका है। उसके प्रशिक्षण की तैयारी चल रही है। आरंभ में बैंक अधिकारियों के समूहों ने भी इतने कम समय में पूरी तैयारी करने में असमर्थतता जताई थी, लेकिन सरकार द्वारा 1 जुलाई से लागू करने का संकल्प दिखाने के बाद वे भी रास्ते पर आ गए है। आप गहराई से देखेंगे तो विरोध करने वाले व्यापारियों का वर्ग, टैक्स प्रोफेशनल्स जिसमें हम चार्टर्ड अकाउंटेंट, करों के विशेषज्ञ वकील और कंपनी सेक्रेटरी आदि को ले सकते हैं, सब तकनीकी मुद्दे उठा रहे हैं जिनका समाधान आसानी से संभव है। भारी भीड़ को देखते हुए एक जुलाई से पहले सभी का पंजीकरण होने की संभावना कम है, इसलिए सरकार ने स्रोत पर कर कटौती (टीडीएस) तथा स्रोत पर कर संग्रह (टीसीएस) के प्रावधानों का क्रियान्वयन टाल दिया है। साथ ही ई-कॉमर्स पर सामान बेचने वाली छोटी कंपनियों को पंजीकरण से छूट दी है।
एक जुलाई से लागू हो रहे जीएसटी के तहत आपूतिकर्ता को भुगतान करते समय ई-वाणिज्य कंपनियों को एक प्रतिशत टीसीएस संग्रह करने की जरूरत नहीं होगी। केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) कानून के तहत अधिसूचित इकाइयों को 2.5 लाख रुपए से अधिक की वस्तुओं या सेवाओं की आपूर्ति के लिए भुगतान पर एक प्रतिशत टीडीएस संग्रह की आवश्यकता है। इस प्रावधान को भी फिलहाल स्थगित रखा गया है। वित्त मंत्रालय ने साफ कर दिया है कि व्यापार एवं उद्योग से मिली प्रतिक्रिया के आधार पर सरकार ने सीजीएसटी (स्टेट जीएसटी कानून, 2017 के तहत टीडीएस (धारा 51) तथा टीसीएस (धारा 52) से जुड़े प्रावधान को आगे टालने का निर्णय किया है। इस कदम का एकमात्र लक्ष्य जीएसटी का सुचारू क्रियान्वयन सुनिश्चत करना है। बीस लाख रुपए से कम कारोबार करने वाली छोटी कंपनियों को भी ई-वाणिज्य पोर्टल के जरिए वस्तुओं एवं सेवाओं की बिक्री के लिए जीएसटी के अंतर्गत स्वयं का पंजीकरण कराने की आवश्यकता नहीं होगी। साफ है कि ये कदम स्रोत पर कर कटौती के पात्र व्यक्तियों ई-कॉमर्स कंपनियों और उनके आपूतर्किर्ताओं को इस ऐतिहासिक कर सुधार के लिए तैयार होने के लिए उठाया गया है। वैसे जीएसटी नेटवर्क पोर्टल टीडीएस, टीसीएस कटौती करने वालों तथा ई-वाणिज्य परिचारकों का पंजीकरण शुरू भी कर चुका है।
संपूर्ण कर प्रक्रिया को एकबारगी बदलकर उसमें एकरुपता लाने वाले ऐसे क्रांतिकारी बदलाव में समस्याएं आना स्वाभाविक है। किंतु इसका यह अर्थ नहीं कि समस्याएं आ रही हो तो इसे लागू ही नहीं किया जाए। सन 2000 में अटलबिहारी सरकार के समय इसकी अवधारणा रखी गई। उसके बाद से इस पर लगातार चर्चा चलती रही। संप्रग सरकार में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने 2006-7 के बजट में इसका प्रावधान रखा तथा 1 अप्रैल 2010 से इसे लागू करने की तिथि भी निर्धारित कर दी। वर्तमान सरकार ने भी अप्रैल 2016 से ही इसे लागू करने का मन बना चुकी थी। तो क्या इसे अनंत काल के लिए टालते रहा जाए? ऐसा कदम, जिससे कर में बहुरुपता खत्म हो जाएगी। हर राज्य में एक वस्तु या सेवा पर एक ही प्रकार का कर लगने का मतलब होगा उनका मूल्य एक ही होना। यह किसी देश के विकास के लिए आवश्यक है। निष्पक्ष विशेषज्ञों का कहना है कि जीएसटी से कर आधार बढ़ेगा, कर चोरी पर लगाम लगेगा। नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक जीएसटी लागू होने से देश के सकल घरेलू उत्पाद में करीब 1 से 2 प्रतिशत वृद्धि हो सकती है। सच यह है कि इससे उपभोक्ताओं और छोटे व्यापारियों को फायदा होगा, भ्रष्टाचार में और कीमतों में कमी आएगी। इसके अलावा कर के दायरे का विस्तार होगा। वस्तुतः जीएसटी के लागू होते ही केंद्र को मिलने वाला उत्पाद शुल्क, सेवा कर सब खत्म हो जाएंगे। राज्यों को मिलने वाला वैट, मनोरंजन कर, लक्जरी टैक्स, लॉटरी टैक्स, एंट्री टैक्स, चुंगी वगैरह भी खत्म हो जाएगी। हालांकि राज्यों की मांग के कारण पेट्रोल, डीजल, केरोसीन, रसोई गैस पर अलग-अलग राज्य में जो कर लगते हैं, वो अभी कुछ साल तक जारी रहेंगे।
इसके लागू होने के बाद टैक्स का बराबर हिस्सा केंद्र और राज्यों को मिलेगा। कई राज्यों ने आशंका प्रकट की थी कि उन्हें पहले से कम कर मिलेगा। केन्द्र ने पांच वर्षों तक उनकी घाटे की भरपाई की जिम्मेवारी ली है। जिन छोटे व्यवसायियों को लेकर आशंकाएं प्रकट की गई हैं उनको कंपोजिशन स्कीम के तहत 75 लाख तक के कारोबार पर केवल एक प्रतिशत कर देकर सारे झंझट से मुक्ति की व्यवस्था कर दी गई है। जहां तक महंगाई बढ़ने की बात है तो यह सच है कि ज्यादातर देशों में जीएसटी का असर आरंभ में मामूली मुद्रास्फीति के रूप में देखने को मिला है। जीएसटी लागू होने से कुछ वस्तुओं के लिए तो कर की दरें बढ़ जाती हैं और कुछ के लिए नीचे आती हैं। तो इससे संतुलन बन जाता है। जिस तरीके से जीएसटी का मसौदा तैयार किया गया है, उससे ज्यादा मंहगाई बढ़ने की संभावना नहीं है। किंतु कर कटौती का लाभ अंतिम उपभोक्ता को मिले इसे सुनिश्चित करने की व्यवस्था तो करनी ही होगी।
वास्तव में आजादी के बाद यह अब तक का सबसे बड़ा कर सुधार है। इसके लागू करने में आरंभ में समस्याएं आएंगी, कुछ परेशानियां भी होंगी, आरंभ में कुछ समय तक उलझने और अनिश्चितताएं रहेंगी, किंतु अंतिम रुप में यह सबके हित में है। इसलिए इसका विरोध करने की जगह इसमें सहयोग किया जाना चाहिए। कर आसान और पारदर्शी हो, अनेक करों के झंझटों से मुक्ति मिले तथा व्यापारियों को कर इंस्पेक्टरों से छूट मिले इसकी मांग लंबे समय से हो रही थी। जीएसटी इन सबको पूरा करने वाला कदम है। अगर यह पूरा नहीं कर पाया तो इसमें भी बदलाव हो सकता है।