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Written By Author कृष्णमोहन झा
Last Updated : बुधवार, 12 जनवरी 2022 (19:58 IST)

चुनाव आयोग सख्ती करे तो निरापद हो सकते हैं चुनाव

चुनाव आयोग सख्ती करे तो निरापद हो सकते हैं चुनाव - Elections can be safe if the Election Commission is strict
देश में कोरोना की तीसरी लहर लहर आ चुकी है और वैज्ञानिक एवं चिकित्सा विशेषज्ञ यह आशंका जता रहे हैं कि  इस लहर का प्रकोप अगले दो महीनों तक बना रह सकता है । इसी बीच चुनाव आयोग ने पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर की विधानसभाओं का चुनाव कार्य क्रम घोषित कर दिया है।इस चुनाव कार्य क्रम को देखकर यह समझना कठिन नहीं है कि कोरोना की तीसरी लहर के दौरान ही इन राज्यों में  पूरी चुनाव प्रक्रिया संपन्न होगी और 10 मार्च को जब चुनाव परिणामों की घोषणा की जाएगी तब तक देश में कोरोना की तीसरी लहर का प्रभाव मंद पड़ने लगेगा।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कोरोना की भयावह रफ्तार के बीच पांच राज्यों में चुनाव प्रक्रिया को निर्विघ्न संपन्न  कराना निश्चित रूप से एक कठिन चुनौती है परंतु चुनाव आयोग ने कोरोना की भयावह  रफ्तार के बावजूद इन राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने का फैसला इसलिए किया क्योंकि चुनावों में अपना भाग्य आजमाने के लिए तैयार बैठे राजनीतिक दल  कोरोना के कारण चुनाव टालने के पक्ष में नहीं थे इसलिए चुनाव आयोग ने सभी दलों की राय जानने के बाद पांच राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव कार्य क्रम घोषित कर दिया।

यह सही है कि चुनाव आयोग ने कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए राजनीतिक दलों के चुनाव अभियान पर बहुत सी पाबंदियां भी लगा दी हैं परंतु यह कहना ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌कठिन है कि इन चुनावों में किस्मत आजमाने वाले राजनीतिक दल अपने प्रचार अभियान के दौरान कोविड अनुरूप व्यवहार की सीमाओं का रंच मात्र उल्लंघन भी नहीं करेंगे। जाहिर सी बात है कि कोई भी सत्तारूढ़ दल दुबारा सत्ता में वापसी की महत्वाकांक्षा से मुक्त नहीं हो सकता और विपक्षी दल सत्ता हासिल करने का सुनहरा स्वप्न साकार करने के लिए चुनावों की बेसब्री से इंतजार कर रहा होता है।

अतीत के अनुभव बताते हैं कि चुनावों में आचार संहिता के उल्लंघन के आरोपों से कोई भी राजनीतिक  दल मुक्त नहीं रह पाता फिर भी चूंकि इस समय चुनाव आयोग ने  कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न विकट परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक दलों पर अपरिहार्य पाबंदियां लगाई हैं इसलिए राजनीतिक दलों से भी उनके पालन की अपेक्षा करना स्वाभाविक है।

गौरतलब है कि  मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने हाल में पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा विधानसभाओं का जो चुनाव कार्य क्रम घोषित किया है उसके अनुसार उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए मतदान सात चरणों में तथा मणिपुर विधानसभा के लिए दो चरणों में मतदान प्रक्रिया संपन्न कराई जाएगी जबकि पंजाब, गोवा और उत्तराखंड विधानसभाओं के लिए केवल एक चरण में ही मतदान की प्रक्रिया संपन्न कराने की घोषणा चुनाव आयोग ने की है।

चुनाव आयोग ने इन सभी राज्यों में 15 जनवरी तक  रैलियों,रोड शो, पदयात्राओं, साइकिल और बाइक रैली आदि पर पाबंदी लगा दी है । इन राज्यों में उम्मीदवार केवल डोर टू डोर कैंपेन कर सकेंगे और डोर टू कैंपेन में भी अधिकतम  पांच व्यक्ति ही शामिल हो सकेंगे। 15 जनवरी के बाद कोरोना संक्रमण की स्थिति का जायजा लेकर चुनाव आयोग यह तय करेगा कि इन पाबंदियों में कितनी छूट दी जा सकती है। चुनाव आयोग द्वारा राजनीतिक दलों पर लगाई गई इन पाबंदियों का निश्चित रूप से स्वागत किया जाना चाहिए।

यह पाबंदियां भले ही कुछ राजनीतिक दलों को रास न आएं परंतु इसके अलावा चुनाव आयोग के पास और कोई विकल्प नहीं था। दरअसल कोरोना की तीसरी लहर की भयावहता को देखते हुए  अब तो यह   प्रतीत होने लगा  है कि  इन पांच राज्यों में राजनीतिक दलों को आगे भी प्रचार हेतु  वर्चुअल रैलियों पर ही निर्भर रहना पड़ेगा। चुनाव आयोग से भी यह अपेक्षा गलत नहीं होगी कि वह इन पांचों राज्यों के विधानसभा चुनावों में किस्मत आजमाने वाले सभी राजनीतिक दलों को अपने चुनाव प्रचार में कोविड अनुरूप व्यवहार करने के लिए विवश करे। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष लगभग इसी समय चुनाव आयोग ने पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न कराए थे और उस समय कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप अपने चरम पर था।

तब कुछ राजनीतिक दलों की रैलियों में भारी भीड़ जुटने पर मद्रास हाई कोर्ट ने चुनाव आयोग को आड़े हाथों लिया था। मद्रास हाई कोर्ट की फटकार के बाद चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों की रैलियों पर कुछ प्रतिबंध तो अवश्य लगाए थे परंतु तब तक काफी देर हो चुकी थी। ऐसा प्रतीत होता है कि चुनाव आयोग ने उस असहज स्थिति से बचने के लिए पांच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही 15 जनवरी तक राजनीतिक दलों की सार्वजनिक रैलियों पर रोक लगा दी है लेकिन कोरोना की तीसरी लहर का पीक फरवरी में आने के अनुमान अगर सच होते हैं तो चुनाव आयोग को 15 जनवरी के बाद भी सार्वजनिक रैलियों पर प्रतिबंध जारी रखने का फैसला करने के लिए विवश होना पड़ेगा। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि तीसरी लहर के प्रकोप की भयावहता को देखते हुए राजनीतिक दलों को चुनाव प्रचार में संयम का परिचय देना चाहिए। 
 
चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में वर्चुअल रैलियों और डोर टू डोर कैंपेन की जो अनुमति दी है वह निःसंदेह कोऱोना काल बीतने के बाद होने वाले चुनावों में भी उपयोगी मानी जा सकती है। इस तरह  चुनाव प्रचार करने से प्रत्याशियों के चुनाव खर्च में भी कमी आएगी। चुनाव अभियान के दौरान कई बार अप्रिय विवाद भी उठ खड़े होते हैं। डिजिटल चुनाव प्रचार से ऐसे विवादों पर भी रोक लग सकेगी। चुनाव आयोग को यह प्रयोग आगे होने वाले चुनावों में करना चाहिए। यद्यपि ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल चुनाव प्रचार की अपनी सीमाएं हो सकती हैं परंतु कुछ क्षेत्रों से शुरुआत की जा सकती है। असली उत्सुकता का विषय यह है कि 15 जनवरी के बाद चुनाव आयोग पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में सार्वजनिक रैलियों पर प्रतिबंध जारी रखता है अथवा  घोषित प्रतिबंधों में कुछ देने पर विचार करता है।