सबसे पहले तो पीएम नरेंद्र मोदी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बातों का अनुमोदन या विरोध करना चाहिए।कारण कि योगी आदित्यनाथ एक तरफ उर्दू भाषा को मौलवी और कठमुल्लाओं की भाषा बता रहे हैं, तो दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी पार्लियामेंट में अक्सर मिर्जा ग़ालिब से लेकर निदा फ़ाज़ली तक के शेर सुनाते रहे हैं।ये दोनों महान शायर न सिर्फ मुस्लिम थे, बल्कि उनकी शायरी बड़े ठाठ से उर्दू और हिंदी शब्दों का अद्भुत मिश्रण है।
यदि योगी ठीक हैं तो मान लेना पड़ेगा कि मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में जो लगभग सौ देशों की यात्राएं की थीं उनमें से अधिकांश मुस्लिम देशों में जाकर बहुत बड़ी गलती की।यदि योगी सही हैं तो फिर क्यों न माना जाए कि कुछ समय पहले मोदी ने ब्रुनेई नामक देश जाकर बहुत बड़ी गलती की थी क्योंकि वो तो मुस्लिम देश ही नहीं बल्कि मोदी के पहले वहां अभी तक कोई भारतीय प्रधानमंत्री गया ही नहीं।जान लें कि ब्रुनेई में गिनती के हिंदू लोग रहते हैं, लेकिन उन्हें पूरा सम्मान मिला हुआ है।
यदि योगी सही हैं तो स्वर्ग में बैठे भाजपा के पूर्व प्रधानमंत्री और भाजपा की मातृ संस्था जनसंघ के शिल्पकारों में से एक स्वर्गीय अटलबिहारी वाजपेयी तो गहरे सदमे में होंगे।वजह कि जब वे प्रधानमंत्री होते हुए पाकिस्तान की आधिकारिक यात्रा पर गए थे, तो सारे प्रोटोकॉल तोड़ते हुए उर्दू के एक और कालजयी शायर फैज अहमद फैज से मिलने लाहौर में उनके घर ही चले गए थे।दरअसल, अटलजी को तब फैज साहब की एक नज़्म बेहद पसंद आई थी जो खालिस उर्दू में कही गई थी।
यदि योगी आदित्यनाथ के अनुसार, उर्दू भाषा मौलवियों और कठमुल्लाओं को पैदा करती है तो पूर्व राष्ट्रपति, भारत रत्न और महान वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम को मिसाइल मैन कहना बंद कर दिया जाना चाहिए।आखिरकार कलाम साहब भी तो तमिलनाडु के मुस्लिम परिवार से आते थे।यदि योगी सही हैं तो पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर जाकिर हुसैन को प्रतिष्ठित शिक्षाविद मानना तत्काल बंद कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे भी आखिरकार मुसलमान ही थे और जाहिर है कि उर्दू भी बोलते थे।यदि योगी की बातें तर्कसंगत लगती हैं तो अलीगढ़ और जामिया यूनिवर्सिटीज पर तत्काल ताले लगा देने चाहिए,क्योंकि ये दोनों विश्वविद्यालय उर्दू जबान की देन हैं।
अगर योगी की बातों के आधार पर ही खासकर उत्तरप्रदेश को चलाना है, तो वहां की लगभग 18 फीसदी मुस्लिम आबादी को सावधान कर दिया जाना चाहिए कि वे अब से उर्दू का एक शब्द भी नहीं बोलेंगे।यदि योगी सही हैं तो भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉक्टर सुब्रह्मण्यम स्वामी को अपने मुस्लिम दामाद को भूल जाना चाहिए।
सवाल है कि जिन योगी ने राम नगरी अयोध्या के एक चौक का नाम स्वर कोकिला, भारत रत्न स्वर्गीय लता मंगेशकर के नाम पर रखा है उस चौक का नामकरण करते वक्त योगी की मति क्यों नहीं जागी। बता दें कि लताजी ने जब गाना शुरू किया था तो उनके मराठी लहजे पर ट्रेजेडी किंग अभिनेता स्वर्गीय दिलीप साहब ने आपत्ति ली थी तो लता जी ने तत्काल उर्दू के जरिए हिंदी सीखी थी और दिलीप साहब खुद यूसुफ खान पठान थे जिन्होंने एक बार अटलजी के कहने पर भारत-पाकिस्तान जंग तक रुकवा दी थी।
फिलहाल ये बात तो छोड़िए कि उर्दू भाषा इतनी शीरी (मीठी) तहजीब याफ़्ता, भद्र और सभ्य है, लेकिन योगी जी से क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि जिस हिंदी की वे वकालत कर रहे हैं उस हिंदी भाषा में ही करीब चार साल पहले उत्तर प्रदेश के लगभग दस लाख बच्चे बारहवीं क्लास में फेल हो गए थे।लिहाजा, उन सभी को योगी द्वारा ही जनरल प्रमोशन दिया गया था। खुद योगी जी जरा अपने हिंदी शब्दों के उच्चारण को ही जांच लें।
हालांकि ये बात पहले भी कई बार कही जा चुकी है, लेकिन फिर एक बार मजबूरन कहनी पड़ रही है कि हिंदू देवी-देवताओं के तमाम प्रसिद्ध भजन न सिर्फ अधिकांश मुस्लिम शायरों ने लिखे, बल्कि मुस्लिम गायकों (खासकर स्वर्गीय मोहम्मद रफी) ने ही गाए।योगी जी को उर्दू का विरोध करते वक्त ये याद क्यों नहीं रहा कि जिस महाभारत टीवी सीरियल को देखने के लिए लगभग पूरे पाकिस्तान में भी जनता कर्फ्यू लग जाता था, उसकी पटकथा दरअसल एक मुस्लिम लेखक राही मासूम रजा ने लिखी थी।
रजा साहब तो खालिस मुसलमान थे।जिस लखनऊ से योगी सरकार चलाते हैं वहां की एक महिला कॉलेज की प्रिंसिपल दरअसल संस्कृत में पीएचडी हैं और शायरा के नाम पर दुनियाभर में उनकी तूती बोलती है।यदि मोदी सही हैं तो रामकथा वाचक मुरारी बापू को मुशायरों में जाना और दाद देना भी तुरंत बंद कर देना चाहिए क्योंकि वहां तो अक्सर उर्दू में शायरी करने वाले शायर ही आते हैं और डॉक्टर कुमार विश्वास के बारे में योगी का क्या ख्याल है?इन दिनों योगी की डॉक्टर कुमार विश्वास से गलबहियां बड़ी प्रसिद्द हैं। सनद रहे कि डॉक्टर कुमार विश्वास साहब जितनी प्रांजल हिंदी बोलते हैं, उर्दू के प्रति भी वे उतने ही उदार हैं।
सदियों से नियम चलता रहा है कि यदि किसी देश की प्रगति को रोकना है या उसे बांटना है तो उसकी भाषा को भष्ट कर दो।उसके पुस्तकालयों में आग लगा दो। वहां की संस्कृति को नष्ट कर दो।ऐसा करने से वो देश हमला किए बिना आपका गुलाम हो जाएगा।पहले ये काम विदेशी हमलावर करते थे लेकिन योगी आदित्यनाथ तो इसी भारतवर्ष के बाशिंदे ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे के मालिक हैं, जिससे बड़े दुनिया में कुल पांच ही देश हैं। अपेक्षा है कि योगी नफरत,घृणा और विद्वेश की ओछी राजनीति करने की बजाय विकास की सियासत करेंगे क्योंकि भाजपा का मूल नारा भी तो है कि सबका साथ,सबका विकास।
(यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं, वेबदुनिया का इससे सहमत होना जरूरी नहीं है)