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Written By Author सुशोभित सक्तावत
Last Updated : मंगलवार, 15 अगस्त 2017 (19:28 IST)

आग, पानी और धरती का कवि

आग, पानी और धरती का कवि - Chandrakant Devtale
चंद्रकांत देवताले के एक कविता संकलन का शीर्षक ही है : आग हर चीज़ में बताई गई थी। उनकी एक अन्य कविता है : पैदा हुआ जिस आग से, खा जाएगी एक दिन वही मुझको। आग, पानी और धरती से चंद्रकांत देवताले का हमेशा गहरा रिश्ता रहा। उन्होंने हमेशा अपने को इनका सगा बेटा माना।
 
मध्यप्रदेश के बैतूल ज़िले के गांव जौलखेड़ा में 7 नवंबर 1936 को जन्मे चंद्रकांत देवताले ने बड़वाह से अपनी प्राथमिक पढ़ाई की थी। इंदौर के क्रिश्च‍ियन कॉलेज से उनकी पढ़ाई पूरी हुई, जिसे सही मायनों में तालीम कहते हैं, क्योंकि इसी क्रिश्चियन कॉलेज की लाइब्रेरियों ने उनके सामने दुनिया जहान की किताबों का रास्ता खोल दिया था। अलबत्ता कविताएं लिखना उन्होंने बड़वाह से ही शुरू कर दिया था, लेकिन कविता की असल दीक्षा भी इंदौर में ही मिली, जब अनिल कुमार ने मुक्त‍िबोध से उनका परिचय कराया। आगे चलकर इन्हीं मुक्त‍िबोध पर उन्हें सागर विश्वविद्यालय से पीएचडी करना थी। मुक्त‍िबोध पर ही उन्हें अपनी इकलौती आलोचनात्मक किताब लिखना थी और उनकी गद्य रचनाओं का संपादन भी करना था।
 
नईदुनिया, धर्मयुग, ज्ञानोदय में उनकी प्रारंभिक कविताएं प्रकाशित हुईं। 1973 में पहचान सीरीज़ से पहला संकलन आया : हड्ड‍ियों में छिपा ज्वर। दूसरा संकलन 1975 में राधाकृष्ण से आया : दीवारों पर ख़ून से। तब चंद्रकांत देवताले को अकविता आंदोलन से जोड़कर देखा जाता था। धूमिल, सौमित्र मोहन, लीलाधर जगूड़ी, राजकमल चौधरी का प्रभाव उन पर लक्ष्य किया जाता, अलबत्ता वे हमेशा ख़ुद को मुक्तिबोध से ही प्रेरित बताते रहे। 1980 में आए तीसरे संकलन 'लकड़बग्घा हंस रहा है' के शीर्षक के आधार पर मेरा बाप हंस रहा है कहकर उनका मखौल उड़ाने की कोशिशें भी तब की गई थीं। लेकिन वो दौर ही वैसा था।
 
1995 में राष्ट्रीय साक्षरता मिशन द्वारा नवसाक्षरों के लिए सांप्रदायिकता विरोधी कविताएं लिखने का जिम्मा उन्हें सौंपा गया, जिसके तहत बदला बेहद महंगा सौदा की कविताएं लिखी गईं। वे इसे अपना एक महत्वपूर्ण काम मानते हैं। अपनी लंबी कविता भूखंड तप रहा है, को उन्होंने अपनी महत्वाकांक्षी कृति माना था। आग हर चीज़ में बताई गई थी, इतनी पत्थर रोशनी, पत्थर की बेंच और उजाड़ में संग्रहालय आदि संकलनों से उनकी काव्य यात्रा आगे बढ़ती रही। सबसे अंत में पत्थर फेंक रहा हूं संकलन पर उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया।
 
चंद्रकांत देवताले को पहल सम्मान, भवभूति अलंकरण, मप्र शासन शिखर सम्मान प्रदान किए जा चुके हैं। उड़ीसा की वर्णमाला साहित्य संस्था द्वारा सृजन भारती सम्मान भी दिया गया। 1987 में इटली के पालेर्मो में अंतरराष्ट्रीय साहित्य समारोह में शिरक़त की। इसी समारोह में उनकी डोरिस लेसिंग से आत्मीय भेंट हुई थी, जिन्होंने आगे चलकर साहित्य का नोबेल पुरस्कार जीतना था।
 
लगभग सभी भारतीय भाषाओं सहित कई विदेशी भाषाओं में भी अनूदित हो चुके कवि चंद्रकांत देवताले के काव्य में मध्यप्रदेश के ग्राम्यांचल की अनुभूतियां धड़कती हैं। जनसरोकारों से उनका सीधा लगाव था, उनकी जड़ें धरती के भीतर गहरी थीं और आत्माभिमान ने उन्हें दिल्ली की मरीचिकाओं से हमेशा दूर रखा। एक प्राध्यापक के रूप में सत्रह बार उनके तबादले किए गए, जिसके पीछे निश्च‍ित ही उनकी कविता के तेवर ज़िम्मेदार रहे होंगे। 
 
वैसी सरलता, वैसी प्रखरता, वैसी आत्मनिष्ठा आज किसी कवि में भूले से भी नहीं मिलती। चंद्रकांत देवताले जैसे कवि बार-बार जन्म नहीं लेते हैं। और भले ही आज वे हमारे बीच नहीं हों, लेकिन वे अपने पीछे अपनी कविताओं की जो अक्षय निधि छोड़ गए हैं, उनके रूप में वे हमेशा हमारे साथ बने रहेंगे।
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