संविधान की नज़र में तो सब समान होते हैं, महिला वकील उसमें नहीं आती क्या?
कवियों-शायरों-गीतकारों का ध्यान नायिका की ज़ुल्फ़ों पर जाए और वे उस पर कुछ लिखें तो समझ आता है, लेकिन कोर्ट का ध्यान भी इस ओर चला जाए और उस पर कुछ लिख दें तो बात समझ नहीं आती। ज़ाहिरन कोर्ट द्वारा कुछ लिखा जाता है तो वह शायरी नहीं, आदेश होता है। कोर्ट महिलाओं के बाल संवारने को नागवार मान रहा है, कोर्ट का कहना है इससे ध्यान भटकता है।
किसका ध्यान भटकता है, सवाल यह भी है कि वकीलों-न्यायाधीशों का ध्यान तर्कों के बजाय किसी महिला के हाव-भाव, भाव-भंगिमाओं पर जाता ही कैसे है और क्यों है? यह न्यायालयीन फतवा किसी पिछड़े देश के किसी मुल्ला-मौलवी या मठाधीश ने नहीं जारी किया, बल्कि तथाकथित प्रगतिशील समझे जाते महाराष्ट्र के तथाकथित प्रगतिशील समझे जाते बड़े शहर पुणे की जिला अदालत ने जारी किया। यह आदेश महिला वकीलों के लिए था। पुरुषों के लिए नहीं, जबकि पुरुष तो कई बार आदतन, कई बार जाने-अनजाने अपनी जेब से प़ॉकेट कंघी निकाल बाल संवारते हैं वे ध्यान नहीं रखते कि कोर्ट है या कोई और जगह। कभी अंगुलियों से तो कभी कंघी से बाल संवारते रहने की उनकी आदत पर तो कभी किसी कोर्ट ने कुछ नहीं कहा।
अदालत ने नोटिस जारी किया जिसमें लिखा था, 'यह बार-बार देखा गया है कि महिला वकील अक्सर अपने बालों को अदालत में सुलझाती हैं। यह न्यायालय की कार्यवाही को बाधित या विचलित करता है। इसलिए महिला वकीलों को एतद् द्वारा सलाह दी जाती है कि वे ऐसा कृत्य न करें।'
पुणे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के इस नोटिस की फोटो फ़िलहाल वायरल हो रही है। चूँकि आदेश अंग्रेज़ी में था इसलिए उसके अनुवाद भी अपने-अपने तरीके से हो रहे हैं, एक अनुवाद के अनुसार यह कई बार देखा गया है कि महिला वकील खुली अदालत में अपने बालों को संवार रही हैं, जो अदालत के कामकाज को बाधित करता है। इसलिए, महिला वकीलों को इस तरह के कृत्य से परहेज करने के लिए अधिसूचित किया जाता है। अनुवाद भले ही अलग-अलग हो, लेकिन उनमें मत-मतांतर कदापि नहीं है। इस आदेश की फोटो पर ट्वीट करते हुए सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने लिखा है, 'अब देखिए, महिला वकीलों को कौन और क्या निर्देश दे रहा है।' हालांकि बाद में जब वरिष्ठ वकील जय सिंह ने ट्विटर पर इसकी जानकारी दी थी। उन्होंने ट्वीट करते हुए लिखा कि 'वाह अब देखो! महिला वकीलों से किसका ध्यान भटक रहा है और क्यों'।
हालांकि सूचना मिलने के बाद इस नोटिस को हटा दिया गया। अदालत के रजिस्ट्रार ने इस मुद्दे पर किसी तरह की टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। नोटिस कथित तौर पर रजिस्ट्रार द्वारा लगाया गया था।
यदि कोर्ट का उद्देश्य केवल मर्यादा बनाए रखना था किसी एक तबके पर तंज कसना नहीं तो महिला वकील जैसे शब्द का प्रयोग ही नहीं किया जाना था। वकील वह स्त्री हो या पुरुष उसका कोर्ट में इस तरह कृत्य करना वर्ज्य होना था पर कोर्ट ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। जहां हर शब्द कीमती होता है, हर शब्द न्याय की दिशा बदल सकता है, उस कोर्ट से तो अपेक्षा की ही जा सकती है कि वह शब्दों का प्रयोग सावधानी से करे और संविधान ने सबको समान माना है तो उस समानता का बोध अदालत भी रखे।
Edited: By Navin Rangiyal