मध्यप्रदेश में चुनावी फिजा से गायब व्यापमं का मुद्दा, कांग्रेस नहीं कर पाई चुनावी शोर
भोपाल। मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए पिछले 15 सालों में सबसे बड़ी चुनौती साबित होने वाला व्यापमं का मुद्दा इस बार चुनावी फिजा से लगभग गायब सा है। व्यापमं घोटाले को लेकर शिवराज सरकार को घेरने वाली कांग्रेस इस बार शिवराज सरकार पर वैसी हमलावर नहीं है, जितनी 2013 के विधानसभा चुनाव में थी।
भले ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी अपने हर भाषण में व्यापमं घोटाले को लेकर शिवराज सरकार को घेरते हो, लेकिन कांग्रेस ने चुनावी साल में व्यापमं को लेकर कोई बड़ा विरोध प्रदर्शन नहीं किया। ये हालात तब हैं जब व्यापमं का मुख्य आरोपी जगदीश सागर खुद बसपा के टिकट पर चुनावी मैदान में है, वहीं व्यापमं को लेकर लगातार गिरफ्तारी की खबरें सामने आ रही हैं।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस ने चुनाव से पहले व्यापमं के मुद्दे को उठाने की कोशिश नहीं की हो। चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की ओर से भोपाल की जिला कोर्ट में एक केस दायर किया गया जिसकी पैरवी के लिए दिल्ली से कांग्रेस के बड़े नेता और वकील कपिल सिब्बल भोपाल आए। कांग्रेस ने व्यापमं केस में सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप लगाते हुए कोर्ट के सामने दस्तावेज भी पेश किए, लेकिन कांग्रेस को ये दांव उल्टा पड़ गया।
कोर्ट के आदेश पर भोपाल के श्यामला हिल्स थाने में कांग्रेस के तीन बड़े नेताओं दिग्विजय, कमलनाथ और सिंधिया के खिलाफ मामला दर्ज हो गया। इसके बाद कांग्रेस व्यापमं को लेकर बैकफुट पर आ गई वहीं कांग्रेस ने व्यापमं से जुड़े लोगों से भी चुनाव के समय किनारा कर लिया है।
व्यापमं घोटाले को सबके सामने लाने वाले रतलाम के पूर्व विधायक पारस सकलेचा और व्यापमं आंदोलन के सबसे बड़े व्हिसल ब्लोअर और इंदौर पांच से टिकट के दावेदार आनंद राय को पार्टी ने टिकट न देकर उनके विधायक बनने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। व्यापमं को लेकर कांग्रेस इस बार चुनाव में कितनी गफलत में रही है इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस ने व्यापमं मामले के आरोपी और शिवराज सरकार में मंत्री का दर्जा प्राप्त गुलाब सिंह किरार को पहले तो इंदौर में राहुल गांधी के सामने कांग्रेस में शामिल कर लिया, लेकिन जब पार्टी के इस फैसले की चौतफा आलोचना होने लगी तो पार्टी ने आनन-फानन में गुलाब सिंह किरार से पल्ला झाड़ लिया।
गुलाब सिंह किरार को लेकर चुनाव से पहले पार्टी की खूब किरकिरी भी हुई। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो जिस व्यापमं को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपने सियासी जीवन की सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा था उस व्यापमं को लेकर कांग्रेस सही तरीके से न तो पिछले चुनाव में सरकार को घेर पाई और न ही इस बार के चुनावों में व्यापमं को चुनावी मुद्दा बना पाई।
कांग्रेस नेताओं के व्यापमं को लेकर जिस तरह के तेवर पहले थे वैसे इस चुनाव में नहीं दिख रहे हैं। न तो पार्टी के स्थानीय नेता व्यापमं को लेकर सरकार पर हमलावर हैं और न ही दिल्ली से भोपाल आकर डेरा डालने वाले पार्टी के बड़े नेता व्यापमं को लेकर सरकार पर हमलावर हो रहे हैं। ऐसे में लग तो यही रहा है कि व्यापमं अब न तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और न ही भाजपा के लिए कोई चुनौती है।