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मां सा रिश्ता कोई ना देखा : मां पर सरल कविता

मां सा रिश्ता कोई ना देखा : मां पर सरल कविता - poem on mother
डॉ. विद्यावती पाराशर 
poem on mothers day 2023 मां सा रिश्ता
 
जब से होश संभाला मैंने,
मां सा रिश्ता कोई ना देखा।
 
चांद देखा सूरज भी देखा,
सारे सितारे नभ में देखे,
जो केवल मेरे लिए ही चमके,
ऐसा सितारा मैंने नहीं देखा,
मैंने मां सा रिश्ता कोई ना देखा।
 
बिन बोले समझने वाला,
मेरी मौन को भाषा देने वाला,
कोई और सानी ना देखा,
मैंने मां सा रिश्ता कोई ना देखा।
 
मेरे दुख में दुखी रहने वाला,
मेरे आंसू पीने वाला,
मन खुशी में मोड़ने वाला,
और कोई इंसान ना देखा,
मैंने मां सा रिश्ता कोई ना देखा।
 
गलतियों पर पर्दा डालने वाला,
मेरा पेट भर जाए,इतने उपक्रम करने वाला,
बिना शर्त मुझे प्यार करने वाला,
कोई ऐसा फरिश्ता ना देखा,
मैंने मां सा रिश्ता कोई ना देखा।
 
डांटने के बाद खुद ही रोने वाला,
मुझे संसार के मुताबिक ढालने वाला,
कभी ना बहकूं ऐसी शिक्षा देने वाला,
ऐसा कोई शिक्षक ना देखा,
मैंने मां सा रिश्ता कोई ना देखा।
 
मन में आस्था जगाने वाला,
विपत्ति में संभल कर चलना बताने वाला,
वक्त के साथ ढलना बताने वाला,
ऐसा कोई गुरु ना देखा,
मैंने मां सा रिश्ता कोई ना देखा।
 
ससुराल की रीत सीखने वाला,
अदब से रहना कहने वाला,
समय से कम पूरे करना सीखने वाला
ऐसा कोई माली ना देखा,
मैंने मां सा रिश्ता कोई ना देखा।
 
मेरी बीमारी में रातों को जागने वाला,
कड़वी दवाई शहद सी बताने वाला,
मुझे वाणी से राहत दिलाने वाला,
ऐसा कोई चिकित्सक ना देखा,
मैंने मां सा रिश्ता कोई ना देखा।
 
सखियों से दूरी होने पर,
मेरी सहेली बनने वाला,
मन को खुश करने वाला,
उदासी को मुस्कान में बदलने वाला,
ऐसा कोई दोस्त ना देखा,
मैंने मां सा रिश्ता कोई ना देखा।
 
मेरा पैर फिसल जाए तो,
जमीन को दोष देने वाला,
प्यार से उठाने वाला,
फिर मेरा मन का अच्छा कुछ
करने वाला,
कोई हमसफर ना देखा
मैंने मां सा रिश्ता कोई ना देखा।
 
जब से होश संभाला मैंने,
 
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