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माँ का सफर जन्म होने के दिन से ही शुरू हो जाता है। सभी को यह लगता है कि एक बेटी ने जन्म लिया है इसका मतलब है उसे अपनी जिंदगी में सीढ़ी दर सीढ़ी काम करते ही चले जाना है। पहले एक बेटी, फिर एक युवती, फिर एक बहू और पत्नी फिर आता है माँ बनने का सफर।
माँ बनने के साथ ही उसके अपने सारे हक, उसकी अपनी सारी इच्छाएँ और महत्वाकांक्षाएँ भुला कर उसे अपने कर्तव्यों को निभाने की जिम्मेदारी निभाना पड़ता है। फिर भले ही इन सब में उसकी इच्छा हो ना हो। उसे इन सारे दौर से गुजरना ही पड़ता है। चाहे मन से,चाहे बेमन से लेकिन उसके जन्म के साथ ही ये सारे उसके साथी बन जाते हैं।
उसके माँ बनने के पूर्व ही ससुराल वालों की निगाहें उस पल का इंतजार कर रही होती है कि वह बेटे की माँ बनती है या बेटी की। माँ बनना ससुराल वालों के लिए इतना मायने नहीं रखता जितना उसका बेटे को जन्म देना मायने रखता है।
बेटा-बेटी की आस लिए माँ बनने का उसका यह सफर सही मायने में यही से शुरू हो जाता है। अगर बेटे की माँ बन गई तो वह ससुराल वालों की आँखों का तारा बन जाती है। अगर बेटी को जन्म दिया है तो इस दुख के साथ कि 'बेटी जनी है'। उसको तानों और कष्टों में ही अपना जीवन गुजारना पड़ता है। यह तब बात और भी ज्यादा दुखद हो जाती है जब वह दो-तीन बेटियों को जन्म दे चुकी होती हैं।

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फिर भी वो माँ अपने सारे गमों को भुलाकर, जीवन में आ रही हर परेशानी को अपने से दूर रखकर अपना सारा प्यार-दुलार अपने बच्चे पर उँडेल देती है। अपनी मातृत्व की छाँव उस पर बनाए रखती है। ऐसी माँ के 'आदर' स्वरूप सिर्फ एक दिन 'मदर्स डे' मनाकर कभी भी नहीं किया जा सकता। ऐसी माँ के लिए तो मानव जीवन ही कुर्बान होना चाहिए।
ऐसी देवी माँ हो या साधारण माँ जिसने भगवानों से लेकर कई महापुरुषों, कई वीरांगनाओं और वीरों को जन्म दिया है। जिसने देश-दुनिया को कई अविस्मरणीय संतानों ने नवाजा है, ऐसी माँ के लिए तो हर दिन मनाया गया मातृ दिवस भी कम पड़ जाएगा। उसके उपकारों के आगे हमारी हर पूजा छोटी है, हर उपहार कम है। ऐसी जननी को मातृ दिवस यानी मदर्स डे पर मेरा शत-शत नमन....। हे माँ ! आपकी महिमा अपरंपार है...।