बस एक माँ है जो ख़फ़ा नहीं होती
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मुनव्वर राना सिरफिरे लोग हमें दुश्मने जाँ कहते हैं हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैंमुझे बस इसलिए अच्छी बहार लगती हैकि ये भी माँ की तरह खुशग्वार लगती हैमैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसूमुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपनालबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होतीबस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होतीकिसी को घर मिला हिस्से में या दुकाँ आईमैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आईइस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती हैमाँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देतीये ऐसा कर्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकतामैं जब तक घर न लौटू मेरी माँ सजदे में रहती हैखाने की चीज़ें माँ ने जो भेजी थीं गाँव सेबासी भी हो गई हैं तो लज्जत वही रहीबरबाद कर दिया हमें परदेस ने मगरमाँ सबसे कह रही है बेटा मज़े में हैलिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती हैमैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूँ हिन्दी मुस्कुराती है।