उनके बारे में अनेक लोग कहते हैं- एक वे 'मदनमोहन' थे और एक ये हैं। 'एक वे' यानी मदनमोहन मालवीय और 'एक ये' यानी मदन मोहन जोशी। मालवीयजी ने काशी में हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की। ये दोनों ही पत्रकार। इन दोनों ने ही अपनी चेतना को लोक कल्याण की दिशा में मोड़ दिया। श्री जोशी ने हिन्दी पत्रकारिता में नई भाषा, नए मुहावरे और नई लोकोक्तियां और कहावतें गढ़ीं।
पत्रकारिता में उनकी कलम का जादू भी लोगों पर ऐसा चला, जैसा हिन्दी फिल्मों के महानायक अमिताभ बच्चन का। उनके कई मुरीद उन्हें पत्रकारिता का 'अमिताभ बच्चन' की कहते हैं। हमेशा एवरग्रीन। बीते दिसंबर माह में उनके चर्चित लेखों का संकलन 'सुर्खियों के इर्द-गिर्द' और 'राजनीति क्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे' का प्रकाशन किया गया। इनके प्रकाशन में संपादन सहयोग का मौका मुझे मिला।
श्री जोशी ने पत्रकारिता की शुरुआत 1956 में की। नवभारत, एमपी क्रॉनिकल (अंग्रेजी) में 1960 तक सेवारत रहे। 1961 में मदन मोहन जोशी देश की प्रमुख न्यूज एवं फीचर एजेंसी इन्फा के मध्यप्रदेश संवाददाता नियुक्त हुए। हिन्दी और अंग्रेजी में लगातार 20 सालों तक स्तंभों का अनवरत लेखन उन्होंने किया। फीचर लेखन को नया रूपाकार दिया।
श्री जोशी 1980 में नईदुनिया में भोपाल ब्यूरो प्रमुख की हैसियत से आए थे। आप इसके स्थानीय संपादक और संपादक बने। श्री जोशी के अब तक 5 हजार से ज्यादा लेख प्रकाशित हो चुके हैं। एक दर्जन से ज्यादा पुस्तकों में 'बस्तर : इंडियाज स्लीपिंग जाइंट' (अंग्रेजी), निबंध संग्रह- संगम, पटिया-परिकथा तथा कतरनें चर्चित हुईं। अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से मदन मोहन जोशी को नवाजा गया।
(मीडिया विमर्श में साकेत दुबे)