रविवार, 29 सितम्बर 2024
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Written By गायत्री शर्मा

मुझे लौटा दो मेरा बचपन

मुझे लौटा दो मेरा बचपन -
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बचपन रंगीला होता है। हर रोज नई-नई शरारतें करना, अपनी मनमानी करना... बस यही तो बचपन की निशानी है। यह उम्र एक ऐसी उम्र होती है जब बच्चा बगैर किसी तनाव के अपनी ही मस्ती में मस्त रहता है।

गुड्डे-गुडियों के खेल, बरखा के गीत, गिल्ली-डंडे... ये सब क्या होता है शायद आज हमारे बच्चे ये नहीं जानते। आज के बच्चों के पास तो इन सभी के लिए वक्त ही नहीं है। उन्हें तो पढाई, योगा क्लासेस, डांस क्लासेस से समय मिले तो वे इसके बारे में कुछ सोचें। उनका बचपन तो बस दूसरे बच्चों से प्रतिस्पर्धा करने में ही बीत जाता है। ये खेल क्या होते हैं बच्चे नहीं जानते

हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा ऑलराउंडर बने, पर अपने इस ख्वाब को पूरा करने के लिए वे बच्चे पर उसकी क्षमता से अधिक बोझ डाल देते हैं जिससे बच्चा ऑलराउंडर तो बन जाता है पर उसका बचपन उससे छिन जाता है
  बच्चे उस कोमल फूल की तरह होते हैं जो स्पर्श से ही कुम्हला जाता है। उन्हें अच्छी शिक्षा देना हर माता-पिता का कर्तव्य है किंतु इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि बच्चों को किताबों में ही केवल कैद कर दिया जाए।      


नर्सरी कक्षा में पढ़ने वाली आशी के थोड़ी सी देर खेलता देखकर उसकी मम्मी ने उसे जोर का तमाचा मारा, जिसका एकमात्र कारण यह थकि कहीं पड़ोस वाले शर्माजी की बच्ची उससे पढ़ाई में आगे नहीं निकल जाए। रोज सुबह स्कूल से आने के बाद होमवर्क करना, फिर डांक्लास और उसके बाद ट्यूशन जाना यही दिनचर्या है आशी की


मात्र 3 साल की इस बच्ची को खेलने की कोई आजादी नहीं है। उसे तो दिन-रात टॉपर बनने का ख्वाब ही दिखाया जाता है। उसके सारे शौक पूरे किए जाते हैं केवल पढ़ाई की शर्त पर। प्यार से या मार खाकर कैसे भी उसको केवल और केवल पढ़ना ही है और परीक्षा में सबसे अच्छे नंबर लाकर टॉप करना है

केवल आशी ही नहीं बहुत से ऐसे बच्चे हैं जिन पर छोटी उम्र से ही पढ़ाई का दबाव इस कदर डाल दिया जाता है कि बच्चों को बचपन क्या होता है पता ही नहीं चलता। उनमें तो बस लगी रहती है औरों से बेहतर बनने की होड़, जो उन्हें नन्ही सी उम्र में ही एक-दूसरे का प्रतिद्वंद्वी बना देती है

बच्चे उस कोमल फूल की तरह होते हैं जो स्पर्श से ही कुम्हला जाता है। उन्हें अच्छी शिक्षा देना हर माता-पिता का कर्तव्य है किंतु इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि बच्चों को किताबों में ही केवल कैद कर दिया जाए। बच्चों की यह उम्र तनाव लेने की नहीं बल्कि हँसने-खेलने की है। उन्हें आपके प्यार व दुलार की जरूरत है डॉट-फटकार की नहीं। अत: बेहतर होगा कि हम उनसे उनका बचपन नहीं छीनें।

* बच्चों की रुचि को पहचानें :-
कई बार बच्चे फुटबॉल खेलने के शौकीन होते हैं और माता-पिता उन्हें जबर्दस्ती टेनिस सीखने भेज देते हैं। अत: इस बात का विशेष ध्यान रखें क्योंकि जिस खेल में बच्चे की रुचि प्रारंभ से ही नहीं है भला भविष्य में वह उसमें कैसे सफल हो पाएगा?

माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को ऑलराउंडर बनाने के चक्कर में उनकी रुचि को न भूलें। बच्चा यदि रूचि के अनुसार कार्य करेगा तो वह निश्चित ही उसमें सफलता पाएगा।