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Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 13 नवंबर 2021 (13:47 IST)

भोपाल में जनजाति गौरव दिवस के मंच से नरेंद्र मोदी करेंगे 2023 विस चुनाव का शंखनाद,आदिवासी वोटर सत्ता का ट्रंप कार्ड!

2023 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोट बैंक को साधने के लिए भाजपा का मेगा प्लान

भोपाल में जनजाति गौरव दिवस के मंच से नरेंद्र मोदी करेंगे 2023 विस चुनाव का शंखनाद,आदिवासी वोटर सत्ता का ट्रंप कार्ड! - Narendra Modi will conch shell for 2023 assembly elections from the stage of Tribal Pride Day in Bhopal
भोपाल। 15 नवंबर को होने वाले जनजातीय गौरव दिवस कार्यक्रम के लिए मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल पूरी तरह तैयार हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आदिवासी समुदाय के सबसे बड़े नेता बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को जनजातीय दिवस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए भोपाल आ रहे हैं। केंद्र सरकार ने बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में पूरे देश में मनाने का फैसला पहले ही कर चुकी है। भाजपा सरकार की ओर से बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मानने के फैसले को कांग्रेस वोट बैंक साधने की‌ रणनीति के तौर पर देख रही है। 
 
असल में मध्यप्रदेश की राजनीति के साथ-साथ देश के कई राज्यों में आदिवासी एक बड़ा वोट बैंक होने के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे में प्रमुख है। मोदी सरकार जो अपने दूसरे कार्यकाल में आरएसएस के एजेंडे को तेजी से पूरा कर रही है उसने अब आदिवासी वोट बैंक पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए रणनीति तैयार कर ली है। 
 
आदिवासी वोट बैंक में सत्ता की चाबी !- देश का हद्य प्रदेश कहलाने वाला मध्यप्रदेश जहां की राजधानी भोपाल में जनजाति गौरव दिवस का मुख्य कार्यक्रम होने जा रहा है उस प्रदेश में देश के सबसे अधिक संख्या में आदिवासी रहते है। राज्य की आबादी का क़रीब 21.5 प्रतिशत एसटी (2011 की जनगणना) जबकि अनुसूचित जातियां (एससी) क़रीब 15.6 प्रतिशत हैं। इस लिहाज से राज्य में हर पांचवा व्यक्ति आदिवासी वर्ग का है। राज्य में  विधानसभा की 230 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। वहीं 90 से 100 सीटों पर आदिवासी वोटबैंक निर्णायक भूमिका निभाता है।
2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोट बैंक भाजपा से छिटक कर कांग्रेस के साथ चला गया था और कांग्रेस ने 47 सीटों में से 30 सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया था। वहीं अब 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा आदिवासी वोट बैंक को साध कर सत्ता में बनी रहना चाह रही है और विधानसभा चुनाव से दो साल पहले ही आदिवासी सम्मेलन कर चुनावी बिगुल फूंकने की तैयारी में है।
 
आदिवासी सीटों पर भाजपा का प्रदर्शन- अगर मध्यप्रदेश में आदिवासी सीटों के चुनावी इतिहास को देखे तो पाते है कि 2003 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। चुनाव में कांग्रेस  केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थी। 
 
इसके बाद 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में बीजेपी ने 29 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी।
वहीं पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में आदिवासी सीटों के नतीजे काफी चौंकाने वाले रहे। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली। जबकि एक निर्दलीय के खाते में गई।
 
ऐसे में देखा जाए तो जिस आदिवासी वोट बैंक के बल पर भाजपा ने 2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सत्ता में वापसी की थी वह जब 2018 में उससे छिटका तो भाजपा को पंद्रह ‌साल बाद सत्ता से बाहर होना पड़ा। 
 
ऐसे में अब जब अगले विधानसभा चुनाव में दो साल का समय बाकी बचा है तब भाजपा आदिवासी वोट बैंक को फिर अपने पाले में करने के लिए कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती और आदिवासी वोट बैंक को रिझाने के भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व लगातार प्रदेश का दौरा कर रहा है। इस साल सितंबर में देश के गृहमंत्री अमित शाह जबलपुर में आदिवासी नेता शंकर शाह और रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस के कार्यक्रम में शामिल हुए थे और कांग्रेस पर जमकर बरसे।
 
मध्यप्रदेश भाजपा ने 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए 51 प्रतिशत वोट हासिल करने का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य आदिवासी वोटों पर पकड़ मजबूत किए बगैर हासिल नहीं किया जा सकता। आदिवासी वोट बैंक मध्यप्रदेश में किसी भी पार्टी के सत्ता में आने का ट्रंप कार्ड भी है।