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Written By Author विकास सिंह
Last Modified: शुक्रवार, 22 मई 2020 (14:44 IST)

खास खबर : उपचुनाव में सिंधिया के किले को ढहाने के लिए कमलनाथ के सारथी बने प्रशांत किशोर

खास खबर : उपचुनाव में सिंधिया के किले को ढहाने के लिए कमलनाथ के सारथी बने प्रशांत किशोर - Madhya Pradesh : Prashant kishor became chariot of kamalnath in by election
भोपाल। मध्यप्रदेश के उपचुनाव की सियासी रण में अब चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की एंट्री हो गई है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का वनवास खत्म कर सरकार बनाने में अहम रोल निभाने वाले प्रशांत किशोर उपचुनाव में कांग्रेस की पूरी कैंपनिंग और उम्मीदवारों के चयन में अहम भूमिका निभाएंगे। 
 
सिंधिया के गढ़ में सेंध लगाने के लिए उम्मीदवारों के चयन को लेकर पीसीसी चीफ कमलनाथ जो सर्वे करा रहे हैं उसका जिम्मा प्रशांत किशोर की कंपनी इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (IPac) को सौंपा गया है। 
उम्मीदवारों के नामों को लेकर जहां खुद कमलनाथ जहां व्यक्तिगत तौर पर टिकट के दावेदारों से मिल रहे है वहीं पार्टी की जमीनी हकीकत जनाने और मजबूत उम्मीदवार की तलाश को लेकर प्रशांत किशोर की टीम सर्वे करने के लिए मैदान में उतर गई है।  
 
2018 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवारों के चयन और उसकी पूरी चुनावी रणनीति में प्रशांत किशोर की अहम भूमिका रही थी। विधानसभा चुनाव में ग्वालियर चंबल में कांग्रेस की बड़ी जीत में उम्मीदवारों का सही चयन और पार्टी का स्थानीय मुद्दों पर फोकस करना था। 2018 के चुनाव में इस इलाके में कांग्रेस ने एट्रोसिटी एक्ट और शिवराज के आरक्षण को लेकर ‘माई का लाल’ का मुद्दा जोर शोर से उठाया था जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को चुनाव परिणाम में मिला था।  
अब कोरोना के साये में होने वाले 24 सीटों के उपचुनाव में कांग्रेस की अग्निपरीक्षा ग्वालियर चंबल क्षेत्र में है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के अपने समर्थक 22 विधायकों के एक साथ भाजपा में जाने के बाद हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस की असली चुनौती उम्मीदवारों का चयन है। सिंधिया के गढ़ के रूप में पहचाने जाने वाले इन इलाकों में पार्टी ऐसे चेहरों की तलाश में जुटी हुई है जो भाजपा और सिंधिया के बनाए गए चक्रव्यूह को तोड़ सके। 
 
बसपा की ओर से उपचुनाव में ताल ठोंकने के एलान के बाद कांग्रेस की राह और मुश्किल हो गई है। पार्टी ने पिछले दिनों 11 जिला अध्यक्षों की नियुक्त कर उपचुनाव से पहले संगठन को मजबूत करने की कोशिस तो की है लेकिन उम्मीदवारों की पहले दौर की रायशुमारी में पार्टी के अंदर बगावत के सुर भी उठने लगे है जिससे कमलनाथ के सामने चुनौतियां दोहरी हो गई है।