'तबले के बोल' पर 'घुंघरू की संगत' संगीत की आराधना में बदल गई
इंदौर। ठिठुरती हुई जनवरी की ठंड में इंदौर म्यूजिक फेस्टिवल के पहले दिन 'लाभ मंडपम' में नृत्यांगना शीतल कोल्वलकर का नृत्य हर किसी के मन में आंच की तरह महसूस हुआ। अपने कोमल और वीर भावों के साथ शीतल हर दर्शक के मन में थिरक रही थीं। उनके पैरों की थिरकन हर सांस में बज रही थी।
तबले की हर थाप और पंडित विजय घाटे की सरगम के बोल पर शीतल का हर घुंघरू जैसे इस सभा में गा रहा था। कुछ देर के लिए तो लगा कि तबला, हारमोनियम और घुंघरू तीनों मिलकर संगीत की आराधना कर रहे थे।
तबले, हारमोनियम और गायन की इस सभा को आने वाले कई दिनों के लिए याद रखा जाएगा। पंडित जसराज के जन्मदिन पर संगीत गुरुकुल द्वारा आयोजित गायन और नृत्य के समागम ने सोमवार की शाम में समां बांध दिया।
आलाप और ताल मात्रा के बीच शीतल के नृत्य ने लंबे समय तक सभागार में गर्माहट बनाए रखी। तबले और घुंघरू की संगत ने सभी को मोह लिया। शीतल नृत्य के साथ अपने भावों के साथ भी मंच पर उपस्थित थीं। सौम्य और वीर भावों में उनका नृत्य बेहद ग्रेसफुल था।
पंडित विजय घाटे का तबला और मंजूषा पाटिल का गायन सुनने आए श्रोताओं को महफ़िल के पहले हिस्से में नृत्य इतना भाया कि अंत में उन्होंने खड़े होकर शीतल का अभिवादन किया। जो सिर्फ गायन सुनने आए थे, उन्हें गायन के साथ घुंघरू की संगत ने हैरत में डाल दिया।
शीतल कोल्वलकर कत्थक नृत्यांगना शमा भाटे की शिष्या हैं। कत्थक की बारीकियों के लिए वे जानी जाती हैं और देश के कई बड़े मंचों पर प्रस्तुति दे चुकी हैं। वे युवा नृत्यांगनाओं में एक अग्रणी नाम हैं।