गुरुवार, 19 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. समाचार
  2. मुख्य ख़बरें
  3. मध्यप्रदेश
  4. Electricity will be expensive to overcome power crisis in Madhya Pradesh
Written By Author विकास सिंह
Last Updated : शनिवार, 7 मई 2022 (17:31 IST)

अजब एमपी में बिजली संकट दूर करने का गजब फॉर्मूला, पढ़ें आखिर क्यों प्रदेश में महंगी होगी बिजली?

बिजली सकंट दूर करने के लिए 20-25 पैसा यूनिट दाम बढ़ाने की तैयारी

अजब एमपी में बिजली संकट दूर करने का गजब फॉर्मूला, पढ़ें आखिर क्यों प्रदेश में महंगी होगी बिजली? - Electricity will be expensive to overcome power crisis in Madhya Pradesh
देश में इन दिनों बिजली संकट सबसे चर्चित मुद्दा बना हुुआ है। देश का हद्य प्रदेश मध्यप्रदेश भी बिजली संंकट से अछूता नहीं है। कोयले की कमी के चलते उत्पादन में गिरावट और डिमांड में बढ़ोत्तरी के चलते राज्य में बिजली संकट लगातार गहराता जा रहा है। कोयले की कमी को दूर करने के लिए सरकार विदेशों से कोयला आयात करने जा रही हैै। विदेश से आयात होने महंगे कोयले का ठीकरा अब आद आदमी पर फोड़ने की सरकार ने तैयारी कर ली है। 

दरअसल मध्यप्रदेश में गहराते बिजली संकट के बीच अब आम आदमी पर दोहरी मार पड़ने जा रही है। भीषण गर्मी में पहले से ही बिजली संकट का सामना कर रहे लोगों को अब बिजली के लिए प्रति यूनिट अधिक दाम चुकाने पड़ेंगे। आज जबलपुर में ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय दुबे ने कहा कि कोयला संकट के चलते केंद्र सरकार ने राज्य को विदेश से कोयला मंगाने के निर्देश दिए है जो कि काफी महंगा है, इसलिए आने वाले समय में बिजली के दाम 20-25 पैसे प्रति यूनिट बढ़ सकते है।

ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव ने साफ कहा कि सरकार बाहर से कोयला मंगा रही है जो काफी महंगा है, इसलिए 20-25 पैसे प्रति यूनिट बिजली मंहगी हो सकती है। उन्होंने कहा कि बिजली न देने की बजाए अच्छा है कि लोगों को बिजली मिले चाहे वह थोड़ी महंगी ही क्यों न हो।  
 
विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग-मध्यप्रदेश में गहराते बिजली संकट को लेकर अब कांग्रेस सरकार पर हमलावर हो गई है। नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह जी ने मध्यप्रदेश में जारी बिजली संकट पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर विधानसभा का दो दिवसीय विशेष सत्र बुलाने की मांग की है। नेता प्रतिपक्ष ने अपने पत्र में लिखा है कि प्रदेश में बिजली का संकट गहराता जा रहा है। कोयले की कमी और कुप्रबंधन के चलते प्रदेश बिजली संयंत्र बंद होने की कगार पर है। वहीं मप्र पॉवर जनरेशन कंपनी के चार पॉवर प्लांटों से तीन पॉवर प्लांट की स्थिति खराब है, जिससे प्रदेश में बिजली संकट गहरा रहा है। डॉ गोविंद सिंह का आरोप है कि प्रदेश में मंगा के अनुसार पर्याप्त मात्रा में बिजली उपलब्ध नहीं है। जिससे लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।  
 
मध्यप्रदेश में गहराता बिजली संकट-मध्यप्रदेश में दिन प्रतिदिन बिजली संकट गहराता जा रहा है। ग्रामीण इलाकों के साथ-साथ जिला मुख्यालयों पर भी 4 से 7 घंटे तक बिजली कंटौती की जा रही है। जिसके कारण लोगों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अघोषित बिजली कटौती के विरोध में लोग अब सड़क पर भी उतरकर अपना विरोध जताने लगे है। ग्वालियर-चंबल के साथ प्रदेश के महाकौशल और मालवा अंचल के कई जिले इन दिनों बड़े पैमाने पर बिजली कटौती से जूझ रहे है। 

बिजली की डिमांड और सप्लाई में बड़ा अंतर-मध्यप्रदेश में बिजली संकट का बड़ा कारण भीषण गर्मी के चलते बिजली की डिमांड में भारी हिजाफा होना है। प्रदेश में वर्तमान में पीक ऑवर्स में 12 हजार मेगावाट बिजली की डिमांड है जिसको पूरा कर पान बिजली कंपनियों के लिए किसी भी हालात में संभव नहीं है। वर्तमान में प्रदेश में बिजली की मांग और सप्लाई में एक से डेढ़ हजार मेगावाट का अंतर हर दिन आ रहा है। इसलिए प्रदेश के बड़े इलाके में 4 से 7 घंटे तक बिजली कंटौती की जा रही है। इसके साथ किसानों की दी जाने वाली बिजली में भी काफी कटौती की जा रही है।

थर्मल पॉवर स्टेशनों में कोयले की कमी-प्रदेश में कोयले की कमी से पावर जेनरेशन कंपनी के 4 पावर प्लांट में से 3 पावर प्लांट गंभीर स्थिति में हैं। कोयले की कमी के कारण प्रदेश में पावर प्लांट से बिजली का मात्र तीस फीसदी उत्पादन हो रहा है। संजय गांधी थर्मल पावर प्लांट आधी क्षमता और सतपुड़ा थर्मल पावर प्लांट अपनी क्षमता से एक तिहाई बिजली का उत्पादन कर रहा है। वहीं सिंगाजी थर्मल पावर प्लांट की क्षमता अपनी कुल क्षमता से आधे पर चल रहा है। अगर कुल मिलाकर देखा जाए तो प्रदेश के चारों थर्मल पॉवर स्टेशन अपनी फुल कैपिसिटी की तुलना में सिर्फ 40 फीसदी क्षमता से चल रहे है। इसके साथ थर्मल पॉवर प्लांट में फिजूलखर्ची भी कोयले की कमी का बड़ा कारण है। मध्यप्रदेश के सिंगाजी थर्मल पॉवर प्लांट में एक यूनिट बिजली पैदा करने में 600 ग्राम कोयले की जगह करीब 800 ग्राम कोयले का उपयोग किया जा रहा है जो कि कोयला की खपत का मिस मैनेजमेंट है।
 
विदेश से कोयला आयात करने के लिए 700 करोड़ का टेंडर-प्रदेश में बिजली संकट के बीच अब सरकार विदेश से कोयला मांगने की तैयारी में है। बिजली संकट को दूर करने के लिए सरकार बिजली संयंत्रों में सप्लाई बनाए रखने के लिए साढ़े सात लाख मीट्रिक टन कोयला खरीदने जा रही है बाहर से कोयला मांगने के लिए सरकार ने 700 करोड़ रुपए  का टेंडर जारी किया है। राज्य सरकार ने जो टेंडर जारी किया है उसमें एनटीपीसी कोयला खरीदेगी और फिर सप्लाई करेगी। सरकार ने सप्लायर को छूट दी है कि वो किस देश से कोयला मंगवाए। जानकार बताते है कि मध्यप्रदेश के लिए ऑस्ट्रेलिया या मलेशिया से कोयला मंगवाया जा सकता है। सप्लायर यानि एनटीपीसी को ही  विदेश से कोयला खरीद कर पावर हाउस तक पहुंचाना होगा।
 
विदेश से कोयला आयात पर उठे सवाल?- केन्द्र सरकार की ओर से बिजली उत्पादन घरों को कोयला आयात करने के केंद्र सरकार के फैसले पर बिजली इंजीनियर्स फेडेरेशन के नेता शैलेंद्र दुबे ने सवाल उठाए है। ऑल इण्डिया पॉवर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि केंद्रीय विद्युत मंत्रालय द्वारा 28 अप्रैल को जारी पत्र में राज्य के ताप बिजली घरों से 22.049 मिलियन टन और निजी क्षेत्र के बिजली घरों से 15.936 मिलियन टन कोयला आयात करने को कहा गया है। उन्होंने कहा कि जहां एक और केंद्रीय विद्युत मंत्रालय राज्यों के सरकारी ताप बिजली घरों पर कोयला आयात करने का दवाब डाल रहा है वहीं दूसरी ओर आयातित कोयले से चलने वाले गुजरात में मूंदड़ा स्थित अदानी के 4600 मेगावाट के ताप बिजली घर ,टाटा के 4000 मेगावाट के ताप बिजलीघर तथा कर्नाटक में उदीपी स्थित अदानी के 1200 मेगावॉट के ताप बिजलीघर को इस सम्बंध में कोई निर्देश नहीं जारी किए गये हैं। इन बिजली घरों का नाम भी विद्युत मंत्रालय के पत्र में नहीं है जबकि ये बिजलीघर समुद्र के तट पर हैं और आयातित कोयला लेना इनके लिए सबसे आसान है। आयातित कोयले की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बढ़ने के बाद ये बिजलीघर बन्द पड़े हैं। 
 
उन्होंने सवाल उठाया कि एक ओर कोल इंडिया कह रहा है कि उसने पिछले वर्ष की तुलना में 15.6% अधिक उत्पादन किया है और यह उत्पादित कोयला रेलवे रैक की कमी के कारण ताप बिजली घरों तक नहीं पहुंच पा रहा है। देश भर में यात्री ट्रेनों को रद्द किया जा रहा है फिर भी कोयला नहीं पहुंच पा रहा है।ऐसे में यदि कोयला आयात कर भी लिया गया तो आयातित कोयला बंदरगाहों पर आएगा और बंदरगाहों से रेलवे रेक के अभाव में यह कोयला ताप बिजली घरों तक कैसे पहुंचेगा यह बड़ा सवाल है।