अदालत ने खारिज किया तीन तलाक, महिला को मिला न्याय
- कुंवर राजेन्द्रपाल सिंह सेंगर
बागली (देवास)। बागली के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश मनीषा बसेर ने मंगलवार को तीन तलाक मामले में दाखिल एक अपील पर पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाते हुए अपील को खारिज कर दिया।
न्यायालय ने मौखिक तलाक, तलाक, तलाक कहकर विवाह विच्छेद करने के बाद घोषणात्मक सहायता प्राप्त करने के लिए पति द्वारा निचली अदालत में दायर वाद निरस्त किए जाने के विरुद्ध प्रस्तुत अपील को खारिज करके निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है।
क्या है पूरा मामला : लगभग एक वर्ष पूर्व पति ने विवाह के केवल 6 माह बाद ही तलाक, तलाक, तलाक कहकर विवाह विच्छेद कर लिया था और घोषणात्मक सहायता के लिए बागली के न्यायिक दंडाधिकारी प्रथम श्रेणी के न्यायालय में एक आवेदन दाखिल किया था, जिसे तत्कालीन न्यायाधीश राजेन्द्रसिंह ठाकुर ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद खारिज कर दिया था।
यह महत्वपूर्ण फैसला उस समय आया था जब समूचे देश में तीन तलाक के विरुद्ध मुस्लिम महिलाओं द्वारा माहौल बनाया गया था। जानकारी के अनुसार, चापड़ा निवासी शाहरुख पिता अजीज खां पठान का विवाह शबनमबी पुत्री अहमद खां निवासी नागझीरी सोनकच्छ के साथ 16 अप्रैल 2015 को 51 हजार 786 रुपए मेहर राशि के साथ तय हुआ था। विवाह के पश्चात ही पति-पत्नी में अनबन आरंभ हुई और पत्नी ने पति के विरुद्ध पारिवारिक परामर्श केन्द्र देवास में आवेदन भी दिया था। साथ ही पति के विरुद्ध पुलिस थाने में भी घरेलू हिंसा एवं दहेज प्रताड़ना की प्राथमिकी दर्ज करवाई थी।
इसी बीच पति द्वारा पत्नी को श्रेणी का तलाक (तलाक-उल-बिद्दत) मौखिक रूप से दिया गया था। प्रकरण न्यायालय में प्रचलित होने पर पति शाहरुख इस प्रकार से तलाक दिए जाने को अदालत में साबित नहीं कर पाया एवं निचली अदालत ने उसके वाद को खारिज कर दिया।
अपील किए जाने पर न्यायाधीश बसेर ने दोनों पक्षों को सुनकर पाया कि शबनम को मेहर की राशि व इद्दत की राशि भी भुगतान किए जाने का कोई साक्ष्य नहीं है। साथ ही यहां भी पति अपने द्वारा दिए गए तलाक को साबित नहीं कर पाया। फलस्वरूप न्यायाधीश बसेर ने पति शाहरुख की अपील निरस्त कर दी। शबनम की ओर से हाटपीपल्या निवासी अधिवक्ता कमलेश शर्मा ने पैरवी की।
माननीय जज ने दिया यह दृष्टांत : निचली अदालत में पैरवी के दौरान न्यायाधीश ठाकुर ने अपने फैसले में इकबाल बानो विरुद्ध उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के न्याय दृष्टांत का उल्लेख किया था। इसमें माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय को रेखांकित किया गया था कि तलाक की घोषणा सामान्य तौर पर केवल तलाक, तलाक, तलाक कहने को नहीं माना है, उसे मुस्लिम विधि अनुसार होना चाहिए। न्यायाधीश ठाकुर ने एक और न्याय दृष्टांत का उल्लेख किया था जिसमें उच्चतम न्यायालय ने मार्गदर्शी सिद्धांत प्रतिपादित किया था कि पवित्र कुरान के अनुसार, तलाक हेतु सद्भाविक कारण होना चाहिए और उसके पूर्व सुलह प्रयास होना चाहिए।
इसमें एक मध्यस्थ पत्नी की ओर से एवं कम से कम एक मध्यस्थ पति की ओर से हो एवं इसके पश्चात सुलह चर्चा विफल होने पर तलाक को प्रभावी माना गया है, जबकि उपरोक्त प्रकरण में वादी पति द्वारा यह नहीं सिद्ध किया जा सका कि तलाक किसके सामने दिया और कब दिया गया।