किसे नुकसान देगा कम मतदान
महाराष्ट्र में 8 सीटों पर तीन चरणों में हुए मतदान में 2004 के पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में पाँच प्रतिशत कम मतदान हुआ। इसका किस दल पर कितना असर पड़ेगा यह निश्चयपूर्वक कोई नहीं कह सकता।राज्य में तीसरे एवं अंतिम चरण में मुंबई और ठाणे जिलों की लगभग सभी नगरीय 10 सीटों पर मतदान का प्रतिशत पिछली बार की ही भाँति करीब 10 प्रतिशत कम रहा। मतदान में कमी के कारणों में भारी गर्मी और चुनावी राजनीति के प्रति आम मतदाताओं की बेरुखी से लेकर शादी-ब्याह के सत्र में मुंबई और ठाणे में बसे लाखों उत्तर भारतीयों समेत अन्य के उनके मूल राज्य चले जाना शामिल बताया जाता है।राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कम मतदान से शिवसेना और भाजपा जैसे काडर आधारित दलों को फायदा हो सकता है पर कांग्रेस नेता हुसैन दलवाई इसे नहीं मानते और उनका दावा है कि मुंबई में पार्टी के सभी प्रत्याशी जीतेंगे। हुसैन की मानें तो मुंबई में शिवसेना का सूपड़ा साफ हो जाएगा क्योंकि उसके तीनों प्रत्याशियों का मुकाबला कांग्रेस से है। पिछली बार मुंबई में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया था और शिवसेना ने सिर्फ एक सीट राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को हराकर जीती थी। इस बार मुंबई की सिर्फ एक सीट पर चुनाव लड़ रहे राकांपा का मुकाबला शिवसेना के बजाए भाजपा से है। तय है कि कम मतदान का विभिन्न राजनीतिक दलों पर पड़ने वाले असर का पता 16 मई को मतगणना पूरी होने पर ही मिलेगा। अंतिम चरण की 10 सीटों पर कुल मिलाकर 1.73 करोड़ मतदाताओं में से 3.5 प्रतिशत ने वोट डाले। इनमें से सर्वाधिक 9.15 प्रतिशत मतदाताओं ने उत्तर पश्चिम सीट पर वोट डाले जहाँ कांग्रेस और शिवसेना के बीच मुख्य मुकाबले को सपा, बसपा और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना मनसे के प्रत्याशियों ने और भी जटिल बना दिया है। पहले धनाढ्य बहुल रही पर अब मलिन बस्तियों का भी संग ले चुकी दक्षिण मुंबई की सीट पर 3.33 प्रतिशत मतदान हुआ। ठाणे जिले की नई सीट भिवंडी पर सबसे कम (38.8) मतदान हुआ जहाँ लगे सैकड़ों हथकरघा और पॉवरलूम उद्योग में बड़ी संख्या में मुस्लिम कार्यरत हैं। राज्य में 13 सीटों पर प्रथम चरण में 16 अप्रैल को कराए मतदान का प्रश भी पिछले चुनाव की तुलना में करीब 5 प्रश कम रहा।प्रथम चरण की सीटों में से पिछली बार से ज्यादा मतदान सिर्फ एक निर्वाचन क्षेत्र भंडारा, गोंदिया में हुआ है जहाँ खड़े प्रत्याशियों में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री व राकांपा के नेता प्रफुल्ल पटेल शामिल हैं जो पिछली बार 3009 मतों के अंतर से हारे थे। गर्मी से गिरा मतदान : कुछ राजनीतिक विश्लेषक इस बार के मतदान में गिरावट के कारणों में विदर्भ क्षेत्र में डिग्री सेल्सियस तक की भीषण गर्मी उसके आंध्रप्रदेश और छत्तीसगढ़ से लगे जिलों गढचिरौली, चन्द्रपुर, भंडारा तथा चिमूर के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में मतदान अन्य क्षेत्रों की तुलना में दो घंटे पहले समाप्त करने के अलावा उम्मीदवारों के बीच आम लोगों के मुद्दों के प्रति कथित उदासीनता को भी शामिल मानते हैं। कुछ अन्य विश्लेषकों का कहना है कि गर्मी कोई खास वजह नहीं हो सकती क्योंकि पिछली लोकसभा चुनाव में भी राज्य में मतदान लगभग ऐसे ही मौसम में 20 और 26 अप्रैल को कराए गए थे।