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Last Updated : रविवार, 10 मार्च 2019 (14:15 IST)

राजस्थान में आसान नहीं है भाजपा की राह, कई सीटों पर फंसा पेंच

राजस्थान में आसान नहीं है भाजपा की राह, कई सीटों पर फंसा पेंच - Lok Sabha elections in Rajasthan
जयपुर। लोकसभा चुनावों के लिए राजस्थान से एक बार फिर अपने लिए मिशन-25 तय कर चुकी भारतीय जनता पार्टी को जयपुर सहित करीब 10 सीटों पर प्रत्याशियों की खींचतान से जूझना पड़ सकता है। पूर्व विधायक व जयपुर राजघराने की सदस्य दीया कुमारी के भी लोकसभा चुनाव लड़ने की अटकलों से कई संभावित प्रत्याशी अपना क्षेत्र बदले जाने या टिकट कटने की आशंका से डरे हुए हैं।
 
दीया कुमारी जयपुर शहर से दावेदारी कर रही हैं जबकि जयपुर ग्रामीण से ही राजपूत चेहरे के तौर पर केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ मौजूद हैं। प्रदेश भाजपा के एक सूत्र ने कहा कि दीया कुमारी को यदि जयपुर से उम्मीदवार बनाया जाता है, तो जातीय समीकरण ठीक करने के लिए अन्य क्षेत्रों में उलटफेर करना पड़ेगा।
 
प्रदेश भाजपा के एक नेता ने नाम का उल्लेख न करने की शर्त पर बताया कि जयपुर शहर, बीकानेर और गंगानगर के साथ-साथ बाड़मेर, सीकर, टोंक, राजसमंद, झुंझुनू, चुरू और धौलपुर, भरतपुर सहित कम से कम 10 लोकसभा सीटों पर भाजपा के लिए सांसद- विधायकों के अंतरविरोध की खबर से वे पार्टी आलाकमान को अवगत करा चुके हैं।
 
जयपुर शहर से पिछली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पृष्ठभूमि वाले रामचरण बोहरा 5.39 लाख से भी अधिक मतों के रिकॉर्ड अंतर से लोकसभा चुनाव जीते थे। इस बार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ने वाली दीया कुमारी ने हालांकि खुलकर अपनी राय जाहिर नहीं की है लेकिन हाल ही में राजनीतिक और सामाजिक हल्कों में उनकी सक्रियता काफी बढ़ी है। दीयाकुमारी ने हाल ही में सवामणी के नाम से एक बड़े भोज का आयोजन किया और इसमें पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह भी शामिल हुए। इस आयोजन को दीया कुमारी के शक्ति परीक्षण के रूप में देखा गया।
 
राजनीतिक गलियारों में चर्चा यही है कि भाजपा अगर जयपुर में दीया कुमारी की दावेदारी का समर्थन करती है तो टिकट किसका कटेगा। जयपुर में 2 सीटें हैं जिसमें से जयपुर का प्रतिनिधित्व रामचरण बोहरा कर रहे हैं तो जयपुर ग्रामीण से राज्यवर्धन सिंह राठौड़ सांसद हैं। राठौड़ केंद्र में मंत्री तो हैं ही, पार्टी नेतृत्व उन्हें राजस्थान में भविष्य के बड़े राजपूत नेता के तौर पर भी देखना चाहता है।
 
वहीं पहली बार सांसद बने संघ पृष्ठभूमि वाले बोहरा का कहना है कि उनकी क्षेत्र पर अच्छी पकड़ है और विधायक उनके काम से खुश हैं, ऐसे में जयपुर में दीया कुमारी के लिए जगह कहां है? जहां तक टोंक सवाई माधोपुर सीट का सवाल है तो भाजपा के मौजूदा सांसद सुखबीर सिंह जौनपुरिया पहली बार सांसद हैं। उनकी भी हाल ही में राजे से मुलाकात को लेकर यहां मीडिया में काफी चर्चा रही।
 
पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष मदनलाल सैनी ने कहा है कि टिकट कार्यकर्ताओं की राय के आधार पर ही दिया जाएगा, लेकिन प्रदेश नेताओं की राय अलग है। वे कह रहे हैं कि कार्यकर्ताओं की राय पर टिकट देने के तर्क का हश्र खुद कार्यकर्ता विधानसभा चुनाव में देख चुके हैं। उनका मतलब साफ है कि विधानसभा चुनावों में प्रत्याशियों के चयन में कार्यकर्ताओं की राय को महत्व नहीं दिया गया और उसी का नतीजा था कि कई सीटों पर पार्टी को बगावत का सामना करना पड़ा। प्रदेश के नेता मान रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में एक बार फिर पार्टी को 'बगावत' का सामना करना पड़ सकता है।
 
बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर भी पार्टी के सामने दुविधा बनी हुई है। यहां से भाजपा सांसद कर्नल सोनाराम ने हाल ही में विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन वे हार गए। अब पार्टी उन्हें दोबारा मौका देगी इसको लेकर कयास चल रहे हैं। वहीं गंगानगर सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री निहालचंद को फिर से टिकट दिए जाने को लेकर भी आशंका जताई जा रही है।
 
दरअसल, कथित दुष्कर्म का एक मामला निहालचंद का पीछा नहीं छोड़ रहा है। गंगानगर आरक्षित सीट है और चर्चा यह है कि पास की बीकानेर सीट से सांसद और केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल इस बार गंगानगर से चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं। बीकानेर में मेघवाल का खुलकर विरोध देवीसिंह भाटी कर रहे हैं जिनकी पुत्रवधू पूनम कंवर कोलायत सीट से भाजपा की प्रत्याशी थीं और चुनाव हार गईं।
 
भाटी ने हाल ही में एक कार्यक्रम कर 'मेघवाल समाज' के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया और आरोप लगाया कि आरक्षण का फायदा एक ही जाति विशेष को मिला है। हालांकि पार्टी की ओर से इस विरोध व विवाद के बारे में कुछ नहीं कहा गया है और मेघवाल ने बीकानेर को अपना जन्म व कर्मक्षेत्र बताते हुए मामले को टालने की कोशिश की। लेकिन जानकारों के अनुसार मेघवाल काफी दिनों से गंगानगर में अधिक सक्रियता दिखा रहे हैं। 
 
राज्य में लोकसभा की 25 सीटें हैं। गत लोकसभा चुनाव में सारी सीटें भाजपा के खाते में गई थीं लेकिन बाद में हुए उपचुनावों में 2 सीटें कांग्रेस ने जीत लीं। विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अभियान की शुरुआत '180 प्लस' के नारे के साथ की थी लेकिन अंतत: उसकी संख्या 73 रही। (भाषा)