दुनिया अभी जीने लायक है
विजयशंकर चतुर्वेदी
मैं सोचता थापानी उतना ही साफ पिलाया जाएगाजितना होता है झरनों काचिकित्सक बिलकुल ऐसी दवा देंगेजैसे माँ के दूध में तुलसी का रसमैं जहर खाने जाऊँगातो रोक लेगा कोईड्रायवर मंजिल तक पहुँचा देगाऔर मैं मार लूँगा एक नींदघर पहुँचूँगा तो बाल-बच्चे मिलेंगे सही-सलामतट्रेन के सामने आ जाने परलगा दिया जाएगा ब्रेक ऐन मौके परऔर लोग डाँट पिलाएँगे-'
यह क्या नादानी है, दुनिया अभी जीने लायक है।'