मच्छर, कब जाओगे घर से?
व्यंग्य
राजेश तस्कीं कलयुग के इस काल में चूषक पेय का चलन बढ़ा है। बोतल में नल्ली डाली और सारा पेय पदार्थ चूस डाला। अंतिम बूँद भी नल्ली से पेट में। जमाना इन्हीं चूषक तत्वों का है। टीवी खोलो तो मस्तिष्क चूषक विज्ञापनों, सड़ल्ले सास-बहू सीरियलों की भरमार है। रोने-गाने, सरफोड़ू रंजिश की सदियों पुरानी कहानियों में जिंदगी करवट लेती दिखाई नहीं देती...।मस्तिष्क भोज का समूहगत नजारा देखते-देखते आपकी 'उँगली क्रिकेट' से विकेट गिर जाता है। अगला चैनल अगर सनसनाते हुए समाचारों का हुआ तो वह आपकी सारी आस्था, विश्वास और मानवता चूस लेता है। आपकी समझ में भर दिया जाता है कि घोर कलयुग आ गया। क्राइमशास्त्र आपके द्वारा वाचित सारे शास्त्रों को चिंदे-चिंदे कर देता है। चूषक तत्वों की, सच में भाई साहबजी, देश में कमी नहीं। आप जिसके नौकर होने का अभिनय करते हैं वह पूरी गंभीरता से संगीन तौर पर आपका पूरा तेल चूस लेता है। आप ऑफिस-ऑफिस खेलकर जब घर-घर की कहानी में प्रवेश करते हैं तो वहाँ दूसरा 'मालिक' आपका रक्त शोषण करने को तैयार बैठा मिलता है। आपका पुरुष भाव थका-मांदा स्त्रैणता ग्रहण करता है और आपकी स्त्री पूरे जोश से पुरुष बनी अपना अहंकार प्रदर्शित कर बैठती है। बेचारे, पत्नी वाले आप उस शुभ घड़ी को कोसते हैं जब आपने विस्तार वश एक से दो होना 'कबूल' किया था। यह चूषक तत्व जनाब, सबसे खतरनाक माना गया है मगर इससे भी डेंजरस एक तत्व है, जो आपके घर का ऐसा अतिथि है जो अब जाने का नाम ही नहीं लेता। आपकी रक्तवाहिनी के पेय पदार्थ में अपनी नल्ली डालकर जब चाहे, जैसे चाहे आपका खून चूस लेता है। आप हजार उपाय कर लें, मेट-फेट लगा लें या क्वाइल के पैकेट-दर-पैकेट जला लें, जो चाहे छिड़क लें लेकिन कमबख्त रक्तबीज कैंसर और एड्स के वायरस से ज्यादा अमर है मरता ही नहीं। सरजी, हिन्दुस्तान में सबका तोड़ है लेकिन अब तक रक्त चूषक मच्छरों का तोड़ नहीं बना। हम चाँद पर जाकर कंकर-पत्थर बीन सकते हैं, पाताल में जाकर पेट्रोल निकाल सकते हैं, उत्तर-दक्षिण ध्रुवों तक क्षण में संवाद कर सकते हैं लेकिन भाई अल कायदा की कसम, इन घरेलू आतंकवादियों की सत्ता नहीं हिला सकते। लोग इन रक्त-चूषकों के लिए गंदगी और गंदगी शोधक निगम को दोष देते हैं। भाईजी, इसमें उन निठल्लों का क्या दोष? वंशानुगत स्वभाव से वे भी रक्त-चूषक परंपरावादी होने से अपने भाईबंदों का गला कैसे काट सकते हैं? भ्रष्टाचारी कभी भ्रष्टाचारी का अंत नहीं कर सकता। आतंकवादी आतंकवादी को कैसे मार सकता है? अस्तु महात्मा गाँधीगिरी पर अहिंसक तौर पर चलना ही बुद्धिमानी है। गाँधीजी की प्रार्थना पर गहरी आस्था थी और यही प्रार्थना रक्त-चूषक अँगरेजों से कर-करके उन्होंने देश को आजाद करा लिया। जिसके झंडे तले कभी सूरज अस्त नहीं होता था, उस सत्ता को वापस पश्चिमास्त कर दिया। ऐसी ही प्रार्थना शक्ति से मच्छरों को उनके मूल स्थान पर लौटाया जा सकता है। भाई साहबजी, मैं इसी गाँधीगिरी में लगा गा रहा हूँ : 'मच्छर कब जाओगे घर से, मच्छरजी कब जाओगे घर से...।' आप यही प्रार्थना शुरू कर दें, क्योंकि अभी विज्ञान मच्छरात्मा के खात्मे तक नहीं पहुँचा है। इसलिए जहाँ विज्ञान नहीं वहाँ ज्ञान से काम लें। चैन से सोना है तो जाग जाएँ और गाएँ, 'मच्छर कब जाओगे घर से'।