maharana pratap: महाराणा प्रताप न सिर्फ मेवाड़ के राजा थे, बल्कि वे उन विरले योद्धाओं में से एक थे जिन्होंने अकबर जैसे महान मुगल सम्राट के सामने झुकने की बजाय जंगलों में रहना पसंद किया। उनके जीवन का हर पल संघर्ष से भरा था, लेकिन उनका आत्मसम्मान कभी भी डगमगाया नहीं। आज के दौर में जब युवाओं को रोल मॉडल की तलाश होती है, महाराणा प्रताप की कहानी उन्हें सिखाती है कि सच्ची ताकत केवल तलवार में नहीं होती, बल्कि उस जिद में होती है जो अन्याय के खिलाफ झुकने से इनकार कर दे। उनकी वीरता के किस्से स्कूल की किताबों में भले सीमित हो गए हों, लेकिन उनके सिद्धांत आज भी हर सच्चे भारतीय के दिल में जिंदा हैं। अब बात करते हैं उस ऐतिहासिक और रोचक सवाल की जो आज भी बहुत से लोगों के मन में आता है – आख़िर महाराणा प्रताप के कितने सगे भाई थे?
महाराणा प्रताप के कितने भाई थे?
हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर महाराणा प्रताप जी की जयंती मनाई जाती है। मेवाड़ के वीर योद्धा महाराणा प्रताप की जयंती 29 मई को मनाई जाएगी। वे उदयसिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के सबसे बड़े पुत्र थे। हालांकि इतिहास की मुख्यधारा में महाराणा प्रताप के बारे में ही सबसे ज्यादा चर्चा होती है, लेकिन उनके परिवार और विशेषकर उनके भाइयों की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
महाराणा प्रताप के कुल 25 भाई थे, जिनमें से 11 सगे भाई थे। बाकी उनके पिता उदयसिंह द्वितीय की अन्य रानियों से जन्मे सौतेले भाई थे। ये सभी भाई प्रताप के जीवन में किसी न किसी रूप में जुड़े रहे, लेकिन हर भाई का सोच, राजनीति और मुगलों के प्रति रुख अलग-अलग था, यही बात उनके जीवन को और भी दिलचस्प बना देती है।
इनमें से कुछ भाइयों ने महाराणा प्रताप के संघर्ष में साथ दिया, तो कुछ ने मुगल पक्ष का समर्थन कर उनके खिलाफ खड़े होने का निर्णय लिया। सबसे प्रमुख नामों में से एक है शक्तिसिंह, जो प्रताप के छोटे भाई थे। शक्तिसिंह की कहानी काफी उलझी हुई रही। प्रारंभ में उन्होंने मुगलों का साथ दिया, लेकिन हल्दीघाटी के युद्ध के दौरान जब उन्होंने प्रताप की जान खतरे में देखी, तो उनका खून खोल उठा और वे अपने भाई की जान बचाकर वीरता की मिसाल बन गए। यह पल न सिर्फ इतिहास के पन्नों में दर्ज है, बल्कि यह दर्शाता है कि खून का रिश्ता राजनीति से बड़ा होता है।
एक अन्य भाई, जगतसिंह, का इतिहास में ज्यादा उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन यह माना जाता है कि उन्होंने मेवाड़ की प्रशासनिक व्यवस्था को संभालने में योगदान दिया। वहीं कुछ सौतेले भाइयों ने मुगलों से मेलजोल बढ़ाकर मेवाड़ की स्वतंत्रता को खतरे में डाला, जिससे प्रताप के संघर्ष और भी जटिल हो गए।
महाराणा प्रताप का जीवन एक ओर जहां उनके संघर्ष, वीरता और आत्मसम्मान से जुड़ा हुआ है, वहीं दूसरी ओर उनके पारिवारिक रिश्तों में भी उतार-चढ़ाव की एक लंबी कहानी है। उनके भाई कोई सामान्य लोग नहीं थे, बल्कि वे सभी क्षत्रिय योद्धा थे और अपनी-अपनी समझ से निर्णय लेते थे।
मुगलों के विस्तारवादी रुख के सामने कुछ भाई जहां झुक गए, वहीं प्रताप अडिग रहे। लेकिन इतिहास में सबसे गौर करने लायक बात यह है कि प्रताप ने अपने किसी भी भाई के प्रति सार्वजनिक रूप से द्वेष नहीं पाला। उन्होंने उन भाइयों को भी माफ किया जिन्होंने शुरू में उनका साथ नहीं दिया था। यही महाराणा प्रताप की महानता को और भी बड़ा बना देता है।
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