जीवन के रंगमंच से...
जीवन का नृत्य
आपने कभी जीवन को नृत्य करते देखा है? नहीं?? फिर वो क्या था, जो उसकी आँखों में आँसू बनकर छलक आया था, जब वह अकेली रसोई में रोटी सेंक रही थी और तपते तवे पर जली हुई रोटी को ऐसे हटा रही थी, जैसे उसका कोई सपना गृहस्थी के चूल्हे पर राख हो रहा हो। फिर अचानक उसकी बेटी पीछे से आकर उसका पल्लू खींचती है, तो रोटी के डिब्बे से सबसे नरम रोटी पर खूब सारा घी लगाकर उसे यूँ देती है, जैसे अपने किसी सबसे सुंदर सपने का निवाला उसके मुँह में डाल रही हो कि मैं न सही मेरी बेटी वो सपना पूरा करेगी। रोटी के हर कौर के साथ जैसे शपथ ले रही हो कि कुछ भी हो जाए, अपनी बेटी के सपनों को इस रसोई की भट्टी में जलने नहीं देगी।मुझे जीवन का नृत्य तब भी दिखाई दिया था, जब घर में उसे सबसे बागी करार दिया गया था, जब उसने पिता की मृत्यु के बाद उनकी सरकारी नौकरी को लेने से मना कर दिया था, क्योंकि वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनना चाहता था। मध्यमवर्गीय परिवार का इकलौता बेटा अपनी बड़ी बहन की तनख्वाह पर अपना सपना पाल रहा था...कि एक दिन इसी बहन के कदमों में ढेर सारे रुपए लाकर रख देगा जब उसे किसी बड़ी कंपनी में नौकरी मिल जाएगी। |
आपने कभी जीवन को नृत्य करते देखा है? नहीं?? फिर वो क्या था, जो उसकी आँखों में आँसू बनकर छलक आया था, जब वह अकेली रसोई में रोटी सेंक रही थी और तपते तवे पर जली हुई रोटी को ऐसे हटा रही थी, जैसे उसका कोई सपना गृहस्थी के चूल्हे पर राख हो रहा हो। |
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जीवन का नृत्य तब भी देखा था, जब उसका साँवला रंग और भारी शरीर पुरुष की स्वप्न सुंदरी के पैमाने में फिट नहीं बैठ पा रहा था और उसने आजीवन विवाह न कर आश्रम से सबसे साँवली लड़की को गोद ले लिया था। और जीवन को उस डिस्को थेक पर भी नृत्य करते देखा है, जहाँ खुली पीठ पर बने टैटू सिगरेट के धुएँ में धुँधले पड़ जाते हैं। और प्रेम का स्पर्श देह से लिपटकर सड़ जाता है।कभी अधूरे सपने पर तो कभी सपने के पूरा हो जाने पर, कभी प्रेम की लय में थिरकते हुए, कभी उदासी की बाँहों में झूमते हुए, कभी अपनों से लड़कर तो कभी किसी अजनबी का हाथ पकड़ लहराते हुए, कभी संस्कारों के मंदिर में, कभी आधुनिकता के मंच पर, हर जगह मैंने जीवन को नृत्य करते हुए देखा है। कोई वंचित नहीं रहता जीवन के नृत्य से, लेकिन अपने नृत्य में जो निपुण हो जाता है वह कृष्ण का रास हो जाता है, शिव का तांडव हो जाता है और फिर लोग कभी-कभी यह भी कह उठते हैं- पग घुँघरू बाँध मीरा नाची रे......