भागदौड़ भरी जिंदगी, फैशनेबल और स्टेट्ससिंबल का दिखावा बढ़ने के कारण ये त्योहार पुराने जमाने के रीति-रिवाजों को कहीं पीछे छोड़ आए हैं। आज इस बदलते युग ने बहनों की भी परिभाषा बदल दी है। आज बहनों के पास राखी बाँधने का टाइम भी नहीं होता है। तो वह पहले से भाइयों को फोन करके बता देती है कि 'मैं इस समय आऊँगी और इसी समय राखी बाँधकर तुरंत निकल जाऊँगी।'
रिश्ते की यह मजबूत डोर सिर्फ एक फैशन और कमाई का जरिया बनकर रह गई है। उसके पीछे रही भावनाएँ आज कहीं जाकर गुम हो गई है। आज का युग बदल जरूर गया है। लेकिन उसके साथ अगर त्योहारों के मायने भी बदलने लगे तो फिर क्या कहनें, उन रिश्तों का क्या जो दिल से निभाएँ जाते है सिर्फ पैसे और फैशन के बल पर नहीं। अगर त्योहार और रिश्तों का यह फेर इसी तरह बदलता रहा तो फिर कुछ शेष ही नहीं रह जाता।
आज के समय में कई जगहों पर ध्यान पैसे बचाने का होता है। जैसे कई घरों में यह भी होता है कि भाई के लिए मिठाई लानी हो तो बहन अपने नौकर को पैसे देकर कह देती है जाओ और दुकान पर जो सबसे सस्ती मिठाई हो लेकर आओ। महँगाई के युग में राखियों पर गिरी भावों की गाज से वहाँ पर भी हर तरह का सौदा किया जाता है। सस्ती से सस्ती राखी या कम से कम बजट वाली राखी ली जाती है।
भागदौड़ भरी जिंदगी, फैशनेबल और स्टेट्ससिंबल का दिखावा बढ़ने के कारण ये त्योहार पुराने जमाने के रीति-रिवाजों को कहीं पीछे छोड़ आए हैं। आज इस बदलते युग ने बहनों की भी परिभाषा बदल दी है। आज बहनों के पास राखी बाँधने का टाइम भी नहीं होता है।
राखी के त्योहार का यह बदला हुआ रूप मनुष्य की भावनाओं से खिलवाड़ करता हुआ साफ तौर पर नजर आता है। आखिरकार त्योहार के पीछे जुड़ी भावनाओं का अपना अलग ही महत्व होता है। लेकिन क्या करें समयानुसार आए इस परिवर्तन से सभी के दिलों को झकझोर कर रख दिया है।
आज समय के अनुसार और समाज में बढ़ते पैसे की चलन के कारण राखी के रिश्ते और प्यार के इस बंधन का असर 'पैसे वालों के महलों और गरीबों के झोपड़ों' पर भी नजर आने लगा है। कल का ही एक सच्चाई भरा वाक्या पेश है- जहाँ एक गरीब और अमीर दिलों की रिश्तों की नजाकत बताती हुई सच्ची घटना।
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'एक भैया-भाभी अपनी तीनों ननदों के यहाँ फोन करके राखी पर आने और खाना खाने के लिए आमंत्रित करती है। तीन भाई-तीन बहनों के बीच एक भाई कमाई के मामले में कमजोर वर्ग का हैं जिसके यहाँ से तीनों बहनों को सबसे पहले बुलावा दिया जाता है। उस समय उनमें एक ननद का यह कहना होता है कि सबसे छोटे भाई याने महलों वाले भाई के यहाँ बुलावा अभी तक तो आया नहीं है लेकिन अगर उनके यहाँ का बुलावा आ गया तो हम खाना वहाँ खा लेंगे। तुम्हारे यहाँ सिर्फ नाश्ता कर लेंगे। यह सुनकर उस गरीब भाई के पैरों तले जमीन खसक जाती है कि भाई तो सभी एक से हैं ! अगर कोई कम कमा रहा है तो क्या हुआ। उसकी कमाई से उन रिश्तों पर कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। और फिर जब तीनों भाइयों के यहाँ से पहला बुलावा अगर गरीब भाई ने कर दिया तो कौन-सा गुनाह हो गया।'
पैसे की इस बदलती माया ने रिश्तों को भी अपनी जकड़ में ले लिया है। पैसे के आगे भाई का स्नेह भरा रिश्ता बहन को फीका लगने लगा है। उसे लगता है लखपति भाई के यहाँ खाना नहीं खाएँगे तो शायद उन्हें बुरा लग जाएगा लेकिन रिश्ते तो एक से होते हैं फिर क्या लखपति और क्या गरीब, दिल तो एक-सा ही होता है चाहे वह पैसे वाले को हो या गरीब का। उसमें फर्क करने जैसी कोई बात नहीं होती और होनी भी नहीं चाहिए। क्योंकि इस दुनिया सबसे लंबे समय तक जो निरंतर चलता रहता है वह रिश्ता है। पैसा तो आज है कल नहीं है।
वैसे भी लक्ष्मी कभी एक जगह टिककर रहती कहाँ है। लेकिन रिश्ते वह होते है जो आपको जोड़े रखने के अलावा एक अंदरूनी संतुष्टि भी देते है। जिससे आम आदमी उन रिश्तों के बलबूते पर जीवन की हर जंग बड़ी आसानी से लड़ लेता है। काश ! दुनिया के इन अमीरों-गरीबों का फासला दूर हो जाए। और रिश्तेळ सही मायने में रिश्ते ही रहे तो फिर इस दिल की दुनिया वालों के उन रिश्तों के क्या कहने।
वास्तव में जिस दिन ऐसा कुछ होगा उस दिन इस दुनिया का रूप ही अलग-सा नजर आने लगेगा। और तभी सभी के दिलों को सुकून महसूस होगा कि रिश्ते की यह मजबूत डोर कभी किसी अमीर और गरीब के दिलों को पाट ना सकेंगी।