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Written By WD

प्रभाव- ग्रहों की युति-प्रतियुति के

प्रभाव- ग्रहों की युति-प्रतियुति के
- भारती पंडित

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जब दो ग्रह एक ही राशि में हों तो इसे ग्रहों की युति कहा जाता है। जब दो ग्रह एक-दूसरे से सातवें स्थान पर हों अर्थात् 180 डिग्री पर हों, तो यह प्रतियुति कहलाती है। अशुभ ग्रह या अशुभ स्थानों के स्वामियों की युति-प्रतियुति अशुभ फलदायक होती है, जबकि शुभ ग्रहों की युति शुभ फल देती है। आइए देखें, विभिन्न ग्रहों की युति-प्रतियुति के क्या फल हो सकते हैं -

1. सूर्य-गुरु : उत्कृष्ट योग, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा, यश दिलाता है। उच्च शिक्षा हेतु दूरस्थ प्रवास योग तथा बौद्धिक क्षेत्र में असाधारण यश देता है।

2. सूर्य-शुक्र : कला क्षेत्र में विशेष यश दिलाने वाला योग होता है। विवाह व प्रेम संबंधों में भी नाटकीय स्थितियाँ निर्मित करता है।

3. सूर्य-बुध : यह योग व्यक्ति को व्यवहार कुशल बनाता है। व्यापार-व्यवसाय में यश दिलाता है। कर्ज आसानी से मिल जाते हैं।

4. सूर्य-मंगल : अत्यंत महत्वाकांक्षी बनाने वाला यह योग व्यक्ति को उत्कट इच्छाशक्ति व साहस देता है। ये व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करने की योग्यता रखते हैं।
  जब दो ग्रह एक ही राशि में हों तो इसे ग्रहों की युति कहा जाता है। जब दो ग्रह एक-दूसरे से सातवें स्थान पर हों अर्थात् 180 डिग्री पर हों, तो यह प्रतियुति कहलाती है। अशुभ ग्रह या अशुभ स्थानों के स्वामियों की युति-प्रतियुति अशुभ फलदायक होती है।      


5.सूर्य-शनि : अत्यंत अशुभ योग, जीवन के हर क्षेत्र में देर से सफलता मिलती है। पिता-पुत्र में वैमनस्य, भाग्य का साथ न देना इस युति के परिणाम हैं।

6. सूर्य-चंद्र : चंद्र यदि शुभ योग में हो तो यह यु‍ति मान-सम्मान व प्रतिष्ठा की दृष्टि से श्रेष्ठ होती है, मगर अशुभ योग होने पर मानसिक रोगी बना देती है।

7. चंद्र-मंगल : यह योग व्यक्ति को जिद्‍दी व अति महत्वाकांक्षी बनाता है। यश तो मिलता है, मगर स्वास्थ्‍य हेतु यह योग हानिकारक है। रक्त संबंधी रोग होते हैं।
8. चंद्र-शुक्र : वैवाहिक जीवन के लिए फलदायी योग, मनचाहा जीवनसाथी मिलता है, विवाह के बाद भाग्योदय, यश मिलता है। कला क्षेत्र में सफलता मिलती है। भाग्य साथ देता है।

9. चंद्र-गुरु : शिक्षा, नौकरी, विवाह, संतति सभी दृष्टि से अत्यंत फलदायक योग, जीवन में धन, यश, सुख सब मिलता है।

10. चंद्र-बुध : बुद्धि व वाक् चातुर्य बढ़ाने वाला योग है। ऐसे व्यक्ति व्यवहार कुशल व लोगों को जोड़ने वाले होते हैं। व्यवहार कार्य में यश मिलता है।

11. चंद्र-राहु : ग्रहण योग, शरीर स्वास्थ्य हेतु हानिकारक, जीवन में रुकावटें आती हैं। पानी से, भूत-पिशाच बाधा से, गुप्त शत्रुओं से परेशानी आती है।

12. चंद्र-केतु : निराशावादी व आलसी बनाने वाला योग है। विरक्ति व संन्यास की तरफ झुकाव, स्वास्थ्‍य की परेशानियाँ भी बनी रहती हैं।

13. चंद्र-शनि : वृषभ, तुला, मकर, कुंभ राशियों में यह योग शुभ है, जिसके फल 36 वर्ष के बाद मिलते हैं। अन्य राशियों के लिए प्रतिकूल हर कार्य में विलंब, आर्थिक कष्ट तथा वाणी की कठोरता जैसे फल मिलते हैं। इसे विष योग भी कहते हैं।

14. गुरु-राहु : यह चांडाल योग बनाता है। यह युति जिस भाव में हो, उसके फल का नाश करती है। आयु के उत्तरार्द्ध में ही सफलता मिलती है। जीवन निराशा, कष्ट व परेशानी में बीतता है।

15. शनि-मंगल : यह युति जीवन में अनिश्चितता व आकस्मिकता लाती है। सप्तम भाव में होने पर वैवाहिक जीवन का नाश करती है। दुर्घटनाएँ, जीवन में अस्थिरता होती है। अचानक घटनाएँ घटती हैं।