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Written By DW
Last Modified: बुधवार, 6 मार्च 2013 (13:37 IST)

मनचाहे वेतन पर लगाम

स्विट्जरलैंड कर्मचारी वेतन
FILE
स्विट्जरलैंड में मैनेजरों को बड़ी तनख्वाह देने पर रोक लगेगी। जनमत संग्रह में हुए फैसले के एक दिन बाद सरकार ने उस पर अमल शुरू किया। विरोधी नेताओं ने भी जनमत का सम्मान करते हुए इसे पूरी तरह लागू करने का वचन दिया है।

रविवार को हुए जनमत संग्रह में करीब 68 फीसदी लोगों ने मैनेजरों के वेतन पर लगाम लगाने की पहल का समर्थन किया। स्विट्जरलैंड में जनमत संग्रह के इतिहास में किसी पहल के लिए यह तीसरा सबसे बड़ा समर्थन है।

इसका लक्ष्य शेयरधारकों के अधिकारों को मजबूत कर शेयर बाजार में पंजीकृत कंपनियों के उच्च अधिकारियों को अत्यधिक वेतन और भत्ता देने की प्रथा पर रोक लगाना है। इसके अलावा नए मैनेजरों की भर्ती पर लाखों की स्वागत रकम और इस्तीफे पर गोल्डन हैंड शेक की प्रथा पर भी रोक लगेगी। इन नियमों को तोड़ने पर तीन साल की कैद और भारी जुर्माने की व्यवस्था है।

सोशल डेमोक्रैटिक न्यायमंत्री सिमोनेटा सोमारूगा ने मैनेजरों के अथाह वेतन पर लोगों में असंतोष को समझने वाला बताया। उन्होंने कहा कि इस पहल को मिला व्यापक समर्थन साफ संकेत है। यह अर्थव्यवस्था के उस तबके के लिए है जो सीमाएं भूल चुका है और सरकार के लिए भी जिसे इसे अब पूरी तरह से लागू करना है।

स्विस कानून के मुताबिक जनमत संग्रह में होने वाले फैसलों को लागू करने के लिए कानून बनाने के लिए सरकार के पास एक साल का समय होता है। मार्च 2014 तक इसे लागू करना होगा। सोमारूगा ने यह नहीं बताया है कि सरकार नया कानून बनाने के लिए एक साल का इंतजार करना चाहती है या उसे फौरन लागू करना चाहती है।

स्विट्जरलैंड के जनमत संग्रह के बाद जर्मनी में भी मैनेजरों की तनख्वाह पर लगाम लगाने की मांग जोर पकड़ गई है। सभी पार्टियों के नेताओं ने जनमत संग्रह के नतीजे का स्वागत किया है लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों ने स्विट्जरलैंड जैसा कानून बनाने के खिलाफ चेतावनी दी है। स्विस मतदाताओं ने फैसला लिया है कि शेयर बाजार में पंजीकृत कंपनियों को टॉप मैनेजमेंट के वेतन की पुष्टि शेयरधारकों से करानी होगी।

जर्मनी में सत्ताधारी सीडीयू-सीएसयू पार्टी के संसदीय दल के उपनेता मिषाएल फुक्स ने नतीजे को दूरगामी बताते हुए कहा है कि सरकार के हस्तक्षेप से बेहतर है कि शेयरधारक फैसला लें।

उन्होंने कहा कि यह बाजार पर आधारित मॉडल है जिसे जर्मनी के शेयरकानून में भी शामिल किया जा सकता है। इसके विपरीत शेयरधारकों के नियंत्रण पर संदेह जताते हुए विपक्षी एसपीडी के सांसद योआखिम पॉस ने कहा कि बहुत से शेयरधारक मुनाफे पर चलते हैं, ये ऐसे निवेशक हैं जिनका कारोबारी मॉडल अंधाधुंध बोनस पर आधारित है। उनका कहना है कि एसपीडी डाइरेक्टरों के वेतन और उस पर टैक्स की छूट पर कानूनी सीमा लगाने का समर्थन करती है।

वामपंथी पार्टी डी लिंके की पार्टी प्रमुख कात्या किपलिंग ने कहा है, 'हमें जर्मनी में भी असमानता की सीमा पर बहस की जरूरत है।' उन्होंने कहा कि एक लिमिटेड कंपनी का डाइरेक्टर एक कर्मचारी के मुकाबले 54गुना ज्यादा वेतन पाता है, इसे लोभ के अलावा और किसी बात से उचित नहीं ठहराया जा सकता। ग्रीन पार्टी के वित्तीय प्रवक्ता गेरहार्ड शिक ने भी कहा है कि जर्मनी को अत्यधिक वेतन पर रोक के लिए कड़े कानून बनाने की जरूरत है।

इसके विपरीत जर्मन आर्थिक शोध संस्थान के मिषाएल हुथर का कहना है कि ज्यादा कानून के बदले जर्मनी को ऐसे निदेशकों की जरूरत है जो खुद जिम्मेदारी उठाएं। हैम्बर्ग के विश्व आर्थिक संस्थान के निदेशक थोमस श्ट्राउबहार ने चेतावनी दी है कि सरकारी हस्तक्षेप पूरी तरह से गलत है। 'मेरे विचार से सरकार और जनमत को निजी कंपनियों में वेतन तय करने की प्रक्रिया से पूरी तरह से अलग रहना चाहिए।'

कई स्विस कंपनियों में बड़े मैनेजरों को मोटी तनख्वाह देने की खबरों के बाद जनमत संग्रह कराया गया था। आलोचक जिन मामलों का जिक्र कर रहे थे उनमें जर्मनी के रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर अक्सेल वेबर को स्विस बैंक यूबीएस का बोर्ड चेयरमैन बनने पर मिला 42 लाख डॉलर का स्वागत भत्ता भी शामिल है।

एमजे/ओएसजे (डीपीए, ईपीडी)