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Written By DW
Last Updated : सोमवार, 27 सितम्बर 2021 (08:42 IST)

जलवायु तटस्थ बनने के लिए अरबों रुपए क्यों खर्च कर रहा है जर्मनी

climate change | जलवायु तटस्थ बनने के लिए अरबों रुपए क्यों खर्च कर रहा है जर्मनी
रिपोर्ट : टिम शाउएनबेर्ग
 
जर्मनी 2045 तक जलवायु तटस्थ देश बनना चाहता है। इस स्थिति तक पहुंचने के लिए जर्मनी को अपनी आर्थिक संरचना में बदलाव करना होगा। इसमें अरबों यूरो खर्च होंगे। आखिर जर्मनी ऐसा क्यों करना चाहता है? इससे क्या फायदा होगा?
 
उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी यूरोप, और साइबेरिया जंगल की आग और तापमान में बेतहाशा वृद्धि से जूझ रहे हैं। दक्षिण पूर्व एशिया में तूफानों का कहर देखने को मिला, वहीं जर्मनी और चीन में बाढ़ की वजह से काफी नुकसान हुआ। यह सब जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है।
 
पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन से जूझ रही है। कहीं अचानक बाढ़ आ रही है, तो कहीं बेतहाशा गर्मी पड़ रही है। ऐसे में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेजी से कटौती ही एक उपाय है जो तापमान को बढ़ने और मौसम को तेजी से बदलने से रोक सकती है।
 
उच्चतम न्यायालय द्वारा पुरानी योजनाओं को आंशिक रूप से असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद, जर्मनी ने 2045 तक ग्रीनहाउस गैस तटस्थता का लक्ष्य पाने के लिए इस वर्ष अपने जलवायु कानून में संशोधन किया है। हालांकि इसके लिए काफी ज्यादा पैसा खर्च करना होगा। हाल ही में कंसल्टिंग फर्म मैकिन्जी ऐंड कंपनी ने एक अध्ययन किया है। इसके मुताबिक जर्मनी को कार्बन उत्सर्जन में नेट-जीरो लक्ष्य पाने के लिए 6 ट्रिलियन यूरो खर्च करना होगा।
 
जर्मनी को अपने आर्थिक उत्पादन का 7% (लगभग 240 बिलियन यूरो) हर साल हरित तकनीकों और बुनियादी ढांचे में निवेश करने की आवश्यकता होगी। मैकिन्जी की सीनियर एसोसिएट और अध्ययन की सह-लेखक रूथ ह्यूस ने कहा कि यह एक 'अभूतपूर्व कार्य' है।
 
अगले 10 साल महत्वपूर्ण
 
कुल मिलाकर इसके लिए 1 ट्रिलियन यूरो अलग से निवेश करने की जरूरत होगी। वहीं, 5 ट्रिलियन यूरो हरित तकनीक के लिए खर्च करना होगा। इस धन का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक कार की सब्सिडी देने के लिए किया जा सकता है। इसके अलावा, इस पैसे का इस्तेमाल उन उद्यमियों को सहायता पहुंचाने के लिए किया जा सकता है जो पुराने संयंत्रों को चालू रखने की जगह, उत्पादन के लिए जलवायु के अनुकूल प्रक्रिया अपनाना चाहते हैं।
 
इसमें सार्वजनिक परिवहन में निवेश, इलेक्ट्रिक कारों के लिए चार्जिंग स्टेशन, बैटरी भंडारण, और हरित हाइड्रोजन के लिए पूरे देश में बुनियादी ढांचे का विस्तार करना शामिल है। यह पैसा उन क्षेत्रों में दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म करके लाया जा सकता है जो प्रदूषण फैलाते हैं, जैसे कि हवाई यात्रा में दी जाने वाली सब्सिडी को खत्म करना।
 
ह्यूस कहती हैं कि पैसे से ज्यादा जरूरी है समय। अगले 10 साल काफी महत्वपूर्ण हैं। हमें अपने लक्ष्य पाने के लिए कार्बन उत्सर्जन को 3 गुना तेजी से कम करना होगा। वह कहती हैं कि सोलर पार्क, बिजली लाइनों या पवनचक्की लगाने की जगह तय करने के लिए अब हमें लंबी प्रक्रिया में समय नष्ट नहीं करना होगा। उनके अनुसार यह न तो पारिस्थितिक और न ही आर्थिक दृष्टिकोण से सही है।
 
ह्यूस कहती हैं कि इन कामों में जितनी देर होगी, हमें आने वाले समय में उतनी तेजी से काम करना होगा। इससे खर्च बढ़ जाता है। इसलिए यह जरूरी है कि अब पहले की अपेक्षा ज्यादा तेजी से बुनियादे ढांचे तैयार किए जाएं।
 
कार्बन के भंडारण के लिए निवेश
 
जर्मनी का ऊर्जा क्षेत्र देश के कार्बन प्रदूषण के लगभग एक तिहाई हिस्से के लिए जिम्मेदार है। साथ ही, हानिकारक गैसों के उत्सर्जन को पिछले 30 वर्षों की तुलना में इस दशक में दोगुनी तेजी से कम किया जाना चाहिए। यह चुनौती उद्योगों के साथ भी है। इन उद्योगों से कुल कार्बन उत्सर्जन का एक चौथाई हिस्सा पैदा होता है।
 
जलवायु तटस्थता के अन्य उपायों में परिवहन के साधनों का विद्युतीकरण, इस्पात-सीमेंट उद्योगों और अन्य कारोबारों को हरित बिजली की आपूर्ति, और बेहतर बैटरी भंडारण के लिए रीसाइक्लिंग और तकनीक में अधिक निवेश शामिल हैं। पश्चिमी जर्मनी स्थित ज्यूलिश रिसर्च सेंटर के डेटलेफ स्टोल्टन का कहना है कि जर्मनी के जलवायु तटस्थ होने के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की भंडारण प्रक्रियाओं में अनुसंधान और निवेश भी आवश्यक है। वह कहते हैं कि इसके बिना, ऐसा कर पाना संभव नहीं है।
 
अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव
 
विशेषज्ञों को उम्मीद है कि आर्थिक संरचना में बदलाव के लिए खर्च होने वाले पैसे का न केवल पर्यावरण पर, बल्कि जर्मनी की अर्थव्यवस्था पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे ज्यादा संख्या में लोगों को रोजगार मिलने की भी उम्मीद है।
 
मैकिन्जी की स्टडी के लेखकों ने माना कि अतिरिक्त निवेश के लिए बचत का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसका मतलब यह है कि सबसे अच्छी स्थिति में, जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान भी काफी कम हो जाएंगे।
 
स्टोल्टन का संस्थान कुल खर्च के अनुमान पर काम कर रहा है। उनका अनुमान है कि 2045 तक जलवायु तटस्थ बनने के लक्ष्य को पाने के लिए 1.8 ट्रिलियन यूरो अतिरिक्त खर्च हो सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें, तो लगभग 70 बिलियन यूरो प्रति वर्ष। करीब इतना ही पैसा जर्मनी के एकीकरण में खर्च हुआ था।
 
स्टोल्टन ने इस साल जुलाई महीन में जर्मनी के पश्चिमी हिस्से में आयी बाढ़ की वजह से हुए जान-माल के नुकसान का हवाला देते हुए कहा कि अभी हम जो देख रहे हैं, उस हिसाब से यह खर्च वहन करने लायक है। हमें राइनलैंड-पैलेटिनेट और नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया के छोटे हिस्सों के पुनर्निर्माण के लिए 30 बिलियन यूरो की आवश्यकता है। विस्तृत तौर पर देखें तो नुकसान इससे काफी ज्यादा का हुआ है। ऐसे में आप सारी बातें खुद ही समझ सकते हैं।
 
जर्मनी की संघीय पर्यावरण एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि मौजूदा समय में हर एक टन उत्सर्जित होने वाले कार्बन डाईऑक्साइड की लागत 201 यूरो की आ रही है। इस उत्सर्जन की वजह से जलवायु में तेजी से बदलाव हो रहा है।
 
इसमें न केवल बाढ़, तूफान या सूखे के कारण घरों, सड़कों या फसलों की क्षति शामिल है, बल्कि गर्म लहरों और वायु प्रदूषण की वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ रहा है। साथ ही, जंगल और मिट्टी पर भी नकारात्मक असर पड़ रहा है। कार्बन उत्सर्जन की वजह से, दुनियाभर में 2050 तक पारिस्थितिकी तंत्र को होने वाली क्षति की लागत 14 ट्रिलियन यूरो तक बढ़ सकती है, जो कि पूरी दुनिया की जीडीपी का 7 प्रतिशत है।
 
पेरिस समझौते का पालन
 
थिंक टैंक 'ग्रीन बजट जर्मनी' की कार्यकारी निदेशक कैरोलाइन शेनुइट कहते हैं कि यह निश्चित रूप से कुल मिलाकर सभी के लिए सस्ता है। आज समाज का सबसे कमजोर तबका भी जलवायु परिवर्तन से होने वाले असर से पीड़ित है। अगर दुनिया के देश पेरिस समझौते पर कायम रहते हैं और जलवायु परिवर्तन को 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फ़ारेनहाइट) से कम तक सीमित रखते हैं, तो अत्यधिक सामाजिक, पारिस्थितिक, और आर्थिक क्षति को रोका जा सकता है।
 
मैकिन्से की रिपोर्ट में जर्मनी में जलवायु के अनुकूल बदलाव के लिए स्थितियां पहले से कहीं बेहतर हैं। उपभोक्ता तेजी से टिकाऊ उत्पादों का चयन कर रहे हैं और कई कंपनियां भी टिकाऊ उत्पादों पर विशेष ध्यान दे रही हैं। अगर जर्मनी 2045 तक जलवायु तटस्थ बनने का लक्ष्य हासिल कर लेता है, इसके बावजूद वह पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस के समझौते को पूरा नहीं कर पाएगा। इसके लिए, जर्मनी को 2038 तक कार्बन फुटप्रिंट को शून्य पर लाना होगा।
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