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Written By DW
Last Updated : बुधवार, 24 अगस्त 2022 (09:59 IST)

रूसी गैस से मुक्ति में जर्मनी को क्या मदद देगा कनाडा?

रूसी गैस से मुक्ति में जर्मनी को क्या मदद देगा कनाडा? - What help will Canada give to Germany in getting rid of Russian gas?
रूसी गैस का विकल्प ढूंढने की कोशिश में जर्मनी कई देशों से बातचीत कर रहा है। खनिज और ऊर्जा की सप्लाई पर सहयोग बढ़ाने के लिए जर्मन चांसलर कनाडा गए हैं। ऊर्जा संकट की घड़ी में जर्मनी को कनाडा से कितनी मदद मिल सकती है? कनाडा और जर्मनी दोनों जीवाश्म ईंधन से छुटकारा पाकर स्वच्छ ऊर्जा की तरफ तेजी से आगे बढ़ना चाहते हैं।
 
जर्मनी ने 2045 तो कनाडा ने 2050 तक 'शून्य उत्सर्जन' तक पहुंचने का लक्ष्य तय किया है। जर्मनी के लिए यूक्रेन युद्ध के कारण ऊर्जा का मामला थोड़ा जटिल हो गया है। रूस पर गैस और तेल की सप्लाई की निर्भरता घटाने के लिए जर्मनी दूसरे विकल्पों की तलाश में है और इस सिलसिले में उसे कनाडा से भी कुछ मदद की उम्मीद है।
 
महंगी पड़ेगी कनाडा की गैस
 
आईईए यानी अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा आयोग के मुताबिक कनाडा दुनिया में प्राकृतिक गैस का 5वां सबसे बड़ा उत्पादक देश है। दिक्कत यह है कि उसके पास पूर्वी तट की ओर कोई एलएनजी पोर्ट नहीं है, ऐसे में वहां से यूरोप तक सिर्फ पाइपलाइन के जरिये ही गैस आ सकती है। यूरोप तक पाइपलाइन बनाने का खर्च काफी ज्यादा होगा और इसमें काफी समय भी लगेगा। जाहिर है कि इन सब का असर गैस की कीमतों पर भी पड़ेगा और जितनी आसानी से रूस से गैस अब तक आती रही है, उतना आसान तो यह नहीं होगा।
 
जर्मनी हर हाल में 2024 तक रूसी गैस का आयात पूरी तरह बंद करना चाहता है। ऐसे में उसकी बेचैनी समझी जा सकती है लेकिन कनाडा की अपनी दिक्कतें हैं। कनाडा के प्रधानमंत्री जास्टिन ट्रूडो ने यूरोप को लिक्विफाइड गैस की सप्लाई के नए प्रोजेक्ट के लिए दरवाजे खुले रखे हैं लेकिन उन्होंने इन प्रोजेक्टों की आर्थिक मुश्किलों की ओर खास ध्यान दिलाया है। इसके अलावा वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति में कार्बन घटाने पर भी उनका विशेष ध्यान है।
 
ट्रूडो का कहना है कि कनाडाई कंपनियां उन तरीकों की तलाश कर रही हैं जिनसे कि यह पता लगे कि क्या एलएनजी के निर्यात का कोई मतलब है और साथ ही क्या एलएनजी को सीधे यूरोप निर्यात करने का कारोबार हो सकता है? इसके साथ ही ट्रूडो ने एलएनजी के निर्यात में कानूनी और प्रशासनिक दिक्कतों को दूर करने का भरोसा दिया है। दोनों देश मिलकर कनाडा के गैस को अटलांटिक पार कराने की तरकीबों पर विचार कर रहे हैं हो सकता है कि कोई रास्ता निकल आए।
 
ग्रीन हाइड्रोजन पर सहयोग
 
कनाडा ने जर्मनी को खनिजों का निर्यात बढ़ाने का फैसला किया है। इनमें हाइड्रोजन की सप्लाई को लेकर भी करार हो रहा है। मांट्रियल में जस्टिन ट्रूडो से मिलने के बाद कहा कि कनाडा ग्रीन हाइड्रोजन के विकास में बहुत- बहुत अहम भूमिका निभाएगा।
 
ग्रीन हाइड्रोजन का मतलब है आसवन की प्रक्रिया से हाइड्रोजन का ईंधन की तरह निर्माण। इससे एक उत्सर्जनमुक्त ईंधन पैदा होगी और जिसके निर्माण में भी किसी तरह के उत्सर्जन वाले ईंधन का इस्तेमाल नहीं होगा। यह हाइड्रोजन दूसरे तरीकों से तैयार हाइड्रोजन की तुलना में जलवायु के लिए हर तरह से बेहतर होगी।
 
जर्मनी ने उत्सर्जनमुक्त ईंधन की तलाश में हाइड्रोजन पर अपना बड़ा दांव लगाया है। हालांकि यहां तक पहुंचने के रास्ते तय करने के लिए जर्मनी को फिलहाल गैस की जरूरत बनी रहेगी। अगर यूक्रेन युद्ध नहीं हुआ होता तो शायद जर्मनी रूसी गैस के सहारे ही यह रास्ता तय कर लेता। युद्ध ऐसे समय में हो रहा है, जब जर्मनी परमाणु ऊर्जा से भी छुटकारा पाने के अंतिम चरण में है। ऐसे में उसने कुछ समय तक कोयले का विकल्प जारी रखने की सोची है। देश में कोयले से चलने वाले कई बिजलीघरों को फिर से चालू किया गया है।
 
इलेक्ट्रिक कारें
 
कनाडा यूरोप की राह पर चलकर ईंधन जलाने वाली कारों और हल्के ट्रकों की बिक्री 2035 में बंद कर देगा। कनाडा अपने खनिज के संसाधनों को विकसित करने के साथ ही इलेक्ट्रिक कार बैटरी और कार बनाने वालों को लुभाने में जुटा है। इस सिलसिले में वह जर्मनी की फॉक्सवेगन और मर्सिडीज बैंज ग्रुप के साथ समझौता कर रहा है। इसके लिए जमीनी तैयारी मई में ही शुरू कर दी गई थी। जर्मन कंपनियां इलेक्ट्रिक कारों में इस्तेमाल होने वाली निकेल, लिथियम और कोबाल्ट की सप्लाई चेन विकसित करेंगी।
 
एनआर/आरपी (रॉयटर्स, डीपीए)
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