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Written By DW
Last Modified: शनिवार, 25 सितम्बर 2021 (07:49 IST)

पाम ऑयल के आयात से मुक्त हो सकेगा भारत

पाम ऑयल के आयात से मुक्त हो सकेगा भारत - India Palm oil import
हजारों ताड़ के पौधों से भरे ट्रैक्टरों के काफिले दक्षिणपूर्वी भारत के इलाकों में पहुंच रहे हैं। दुनिया में पाम ऑयल के सबसे बड़े खरीदार, भारत ने घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए 1.5 अरब डॉलर की योजना शुरू की है।
 
पाम ऑयल की रिकॉर्डतोड़ कीमत और कीमत घटने पर भी उचित कीमत के भुगतान के सरकारी वादे ने इन कोशिशों को पंख दे दिए हैं। भारत में पाम ऑयल का उत्पादन खपत की तुलना में बहुत मामूली है और सरकार अगले एक दशक में इसमें भरपूर इजाफा करना चाहती है।

चावल और इसी तरह की फसलें उगाने वाले हजारों किसान ताड़ के पौधे लगाने में दिलचस्पी ले रहे हैं। बी ब्रह्मैया इन्हीं में से एक हैं उनका कहना है, "चावल या केले की तुलना में पाम ऑयल से कमाई दोगुनी है और इसमें बहुत कम मेहनत लगती है।" 37 साल के ब्रह्मैया के पास आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले में 6 एकड़ जमीन है। उपजाऊ जमीन, पर्याप्त पानी और तेल निकालने वाली मिलें भारी उत्पादन की उम्मीद जगा रही हैं। 
 
लाखों एकड़ में ताड़ के पेड़ लगेंगे
यहां चावल के खेतों के बीच उग रहे ताड़, नारियल और कोकोआ पौधों को इलाके की नदियों और नहरों से भरपूर पानी मिल रहा है।  दूसरी जगहों पर हालांकि लगातार पानी का इंतजाम उत्पादन को दशक भर में दस गुना तक बढ़ाने की राह में एक बड़ी बाधा होगी। इसके साथ ही बीजों की कमी है और ताड़ के पेड़ों को फल देने में कम से कम चार साल का समय लगता है।
 
पिछले महीने खाद्य तेलों के लिए एक राष्ट्रीय अभियान शुरू किया गया है। इसके तहत फिलहाल 10 लाख एकड़ में हो रही खाद्य तेलों की खेती को 24 लाख एकड़ में फैलाने का लक्ष्य है। सरकार तेलों के आयात को घटाना चाहती है। पिछली साल भारत ने करीब 11 अरब डॉलर केवल खाद्य तेलों के आयात में खर्च किए। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पाम ऑयल रिसर्च इस अभियान का नेतृत्व कर रही है। इसके प्रमुख रवि माथुर बताते हैं कि इंस्टीट्यूट ने करीब 70 लाख एकड़ ऐसी जमीन की पहचान की है जहां ताड़ के पेड़ लगाए जा सकते हैं। आंध्र प्रदेश के अलावा इसमें उत्तरपू्र्व के पहाड़ी इलाके और सुदूर द्वीप अंडमाान निकोबार का इलाका भी है।
 
किसानों का रुख
पर्यावरण से जुड़े संगठन इस अभियान की आलोचना कर रहे हैं उनका कहना है कि इससे पानी की किल्लत और जंगलों की कटाई होगी जिसका असर जैव विविधता पर होगा। हालांकि रवि माथुर इन आशंकाओं को खारिज करते हैं उनका कहना है कि प्रशासन पर्यावरण को नुकसान से बचाएगा। हालांकि इसके बाद भी 70 लाख एकड़ में ताड़ के पेड़ लगाने में जोखिम है। इन पौधों को लगातार और बड़ी मात्रा में पानी की जरूरत होती है। भारत में ज्यादातर खेती आज भी भूजल और बारिश पर निर्भर है। दूसरी समस्या है बाकी फसलों के तुलना में ज्यादा लंबे समय का। चावल, कपास, दाल जैसी फसलें छह महीने में ही तैयार हो जाती है।
 
ऐसे में किसानों के लिए आय का स्रोत कुछ समय के लिए बंद रहेगा। सरकार ने इस के लिए कुछ खर्च उठाने का फैसला किया है। किसानों को प्रति हेक्टेयर 29,000 रूपये ताड़ के नए पेड़ लगाने के लिए दिए जाएंगे। इसके साथ ही अगर फलों की कीमत बाजार में घट जाती है तो कीमतों के अंतर को सरकार अपने फंड से पूरा करेगी। ऐसे में किसान इसकी तरफ उत्साह दिखाएंगे इसकी पूरी उम्मीद की जा रही है।
 
सरकार की इस मदद के बलबूते छोटे किसान कुछ साल इंतजार कर सकते हैं। किसान ओएस चलपथा ने 14 हेक्टेयर जमीन में एक दशक पहले ताड़ के पेड़ लगाए थे। उन्होंने बताया कि एक निजी फर्म में नौकरी करके शुरुआती सालों में उन्होंने अपना खर्चा चलाया। उनका कहना है, "शुरुआती सालों में ताड़ के पेड़ उगाने के लिए काफी पैसे की जरूरत होती है। मैं इसलिए यह कर पाया क्योंकि एक निजी कंपनी में काम करता था। सबके लिए यह करना संभव नहीं है।" इसके साथ ही एक समस्या ताड़ के बीजों की भी है। ताड़ की नर्सरियां भारत और दक्षिणपूर्वी एशिया में हैं। आमतौर पर इन्हें उत्पादन बढ़ाने के लिए एक साल समय की जरूरत होती है।
 
पाम ऑयल के आयात से मुक्ति मिलेगी?
मांग बढ़ने के कारण ये पहले ही दबाव में हैं। 2025/26 तक 10 लाख हेक्टेयर के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए इन्हें हर साल कम से कम 130,000 हेक्टेयर पर पौधे लगाने की जरूरत होगी और इसका मतलब है दसियों लाख पौधे।

पहचान जाहिर नहीं करने की शर्त पर एक अधिकारी ने मुंबई में बताया, "भारत को 1.86 करोड़ पौधों की जरूरत होगी लेकिन स्थानीय स्तर पर सप्लाई सिर्फ 10 लाख पौधों की है, बाकी के लिए हम आयात पर निर्भर हैं।" पौधों की कमी के कारण पहली बार इस क्षेत्र में उतर रहे छोटे किसान काम नहीं शुरू कर पा रहे हैं। आंध्र प्रदेश के किसान टी माल्डीरमैया ने बताया, "सरकारी कीमत की तुलना में हम तीन गुनी ज्यादा कीमत देने को तैयार हैं लेकिन फिर भी बीज नहीं मिल पा रहे हैं।"
 
इन सब के बाद बारी आएगी पर्याप्त संख्या में मिलों को लगाने की ताकि तैयार फल खराब ना हो जाएं। उत्तर पूर्व में इस तरह की सुविधाएं कम हैं। वहां संकरी सड़कें और उर्वरकों की सीमित सप्लाई पहले ही मुश्किलें। ऐसे में कुछ ही इलाके हैं जहां सचमुच ये योजना परवान चढ़ सकेगी। सारी कोशिशों के बाद भी भारत शायद 20 लाख टन पाम ऑयल ही साल 2029/30 तक पैदा कर सकेगा।

जानकारों के मुताबिक तब तक इसकी मांग सालाना 50 लाख टन और बढ़ जाएगी। ऐसे में अभी कई और वर्षों तक पाम ऑयल के आयात से मुक्ति मिलने के आसार नहीं हैं, हां इसकी मात्रा में कुछ कमी जरूर आएगी।
 
एनआर/ओएसजे(रॉयटर्स)
 
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