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Written By DW
Last Modified: शुक्रवार, 8 दिसंबर 2023 (08:01 IST)

कांग्रेस की हार के बाद इंडिया गठबंधन में बदलेगा फार्मूला?

कांग्रेस की हार के बाद इंडिया गठबंधन में बदलेगा फार्मूला? - india alliance after congress defeat in three states
मनीष कुमार
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में करारी हार के बाद कांग्रेस, इंडिया गठबंधन में शामिल क्षेत्रीय पार्टियों के निशाने पर है। उनका कहना है कि यह हार इस गठबंधन की नहीं, सिर्फ कांग्रेस पार्टी की है।
 
तीन विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद इंडिया गठबंधन (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस) में क्षेत्रीय पार्टियों के आगे कांग्रेस असहज स्थिति में है। तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) ने तो साफ कहा कि कांग्रेस ने गठबंधन में चुनाव लड़ा होता, तो शायद चुनाव परिणाम कुछ और होता। जदयू ने भी कहा है कि अकेले चुनाव लड़कर कांग्रेस ने गलती की। हार के लिए सिर्फ वही जिम्मेदार है।
 
कांग्रेस की चुनावी हार का असर छह दिसंबर को नई दिल्ली में प्रस्तावित गठबंधन की बैठक पर भी दिखा। बैठक को लेकर क्षेत्रीय दल बहुत उत्साहित नहीं दिखे। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पारिवारिक आयोजन के कारण, तो झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने पहले से तय कार्यक्रम में व्यस्त होने की वजह से बैठक में ना आने की बात कही।
 
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने भी राज्य में आए चक्रवाती तूफान के कारण बैठक में शामिल होने पर असमर्थता जताई। वहीं मध्य प्रदेश के चुनाव में समाजवादी पार्टी की अनदेखी से नाराज अखिलेश यादव ने भी व्यस्तता का हवाला देते हुए बैठक में नहीं आने की बात कही। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अस्वस्थता की वजह से आने से इनकार कर दिया।
 
इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने आखिरी समय में प्रस्तावित बैठक स्थगित कर दिया। अब यह बैठक दिसंबर के तीसरे हफ्ते में 17 तारीख को हो सकती है। 6 दिसंबर को खड़गे के आवास पर गठबंधन के शीर्ष नेताओं की जगह समन्वय समिति की बैठक बुलाई गई। वैसे, कहा तो जा रहा है कि इन प्रमुख नेताओं के नहीं आने की वजह से यह बैठक टाल दी गई, किंतु जानकार इसे कांग्रेस पर क्षेत्रीय दलों के दबाव की राजनीति बता रहे हैं।
 
गठबंधन में शामिल पार्टियों का बढ़ा मनोबल
कांग्रेस भले ही अपनी हार से दुखी हो, किंतु गठबंधन के घटक दल इसमें अपना फायदा देख रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि कांग्रेस अब धरातल पर उतरकर बात करेगी। इस वजह से 2024 के लोकसभा चुनाव में सीटें साझा करने के मुद्दे पर कोई परेशानी नहीं होगी। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, घटक दलों को चिंता थी कि अगर कांग्रेस ने जीत दर्ज की होती, तो वह सीटों के बंटवारे में निश्चित ही अपनी मनमर्जी करती। ऐसे में अब उसकी हार से घटक दलों का मनोबल बढ़ता नजर आ रहा है।
 
टीएमसी ने अपने मुखपत्र में साफ लिखा है कि कांग्रेस की इस हार का असर पूरे देश में दिख सकता है। विपक्ष को इससे पूरे देश में नुकसान होगा। वहीं केरल के मुख्‍यमंत्री पी। विजयन ने भी कांग्रेस की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि लालच और सत्ता की लालसा के कारण हिंदी भाषी राज्यों में उसकी हार हुई।
 
विजयन का कहना है कि कांग्रेस ने सोचा, वह अपने दम पर बीजेपी से जीत सकती है। इसलिए उसने इन चुनावी राज्यों में इंडिया गठबंधन के अन्य दलों के साथ हाथ नहीं मिलाया। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस को यह तय करना होगा कि वह हमसे लड़ना चाहती है या बीजेपी से। अगर उसे बीजेपी से लड़ना है, तो राहुल गांधी को वायनाड से चुनाव नहीं लड़ने के बारे में सोचना चाहिए।
 
मुंबई बैठक के फैसलों पर नहीं हुआ काम
इससे पहले बीजेपी के खिलाफ 2024 के आम चुनाव में एकजुट होकर लड़ने के मकसद से गठित 28 दलों के इंडिया गठबंधन ने पटना, बेंगलुरु और मुंबई की बैठकों में कुछ समितियों को गठित करने तथा योजनाबद्ध तरीके से संयुक्त गतिविधियां बढ़ाने का निर्णय किया था। लेकिन तीन माह पहले मुंबई में हुई इस बैठक में लिए गए फैसलों पर जमीनी स्तर पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
 
नीतीश कुमार ने इस मुद्दे पर कांग्रेस की आलोचना भी की थी। लेकिन कांग्रेस पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुट गई। राजनीतिक समीक्षक ए के सिंह कहते हैं, ‘‘कांग्रेस पार्टी को इन चुनावों में, खासतौर पर हिंदी पट्टी में बेहतर प्रदर्शन करने का भरोसा था। वह मानकर चल रही थी कि इन राज्यों में बेहतर प्रदर्शन की वजह से आगामी लोकसभा चुनाव में घटक दलों से वह अपनी शर्तों पर समझौता कर सकेगी। इसी सोच के कारण कांग्रेस ने घटक दलों को तवज्जो नहीं दी।''
 
अखिलेश यादव ने तो इसी वजह से नाराज होकर कांग्रेस की आलोचना करने का कोई मौका नहीं छोड़ा। मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ की टिप्पणी से भी वह आहत हुए। वैसे कांग्रेस यदि चाहती, तो इन राज्यों में घटक दलों को कुछ सीटें देकर गठबंधन की एकजुटता का संदेश दे सकती थी।

हालांकि, इससे इतर पूर्व केंद्रीय मंत्री व बिहार कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा, ‘‘चार राज्यों में हमें बीजेपी से नौ लाख वोट अधिक मिले। लड़े तो हम ही। हमें पूरे देश की जनता का सपोर्ट है।''    
 
नीतीश के फार्मूले पर बन सकती है विपक्ष की रणनीति
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि गठबंधन की अगली बैठक में घटक दलों के बीच सीटों का बंटवारा ही मुख्य मुद्दा रहेगा। माना जा रहा है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के एक प्रत्याशी के सामने, समूचे विपक्ष की ओर से एक उम्मीदवार खड़ा करने के नीतीश कुमार के प्रस्ताव पर सहमति बन सकेगी। इसके अलावा उन सीटों के पहचान पर भी चर्चा होगी, जिससे पता चल सके कि किस पार्टी की जीत की संभावना उस सीट पर अधिक है।
 
इसके साथ ही चुनाव के समय राज्य में मजबूत विशेष दल को ही नेतृत्व सौंपने की क्षेत्रीय दलों की मांग पर विचार किए जाने की संभावना है। बिहार के उप- मुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने पहले ही सलाह दी थी कि जिस राज्य में जो घटक दल मजबूत है, उसे उस राज्य में चुनाव की जिम्मेदारी मिलनी चाहिए। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की भूमिका बनी रहेगी, किंतु राज्यों के लिए अलग से रणनीति बनाने की जरूरत है।
 
वैसे, जदयू ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को संयुक्त विपक्ष का पीएम चेहरा बनाने की कवायद शुरू कर दी है। पार्टी ने उन्हें इस पद के लिए सबसे उपयुक्त व विश्वसनीय चेहरा बताया है। जदयू के मुख्य राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा है, ‘‘नीतीश कुमार में वे सभी गुण और अनुभव हैं, जो एक प्रधानमंत्री में होने चाहिए।'' उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार पर न तो ईडी और न ही सीबीआई का कोई मामला है। यहां तक कि उनपर जातिवाद या परिवारवाद को भी बढ़ावा देने का भी कोई आरोप नहीं है।
 
त्यागी ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी का मुकाबला करने के लिए विपक्ष की ओर से एक विश्वसनीय चेहरा पेश करने की बात विधानसभा चुनाव के पहले से कही जा रही है, जिस पर ध्यान नहीं दिया गया। हालांकि, 6 दिसंबर को पटना में नीतीश कुमार ने कहा कि वह गठबंधन की अगली बैठक में जरूर शामिल होंगे। उन्होंने कहा, "जल्द-से-जल्द सारी बातें तय हो जाएं। अब समय नहीं है। मैं प्रधानमंत्री पद की रेस में नहीं हूं।"
 
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