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Written By DW
Last Updated : रविवार, 18 फ़रवरी 2024 (09:20 IST)

नाटो पर ट्रंप के बयान का यूरोप में कैसा हुआ असर

donald trump
अलेक्जांड्रा फॉन नामेन
पूर्व अमेरिकी राष्‍ट्रप‍ति डोनाल्ड ट्रंप के नाटो पर सवाल खड़े करने से यूरोप के सहयोगियों में बैचेनी बढ़ गई है। अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए ट्रंप की उम्मीदवारी को देखते हुए वे आकस्मिक योजनाओं पर काम कर रहे हैं।
 
नाटो एक ऐसा सैन्य गठबंधन नहीं हो सकता जो अमेरिकी राष्ट्रपति के हंसी-मजाक के हिसाब से चले। यह कहना है यूरोपियन यूनियन के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल का। उन्होंने यह बात ट्रंप के नाटो पर दिए गए हालिया बयानों के जवाब में कही।
 
हाल ही में ट्रंप ने साउथ कैरोलाइना में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा था, "अमेरिका का राष्ट्रपति रहने के दौरान मैंने नाटो के सदस्य देशों को चेताते हुए कहा था कि जो देश अपने अपने बिल नहीं भरते, उन पर मनचाही कार्रवाई करने के लिए वे रूस को प्रोत्साहित करेंगे।”
 
ट्रंप के इस बयान ने नाटो के यूरोपीय सदस्यों की चिंता बढ़ा दी। ये देश उनके दोबारा अमेरिका का राष्ट्रपति बनने की संभावना को देखते हुए पहले से ही परेशान हैं।
 
नाटो के महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने ट्रंप के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "यह सुझाव कि सहयोगी देश एक-दूसरे की रक्षा नहीं करेंगे, हमारी पूरी सुरक्षा व्यवस्था को कमजोर कर देगा। इससे अमेरिका और यूरोप के सैनिकों पर खतरा बढ़ जाएगा।”
 
ट्रंप की धमकियों से जूझ रहा नाटो
राष्ट्रपति रहने के दौरान भी ट्रंप ने कई बार नाटो छोड़ने की धमकी दी थी। उन्होंने चेतावनी दी थी कि वे यूरोपीय लोगों को अमेरिका की तरह सुरक्षा के लिए भुगतान करने पर मजबूर करेंगे। उन्होंने नाटो की मूल भावना के प्रति अमेरिका की प्रतिबद्धता को बार-बार संदेह में डाला।
 
नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी के अनुच्छेद पांच में शामिल वादा कहता है कि अगर यूरोप या उत्तरी अमेरिका के किसी देश पर सशस्त्र हमला होता है तो इसे सभी देशों के खिलाफ हमला माना जाएगा।
 
नाटो के कुछ लोग मानते हैं कि ट्रंप दोबारा से गठबंधन की आत्मा पर हमला कर रहे हैं। उनके इस बार के प्रचार अभियान को जानकीरों ने चिंताजनक बताया है। नाटो के कई सदस्य देशों को डर है कि दोबारा राष्ट्रपति बनने पर ट्रंप पहले से ज्यादा निश्चिंत और निर्भीक होंगे।
 
एलिसन वुडवर्ड ब्रसेल्स के इंस्टीट्यूट ऑफ यूरोपियन स्टडीज में सीनियर एसोसिएट फैलो हैं। उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "पिछली बार ट्रंप के राष्ट्रपति बनने पर अमेरिका और यूरोप के आपसी संबंधों में सबसे ज्यादा उथल-पुथल हुई थी। यह वास्तव में बहुत ही नाटकीय बदलाव था।”
 
उन्होंने आगे कहा, "मुझे लगता है कि नेता अब खुद को इस बात के लिए तैयार कर रहे हैं कि ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने पर क्या हो सकता है।” ट्रंप के पहले कार्यकाल में अमेरिका ने यूरोपीय संघ के देशों के साथ व्यापार पर दंडात्मक टैरिफ लगाए थे। इससे ट्रांस-अटलांटिक संबंधों में खटास आ गई थी।
 
नाटो के लिए नाजुक समय
नाटो इस समय नाजुक दौर से गुजर रहा है। कुछ सहयोगियों ने खुलेआम चेतावनी दी है कि रूस-यूक्रेन युद्ध बढ़ सकता है। यूक्रेन भेजे जाने वाला अमेरिकी सहायता पैकेज संसद में रुका हुआ है। वहीं, यूरोप अपने हथियारों का उत्पादन बढ़ाने में संघर्ष कर रहा है।
 
माइकल बरनोवस्की एक अमेरिकी थिंक टैंक ‘जर्मन मार्शल फंड ईस्ट' के प्रबंध निदेशक हैं। उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, "ट्रंप के बयानों से यह संभावना बढ़ गई है कि रूस नाटो की परीक्षा लेगा। खासकर डॉनल्ड ट्रंप के चुनाव जीतने की स्थिति में।”
 
वे आगे कहते हैं, "ट्रंप के बयानों ने यूरोप को कम सुरक्षित बना दिया है। उन्होंने नाटो के पूर्वी हिस्से समेत कई नेताओं के मन में यह सवाल पैदा कर दिया है कि उन पर हमला होने की स्थिति में क्या अमेरिका बाकी सहयोगियों के साथ खड़ा होगा।”
 
इन चिंताओं को ब्रसेल्स के राजनयिकों ने भी बल दिया है, जो निजी तौर पर कहते हैं कि ट्रंप के बयान पहले ही गठबंधन को नुकसान पहुंचा चुके हैं। सबसे बड़ी समस्या यह है कि ट्रंप के दावों को खारिज करना बेहद कठिन है। ट्रंप नाटो सदस्यों पर भुगतान न करने के लिए भड़कते हैं, लेकिन तकनीकी तौर पर यह एक भ्रामक बयान है, क्योंकि भुगतान करने के लिए कोई बिल ही नहीं है।
 
क्या ट्रंप के बयान चेतावनी हैं?
2014 की नाटो सम्मेलन में यह लक्ष्य तय किया गया था कि सभी नाटो देश अपनी जीडीपी का दो फीसदी सेना पर खर्च करेंगे। लेकिन अभी भी ज्यादातर देश दो फीसदी से कम खर्च कर रहे हैं। ट्रंप का बयान इसी बारे में था।
 
इस साल जर्मनी शीत युद्ध खत्म होने के बाद पहली बार इस लक्ष्य को हासिल कर सकता है। इसका सबसे बड़ा हिस्सा 107 अरब डॉलर के विशेष फंड को जाता है, जिसे यूक्रेन पर रूस के हमले के जवाब में बनाया गया। लेकिन इसके आगे और फंड मिलने की गारंटी नहीं है।
 
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