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Written By DW
Last Updated : गुरुवार, 11 जून 2020 (09:53 IST)

शहरी नौकरी गंवाने के बाद गांव में मजदूरी करते पढ़े लिखे युवा

Educated youth | शहरी नौकरी गंवाने के बाद गांव में मजदूरी करते पढ़े लिखे युवा
रिपोर्ट आमिर अंसारी
 
कोरोना वायरस के बाद लाखों लोगों की नौकरी चली गई और वे अब बेरोजगार हो गए हैं। शहरों से वापस जाने के बाद कुछ लोग छोटा-मोटा काम तो कर रहे हैं लेकिन जो पैसे वे शहरों में कमाते थे, उतने गांव में कमाना मुश्किल है। कोरोना वायरस न केवल जीवन को बल्कि आजीविका को भी बहुत तेजी से प्रभावित कर रहा है। लोग शहरों की नौकरी छूट जाने के बाद गांवों में छोटा-मोटा काम कर रहे हैं।
27 साल के सतेंद्र कुमार ने निजी यूनिवर्सिटी से बैचलर ऑफ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन की पढ़ाई की है। 7 महीने पहले उनकी नौकरी दिल्ली से सटे नोएडा में एक बिस्किट कंपनी में लगी थी। पढ़ाई के बाद यह उनकी पहली नौकरी थी लेकिन कोरोना वायरस के भारत में फैलने के बाद हुए लॉकडाउन की वजह से कंपनी में काम बंद हो गया और उनकी नौकरी चली गई।
 
सतेंद्र कहते हैं कि लॉकडाउन के कारण मेरी नौकरी चली गई और मुझे मजबूरी में नोएडा से बुलंदशहर लौटना पड़ा सतेंद्र के परिवार में माता-पिता और एक भाई हैं। वे कहते हैं कि रोजी-रोटी चलाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा। इसलिए मैं अब मनरेगा में काम कर रहा हूं।
दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट के प्रोफेसर देव नाथन डीडब्ल्यू से कहते हैं कि गांवों में कमाई शहरों जितनी नहीं होती है और जिस तरह की नौकरी शहरों में मिलती है, वैसी नौकरी गांवों में नहीं मिलने वाली है। शहर की तुलना में गांव की नौकरी में वेतन भी कम होगा।
गुडगांव स्थित एक अमेरिकी कंपनी के लिए कॉल सेंटर में काम करने वाले विनोद (बदला हुआ नाम) की भी नौकरी पिछले दिनों चली गई। विनोद अब हर रोज नौकरी की तलाश करते हैं लेकिन अब तक सफलता नहीं मिली है। विनोद के साथ उनके माता-पिता के अलावा बीवी और छोटा बच्चा है। कानपुर के रहने वाले विनोद कहते हैं कि उनके लिए वापस जाना मुश्किल है, क्योंकि जैसी नौकरी वे करते आए हैं, वह कानपुर में मिल पाना मुश्किल है।
 
प्रोफेसर देव नाथन कहते हैं कि गांवों में बसे लोग खाने-पीने और जिंदा रहने तक का जरिया निकाल लेंगे लेकिन जैसी कमाई वे शहरों में करते आए हैं, वह पाना बहुत मुश्किल है। उनके मुताबिक शहरों में रोजगार के अवसर तुरंत नहीं बनने वाले हैं। दूसरी ओर एक सर्वे के मुताबिक जुलाई-सितंबर तिमाही में सिर्फ 5 फीसदी कंपनियां ही नए लोगों को नौकरी पर रखने के बारे में सोच रही हैं।
 
यह सर्वे मैनपॉवर ग्रुप ने एम्प्लॉयमेंट आउटलुक को लेकर किया जिसमें 695 कंपनियां ने अपनी प्रतिक्रिया दी। देव नाथन कहते हैं कि कंपनियों का मुनाफा भी कम हुआ जिस वजह से वे अपनी लागत कम कर रही हैं और कम लोगों से ही अपना काम निकाल रही हैं।
दूसरी ओर हायरिंग कंपनी नौकरी डॉट कॉम के मुताबिक भारत में मई महीने में नौकरी के लिए भर्ती में 61 फीसदी की भारी गिरावट देखी गई। यह लगातार दूसरा महीना है, जब हायरिंग एक्टिविटी में 60 फीसदी से ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है। जॉब पोर्टल नौकरी डॉट कॉम की रिपोर्ट के मुताबिक हायरिंग में मई में गिरावट होटल, रेस्तरां, यात्रा और एयरलाइंस उद्योगों, रिटेल क्षेत्र, ऑटो क्षेत्र में नकारात्मक दर्ज की गई है।
 
नौकरी डॉट कॉम के चीफ बिजनेस ऑफिसर पवन गोयल के मुताबिक लॉकडाउन के विस्तार से लगातार तीसरे महीने नौकरी में भर्ती की गतिविधियों में गिरावट आई है। देव नाथन उम्मीद जताते हैं कि बाजार के बढ़ने के साथ ही रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे और इसमें एक से डेढ़ साल तक का वक्त लग सकता है।
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