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Written By DW
Last Updated : शुक्रवार, 8 सितम्बर 2023 (09:09 IST)

विदेश में भारतीय बच्चों की कस्टडी पर जी20 में चर्चा की मांग

विदेश में भारतीय बच्चों की कस्टडी पर जी20 में चर्चा की मांग - Demand for discussion in G20 on custody of Indian children abroad
-चारु कार्तिकेय
 
G20 Summit: जी20 के सदस्यों से अपील की गई है कि वो दूसरे देशों में माता-पिता से दूर सरकारी कस्टडी में पल रहे भारतीय बच्चों की समस्या का हल निकालें। भारत के 9 पूर्व जजों ने जी20 के सभी भागीदारों को एक चिट्ठी लिखी है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों के इन पूर्व जजों ने इस चिट्ठी में कई देशों में इस अजीब समस्या में फंसे भारतीय परिवारों की व्यथा का मुद्दा उठाया है।
 
उन्होंने लिखा है कि पश्चिमी यूरोप, ब्रिटेन, उत्तरी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में कई भारतीय परिवार इस समस्या का सामना कर रहे हैं। चिट्ठी में लिखा गया है कि हाल के सालों में भारतीय नागरिक रोजगार के सिलसिले में बड़ी संख्या में इन देशों में गए हैं। इनमें से अधिकांश लोगों के परिवारों में छोटे बच्चे होते हैं। सभी लोगों के पास भारतीय पासपोर्ट होते हैं और इन्हें कुछ सालों बाद भारत लौटना होता है।
 
अपनों और अपनी संस्कृति से दूर
 
लेकिन हर साल किसी ना किसी देश में ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें इन देशों के बाल सुरक्षा अधिकारियों ने 'दुर्व्यवहार, लापरवाही या अहित के खतरे के आधार पर' बच्चों को उनके माता पिता से दूर कर दिया और सरकारी कस्टडी में रख दिया।
 
इन देशों में ऐसे बच्चों को रिश्तेदारों द्वारा देखभाल का अधिकार तो होता है, लेकिन विदेशी मूल के बच्चों को यह विकल्प नहीं मिल पाता क्योंकि वहां उनका कोई रिश्तेदार होता ही नहीं है। पूर्व जजों ने लिखा है कि ऐसे मामलों में सांस्कृतिक अंतर को समझने की जरूरत है।
 
उन्होंने लिखा है कि परिवार से दूर कर दिए जाने से ऐसे बच्चे अलग-थलग हो जाते हैं और अपनी पहचान खोने लगते हैं। चिट्ठी में सुझाव दिया गया है कि एक विदेशी सरकार की कस्टडी में उनका बचपन बिताने की जगह ऐसे मामलों में बच्चों को उनके अपने देश में एक सुरक्षित व्यवस्था में रख दिया जाना बेहतर है।
 
पूर्व जजों ने जी20 भागीदारों को बताया है कि भारत में बच्चों की सुरक्षा की एक मजबूत व्यवस्था है जिसमें जिला स्तर पर बाल कल्याण समितियों का पूरे देश में फैला एक नेटवर्क है। चिट्ठी में अंतरराष्ट्रीय कानून का हवाला देकर कहा गया है कि कानून के तहत 'माता-पिता से दूर कर दिए भारतीय बच्चों के लिए भारत सरकार जिम्मेदार है।
 
इसके अलावा सिविल और राजनीतिक अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय संधि के अनुच्छेद 12(4) के तहत किसी को भी मनमानी ढंग से उसके अपने देश वापस लौटने से रोका नहीं जा सकता है। ऐसा एक मामला जर्मनी में भी चल रहा है जिसका जिक्र इस चिट्ठी में किया गया है।
 
जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया के मामले
 
जर्मनी में बाल कल्याण अधिकारियों ने भारतीय मूल की डेढ़ साल की बच्ची अरीहा शाह के माता-पिता पर बच्ची के साथ क्रूरता का आरोप लगाया है और पिछले करीब डेढ़ साल से उसे उसके माता-पिता की जगह अपने पास रखा हुआ है।
 
अरीहा के परिवार के सदस्यों ने इसके विरोध में कई दिनों तक दिल्ली में जर्मनी के दूतावास के बाहर प्रदर्शन किया। भारत सरकार ने जर्मन सरकार ने इस मामले पर बात भी की है। दिसंबर 2022 में जर्मनी की विदेश मंत्री एनालेना बेरबॉक की भारत यात्रा के दौरान भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस विषय पर उनसे बातकी थी।
 
जयशंकर ने तब कहा था कि हमें इस बात की चिंता है कि बच्ची को अपनी भाषायी, धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण में होना चाहिए और भारत सरकार इस मुद्दे पर काम कर रही है। बेरबॉक ने कहा कि वो खुद दो बच्चियों की मां हैं और स्थिति को समझती हैं, लेकिन मामला इस समय जर्मनी की एक अदालत में है। उन्होंने भरोसा दिलाया कि अरीहा बिल्कुल सुरक्षित है और उसकी अच्छे से देखभाल की जा रही है।
 
पूर्व जजों की चिट्ठी में ऑस्ट्रेलिया के एक दर्दनाक मामले का भी जिक्र किया गया है जिसमें वहां रह रही भारतीय मूल की एक 40 साल की महिला प्रियदर्शिनी पाटिल ने आत्महत्या कर ली थी। ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों ने उन्हें उनके बच्चों से अलग कर दिया था जिसे लेकर वो दुखी थीं।
 
ऑस्ट्रेलिया में ऐसा ही एक और मामला सामने आया है। एक महिला के एक हादसे के बाद अस्पताल में भर्ती हो जाने पर अधिकारियों ने उसकी बच्ची को महिला से अलग रह रहे उसके पति को सौंपने की जगह फॉस्टर मां-बाप को सौंप दिया।(Photo Courtesy: Deutsche Vale)
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