प्रभाकर मणि तिवारी
कलकत्ता हाईकोर्ट के दो ताजा फैसलों ने पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान से ठीक पहले आए इन फैसलों से विपक्षी दल बीजेपी को एक मजबूत हथियार मिल गया है।
इनमें सबसे बड़ा फैसला है हाल के महीनों में सुर्खियों में रहे संदेशखाली की घटना की सीबीआई जांच का आदेश। इसके अलावा पूर्व मेदिनीपुर जिले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के खिलाफ दायर एफआईआर मामले में अदालत ने पुलिस की गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है। अदालत के फैसले के बाद पहले से ही संदेशखाली की घटना पर आक्रामक रवैया अपनाने वाली बीजेपी का रुख और हमलावर हो गया है। बंगाल में अपनी चुनावी रैली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि दोषियों को चुन-चुन कर गिरफ्तार किया जाएगा। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यही चेतावनी दी थी।
संदेशखाली पर कोर्ट का फैसला
कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टी।एस।शिवज्ञानम की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ ने संदेशखाली मामले पर दायर पांच जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अपने फैसले में सीबीआई को बुधवार से ही इस घटना की जांच का निर्देश दिया। खंडपीठ ने जांच एजेंसी से एक अलग ईमेल आईडी बनाने को कहा है ताकि लोग उसके जरिए अपनी शिकायत दर्ज करा सकें। साथ ही सीबीआई को यह अधिकार दिया गया है कि वह पूछताछ के लिए किसी को भी बुला सकती है चाहे वह कितना ही बड़ा नेता या अधिकारी क्यों नहीं हो।
खंडपीठ का कहना था कि न्याय के हित में संदेशखाली की घटना की तटस्थ जांच जरूरी है। तमाम संबंधित पक्ष 15 दिनों के भीतर ईमेल के जरिए सीबीआई के समक्ष अपनी शिकायत दर्ज करा सकते हैं। ईमेल के जरिए शिकायत का प्रावधान इसलिए किया गया है ताकि शिकायत करने वालों की पहचान गोपनीय रहे। कोर्ट ने सीबीआई को दो मई को होने वाले अगली सुनवाई से पहले इस मामले पर विस्तृत रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है।
सीबीआई की यह जांच अदालत की निगरानी में होगी। खंडपीठ ने संदेशखाली में राज्य सरकार के खर्च पर जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे और एलईडी लाइटें लगाने का भी निर्देश दिया है। वैसे तो अदालत ने बीते बृहस्पतिवार को ही इन याचिकाओं पर सुनवाई पूरी कर ली थी। लेकिन उसने फैसला सुरक्षित रखा था। सुनवाई के दौरान न्यायाधीश की टिप्पणी थी कि अगर इन घटनाओं में से एक प्रतिशत भी सही है तो यह बेहद शर्म की बात है। जिला प्रशासन और राज्य सरकार को अपनी नैतिक जिम्मेदारी पूरी करनी चाहिए।
क्या है संदेशखाली मामला
कोलकाता से करीब 120 किमी दूर उत्तर 24-परगना जिले में बांग्लादेश की सीमा पर बसा संदेशखाली इस साल जनवरी से ही सुर्खियों में है। राज्य में कथित राशन घोटाले की जांच के लिए मौके पर पहुंची ईडी की टीम पर स्थानीयटीएमसी नेता शाहजहां शेख के समर्थकों ने हमला कर दिया था। उसमें ईडी के तीन अधिकारी घायल हो गए थे।
उसके बाद फरवरी में इलाके की तमाम महिलाएं सड़कों पर उतर आई। उन्होंने शाहजहां और उसके समर्थकों पर यौन उत्पीड़न और खेती की जमीन पर जबरन कब्जे के आरोप लगाए थे। उसी समय तमाम राजनीतिक दलों और केंद्रीय संगठनों के प्रतिनिधिमंडल ने इलाके का दौरा किया और कई सप्ताह तक इलाके में धारा 144 लागू रही। दबाव बढ़ते देख कर टीएमसी ने शाहजहां समेत तीन नेताओं को पार्टी से निलंबित कर दिया। बाद में उन तीनों को गिरफ्तार कर लिया गया।
बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में इसे टीएमसी के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार बना लिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उस इलाके में अपनी चुनावी रैली में पीड़िताओं से मुलाकात की। पार्टी ने बशीरहाट संसदीय सीट, जिसके तहत संदेशखाली इलाका है, में एक पीड़िता रेखा पात्रा को ही अपना उम्मीदवार बनाया है। दूसरी ओर, इस मामले पर विवाद बढ़ते देख कर टीएमसी ने बशीरहाट में पिछली बार जीतने वाली अभिनेत्री नुसरत जहां का टिकट काट कर पूर्व सांसद हाजी नुरुल इस्लाम को अपना उम्मीदवार बनाया है। हालांकि विवाद थमने की बजाय लगातार तेज हो रहा है।
केंद्रीय एजेंसियों पर हमला
बीते सप्ताह बम विस्फोट की घटना की जांच के लिए पूर्व मेदिनीपुर जिले के भूपतिनगर पहुंची एनआईए की एक टीम पर भी हमला किया गया जिसमें एक अधिकारी घायल हो गए। लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यह कहते हुए इस घटना का समर्थन किया कि एनआईए की टीम स्थानीय पुलिस-प्रशासन को सूचना दिए बिना ही गांव में पहुंच गई।
इस घटना पर विवाद बढ़ते ही गांव की एक महिला ने एनआईए अधिकारियों को खिलाफ छेड़छाड़ की शिकायत दर्ज करा दी और पुलिस ने संबंधित अधिकारियों को पूछताछ का समन भेज दिया। इसी के खिलाफ एनआईए ने हाईकोर्ट में अपील की थी। उसकी अपील पर अदालत ने पुलिस को फिलहाल किसी भी एनआईए अधिकारी को गिरफ्तार नहीं करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट के जज जय सेनगुप्ता ने अपने फैसले में कहा कि पुलिस को पूछताछ से 72 घंटे पहले नोटिस देनी होगी और वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पूछताछ करनी होगी।
पश्चिम बंगाल के चुनावी दौरे पर आने वाले बीजेपी के तमाम केंद्रीय नेता लगातार इन दोनों मुद्दों को उठा रहे हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को बालूरघाट की रैली में कहा कि संदेशखाली में लंबे समय से महिलाओं पर अत्याचार की घटनाएं हो रही थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ऐसी शर्मनाक घटना पर राजनीति करते हुए दोषियों को बचाने का प्रयास कर रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बंगाल में आधा दर्जन चुनावी रैलियां कर चुके हैं और अपनी लगभग हर रैली में वो संदेशखाली का मुद्दा उठाते रहे हैं।
राजनीतिक दलों की खींचतान
राज्य में चुनाव के समय केंद्रीय एजेंसियों की कथित सक्रियता टीएमसी और बीजेपी के बीच विवाद का सबसे बड़ा मुद्दा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यह हमले केंद्रीय एजेंसियों के राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल के आरोपों का नतीजा है। सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के नेता लगातार यह आरोप लगाते रहे हैं। इससे राज्य के आम लोगों में धीरे-धीरे यह भावना घर कर गई है कि ईडी, सीबीआई और एनआईए जैसी तमाम एजेंसियां बीजेपी के इशारे पर राजनीतिक बदले की भावना से काम कर रही हैं।
अब अदालत की ओर से लगे ताजा झटकों के बाद टीएमसी ने कहा है कि किसी खास राजनीतिक पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए ही ऐसा किया गया है। पार्टी के प्रवक्ता कुणाल घोष कहते हैं कि पूर्व जज और भाजपा उम्मीदवार अभिजीत गांगुली की छाया अब भी अदालत पर नजर आ रही है।
अभिजीत गांगुली ने शिक्षक भर्ती घोटाले में सरकार और टीएमसी के खिलाफ एक के बाद एक कई कड़े फैसले दिए थे। उनके फैसलों के कारण ही पार्टी के कई मंत्री, विधायक और नेता जेल में हैं। बाद में वो इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए और पूर्व मेदिनीपुर जिले की तमलुक सीट से मैदान में हैं।
कुणाल घोष ने अदालत के फैसले की टाइमिंग पर सवाल उठाते हुए कहा है कि संदेशखाली मामले में पुलिस की जांच सही दिशा में बढ़ रही थी। ऐसे में इसे सीबीआई को सौंपने का कोई तुक नहीं है।