गुरुवार, 28 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. डॉयचे वेले
  3. डॉयचे वेले समाचार
  4. ठंडे कश्मीर में घरों के भीतर जलाई जा रही हैं औरतें
Written By DW
Last Updated : सोमवार, 3 मई 2021 (09:19 IST)

ठंडे कश्मीर में घरों के भीतर जलाई जा रही हैं औरतें

Domestic Violence | ठंडे कश्मीर में घरों के भीतर जलाई जा रही हैं औरतें
रिपोर्ट : रिफत फरीद
 
भारत प्रशासित कश्मीर में घरेलू हिंसा के मामले अमूमन दर्ज नहीं होते। इसकी एक वजह मीडिया की राजनीतिक मुद्दों पर केंद्रित रहने की प्रवृत्ति है। पर्यवेक्षक कहते हैं कि सामाजिक संघर्षों के कारण महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ी है।
 
सात साल की लाइजा ने आख़िरी बार अपनी मां को वीडियो कॉल पर देखा था जब वह एक अस्पताल में बिस्तर पर पड़ी थीं। उनका चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था और उनका शरीर बुरी तरह से जला हुआ था। मां की एक झलक पाने के बाद लाइजा ने फोन को फेंक दिया, क्योंकि इस दुखद स्थिति में वह अपनी मां को ज्यादा देर नहीं देख सकती थी।
 
28 साल की शाहजादा दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग जिले के ऐशमुकाम गांव की रहने वाली हैं और उनकी शादी नौ साल पहले मखूरा गांव में हुई थी। उनका वैवाहिक जीवन कभी सुखद नहीं रहा। 25 मार्च को तो इंतहां ही हो गई जब उनके पति और ससुराल वालों ने उन्हें कथित तौर पर आगे के हवाले कर दिया। अस्पताल में रिकॉर्ड किए गए अपने एक वीडियो संदेश में शाहजादा कांपती आवाज में कह रही हैं कि उनके पति, सास और ससुर ने उनके ऊपर केरॉसिन डालकर आग लगा दी। शाहजादा ने अपने बयान में बताया कि वह पिछले कई साल से घरेलू हिंसा की शिकार हो रही थीं।
 
इस घटना के 9 दिन बाद शाहजादा की श्रीनगर के महाराजा हरि सिंह अस्पताल में मौत हो गई। शाहजादा अपने पीछे एक बेटी और डेढ़ साल का एक बेटा छोड़ गई हैं। इस घटना ने न सिर्फ शाहजादा के गांव में विरोध प्रदर्शनों को भड़का दिया बल्कि इस इलाक़े में घरेलू हिंसा जैसे लगभग उपेक्षित मुद्दे पर चर्चा को हवा दे दी।
 
'वे जानवर हैं'
 
शाहजादा के दोनों बच्चे अब ऐशमुकाम गांव में अपने ननिहाल में रहते हैं। लगातार अविश्वास और सदमे में रह रहा शाहजादा का परिवार अपनी बेटी और बच्चों की मां के लिए शोकाकुल है। उन लोगों के मुताबिक, शाहजादा सुंदर और बहादुर थी।
 
शाहजादा की 60 वर्षीया मां डीडब्ल्यू को बेहद दुखी मन से बताती हैं कि उसके पति ने हमें आधी रात को फोन किया और ये कहते हुए अस्पताल आने को कहा कि उसने खुद को आग लगा ली है। लेकिन हमें इस बात पर भरोसा नहीं हुआ, हम समझ गए कि कुछ गलत हुआ है।
 
शाहजादा की मां आगे ये भी बताती हैं कि उनकी बेटी आमतौर पर अपने पति की हिंसा का शिकार होती रहती थी। वह कहती हैं कि जब हम अस्पताल पहुंचे तो हमने देखा कि उसका पूरा शरीर जल चुका था। पैरों का चमड़ा शरीर के भीतर जा चुका था। 9 दिनों तक वह मौत से लड़ती रही। उसने हमें वह पूरी कहानी बताई कि किस तरह से ससुराल वालों ने उसके कपड़ों पर मिट्टी का तेल छिड़क कर माचिस से आग लगा दी। शाहजादा ने हमें बताया कि जब उसकी चमड़ी (त्वचा) जल रही थी तो उसे कितना दर्द हुआ। ये लोग इंसान नहीं बल्कि जानवर हैं।
 
शाहजादा की मां अब उसके दोनों बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। लाइजा और उसका छोटा भाई घटना के वक्त सो रहे थे लेकिन लाइजा को अपनी मां की चिल्लाने की आवाज अभी भी याद है जिसकी वजह से उसकी नींद टूट गई थी। शाहजादा की मां कहती हैं कि उसकी मां के साथ जो कुछ भी हुआ, उसकी वजह से वह अभी भी सदमे में है। शाम को जब हम सब भोजन कर रहे थे तो वो कहने लगी कि मैं कब्र में अपनी मां के साथ सोना चाहती हूं। हम चाहते हैं कि दोषियों को कड़ी सजा मिले।
 
भारत-प्रशासित कश्मीर में घरेलू हिंसा पर बहुत ज्यादा चर्चा नहीं होती और न ही ऐसी घटनाओं को मीडिया कवरेज मिलता है जबकि ऐसी घटनाएं आमतौर पर होती रहती हैं और यह एक ऐसी सामाजिक बुराई है जिसका दायरा काफी बड़ा है। एक यह भी बड़ा मुद्दा है कि यहां महिलाओं के आश्रय स्थलों की भी कमी है।
 
घरेलू हिंसा के बढ़ते मामले
 
संघर्ष से प्रभावित इस इलाके में पिछले दो साल से लैंगिक आधार पर हिंसा में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि यहां लगातार लॉकडाउन की स्थिति जारी है जिसकी वजह से लोग अपने घरों में ही सीमित होकर रह गए हैं।
 
अगस्त 2019 में भारत सरकार ने जम्मू और कश्मीर के विशेष संवैधानिक दर्जे को खत्म करते हुए राज्य को दो संघशासित क्षेत्रों में बांट दिया। किसी तरह के प्रतिरोध को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने लॉकडाउन लागू कर दिया और संचार माध्यमों को बंद कर दिया। कई महीनों बाद कुछ प्रतिबंधों के साथ इनमें ढील दी गई। उसके बाद मार्च 2020 में कोरोनावायरस के संक्रमण को देखते हुए प्रशासन ने दोबारा लॉकडाउन लगा दिया।
 
भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से कराए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों से इस इलाके की चिंताजनक स्थिति का पता चलता है। इसके मुताबिक साल 2019-20 में 18 से 49 साल के बीच की करीब 9।6 फीसद कश्मीरी महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हुई हैं।
 
शाहजादा को आग के हवाले करने की घटना के कुछ दिन बाद 10 अप्रैल को अनंतनाग जिले में ही 32 साल की एक और महिला ने अपनी ससुराल में आत्महत्या कर ली। महिला के परिजनों ने उसके ससुराल वालों पर आरोप लगाया कि उसके साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया गया और उसे आत्महत्या करने के लिए उकसाया गया। दोनों ही मामलों में जांच जारी है। श्रीनगर में एक पुलिस हेल्पलाइन केंद्र के आंकड़ों के मुताबिक, घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं के फोन कॉल्स में तेजी से बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है।
 
साल 2019 में हेल्पलाइन में इस तरह की 55 कॉल्स आईं जबकि साल 2020 में इनकी संख्या बढ़कर 177 हो गई। हालांकि ऐसी फोन कॉल्स की संख्या में तेज बढ़ोत्तरी पिछले तीन महीनों में दर्ज हुई हैं जब घरेलू हिंसा से संबंधित मामलों में 120 फोन कॉल्स हेल्पलाइन नंबर्स पर दर्ज की गईं। जानकारों का कहना है कि सैकड़ों मामले तो पुलिस में दर्ज ही नहीं हो पाते, क्योंकि अक्सर महिलाएं डर के मारे शिकायत करने ही नहीं आती हैं।
 
पीड़ितों की मदद
 
पुलिस घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं की मदद का दावा भले ही करती हो लेकिन सच्चाई यह है कि महिलाओं की जरूरत के हिसाब से यह मदद बहुत ही कम है।
 
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने डीडब्ल्यू को बताया कि इस इलाके के सभी थानों में महिलाओं के लिए इमर्जेंसी रिस्पॉन्स सिस्टम है जिसे खुद महिलाएं ही संचालित करती हैं। यदि बहुत ही गंभीर मामला होता है तो संबंधित पुलिस थाने को मदद के लिए सूचित किया जाता है। उसके बाद जरूरी कानूनी कार्रवाई की जाती है। कश्मीर विश्वविद्यालय में महिला अध्ययन विभाग में प्रोफेसर शाजिया मलिक डीडब्ल्यू से बातचीत में कहती हैं कि कई महिलाएं घरेलू हिंसा को चुपचाप सहन करती रहती हैं और उनके परिजन इसे छिपा ले जाते हैं।
 
प्रोफेसर मलिक कहती हैं कि मुझे लगता है कि लोग ऐसी घटनाओं को छिपा ले जाते हैं। वे लोग इसे परिवार के सम्मान के साथ जोड़ने लगते हैं। इससे पहले भी कई महिलाएं जलाई गई हैं और उनकी जघन्य तरीके से हत्या हुई है।
 
शाजिय मलिक कहती हैं कि महिलाओं के पास मदद का भी कोई सांगठनिक ढांचा नहीं है जिससे उन्हें चुप रहना पड़ता है। वह कहती हैं कि यदि कोई जघन्य हत्या या फिर आग लगा देने जैसी घटनाएं होती हैं तो यह मीडिया में आ जाता है और लोग इसके बारे में जान जाते हैं। लेकिन रोज-रोज होने वाली तमाम घटनाओं की ओर लोगों का ध्यान नहीं जाता है। यदि हिंसा की घटना को पहले दिन से ही गंभीरता से लिया जाने लगे तो ऐसी जघन्य घटनाओं की स्थिति को शायद रोका जा सके। महिलाओं को इसलिए भी ये सब झेलना पड़ता है, क्योंकि उनके पास संपत्ति का अधिकार नहीं है, परिवार का सहयोग नहीं है और न ही उनके पास कोई वित्तीय स्वतंत्रता है।
 
श्रीनगर में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता इजाबिर अली डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं कि मामले चिंताजनक हैं। महिलाएं हर समय पुलिस तक पहुंच नहीं पाती हैं, क्योंकि यहां की स्थिति ही ऐसी है। महिलाओं के मामले में कुछ और कदम उठाए जाने जरूरी हैं, मसलन घरेलू हिंसा से संबंधित कानून कठोर किए जाएं और उनकी सुनवाई जल्दी हो। कश्मीर में हर महिला के पास अपना हाल बयां करने के लिए ढेरों कहानियां हैं लेकिन परिवार के दबाव और सामाजिक ढांचे ने उनके होंठ सिल रखे हैं।
 
वह कहते हैं कि घरेलू हिंसा का शिकार महिलाओं और निजी संबंधों के मामलों में महिलाओं की मदद करने का कोई कायदे का तरीका नहीं है। बाहर निकलने पर महिलाएं खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर सकती हैं। महिला आयोग तो पिछले कई साल से एक मृतप्राय संस्था बनी हुई है। इन परिस्थितियों में महिलाएं सहयोग और समर्थन के लिए किसके पास जाएं?
ये भी पढ़ें
कितने समय पहले हो जाता है मृत्यु का आभास, पढ़िए ओशो की वाणी